पुणे में 32 वर्षीय ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा दिलीपराव खेडकर, प्रशासन से इन दिनों अनुचित माँग करने के कारण सुर्खियों में हैं। पता चला है कि उन्होंने अपनी गलत माँगों के चलते अधिकारियों को इतना दुखी कर दिया है कि पुणे कलेक्टर डॉ. सुहास दिवसे को मुख्य सचिव सुजाता सैनिक को पत्र लिखकर मदद माँगनी पड़ी।
पुणे मिरर की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में ये दावे किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, आईएएस ट्रेनी पूजा खेडकर वीआईपी नंबर प्लेट वाली आधिकारिक कार, लाल-नीली बत्ती और अपने लिए पर्याप्त स्टाफ के साथ आधिकारिक चैंबर की माँग कर रही हैं, जबकि प्रशासनिक नियमों के अनुसार, ये सुविधाएँ किसी भी प्रोबेशनर (काम सीखने वाले नियुक्त व्यक्ति) को उपलब्ध नहीं हैं।
बताया गया है कि खेडकर के पिता दिलीपराव, जो खुद एक सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी हैं, कथित तौर पर अपनी बेटी की माँगों को पूरा करने के लिए जिला कलेक्टर कार्यालय पर दबाव बना रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों को यह कहते हुए धमकी भी दी है कि अगर उनकी बेटी की माँगें पूरी नहीं की गईं तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि आईएस ट्रेनी पूजा खेडकर इन दिनों अपने निजी वाहन का इस्तेमाल कर रही हैं और उन्होंने उस पर वीआईपी नंबर प्लेट लगा रखी है। ये भी बताया गया है कि पूजा खेडकर ने अतिरिक्त कलेक्टर अजय मोरे की अनुपस्थिति में उनके कार्यालय में भी कब्जा किया। पूजा ने अजय मोरे की अनुपस्थिति में उनके चैंबर के दरवाजे पर अपना चिन्ह लगाया और उस जगह को अपना ऑफिस बता दिया।
रिपोर्ट की मानें तो महिला पिछले तीन महीने से अधिकारियों को परेशान कर रही हैं और धमकी भी दी जा रही है कि मामले में और अधिकारियों को घसीटा जाएगा। इन्हीं सबके चलते पुणे कलेक्टर डॉ सुहास दिवासे को मुख्य सचिव सुजाता सैनिक को पत्र लिखकर मदद माँगनी पड़ी। अब मामले में आगे सुनवाई होगी।
उल्लेखनीय है कि खेडकर पहली बार सुर्खियों में नहीं आई हैं। उनके आईएएस बनने की कहानी भी कुख्यात है। यूपीएससी कम्युनिकेशन में 2 फरवरी, 2022 में छपी जानकारी के अनुसार, पूजा खेडकर को नियुक्ति देने से मना कर दिया गया था। हालाँकि, उन्होंने अदालत में एक हलफनामा दायर कर खुद को दृष्टिबाधित और मानसिक रूप से अस्वस्थ बताया। इस आधार पर उन्होंने मुकदमे में यूपीएससी के निर्णय के खिलाफ आदेश की माँग की थी। 2023 की सुनवाई में न्यायाधीश एमजी शेवलीकर की पीठ ने विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 के तहत वो हलफनामा पेश किया और इसके बाद खेडकर भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुईं। एक साल बाद अब उनकी ये नई कहानी सामने आई है।