साल 2021, 19 अगस्त.. दिन गुरुवार। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सुक्कुर का उपनगरीय इलाका संगरार। मुहर्रम का जुलूस निकल रहा था। लोग मातम मना रहे थे। कुछ लोग शर्बत बाँट रहे थे। इन्हीं शर्बत बाँटने वालों में शामिल थी 7 साल की प्रिया… उस दिन के तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन प्रिया का अता-पता नहीं है।
मुहर्रम के जुलूस में मातम मना रही भीड़ प्रिया को खा गई, या कोई हैवान इस मातमी भीड़ से निकल कर बच्ची को निगल गया, अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है। माता-पिता परेशान हैं। रातों में उठकर अचानक बैठ जाते हैं, बेटी की याद में रोने लग जाते हैं। अब परेशान होकर वो पाकिस्तान के सिंध प्रांत की राजधानी और सबसे बड़े शहर कराची में प्रदर्शन कर रहे हैं। सिंध प्रांत के मंत्री उनसे मिलते हैं, पुलिस अधिकारी उनसे मिलते हैं, लेकिन उनके पास कोई जवाब नहीं है।
7 साल की प्रिया अब 10 साल की हो रही होगी। उनकी सलामती की दुआ माँगते और उसे खोजने की गुहार लगाते प्रिया की माँ वीणा कुमारी और पिता राज कुमार पाल ने कराची के क्लिफ्टन इलाके के मशहूर तीन तलवार नाम की जगह पर शुक्रवार (19 जुलाई 2024) को प्रदर्शन किया। उन्होंने ये प्रदर्शन इसलिए किया, ताकी लोगों को याद दिलाया जा सके कि उनकी बेटी का अब तक पता नहीं चल पाया है।
इस प्रदर्शन के दौरान सिंध के गृह मंत्री जिया लैंग्रोव और पुलिस महानिरीक्षक जावेद ओधो ने प्रिया के माता-पिता से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि एक संयुक्त जाँच दल (जेआईटी) मामले पर काम कर रहा है, जिसके बाद माता-पिता ने अपना विरोध समाप्त कर दिया। इसके बाद प्रिया के पिता राज कुमार पाल ने कहा, “उन्होंने हमसे फिर वादा किया है कि वे हमारी बेटी की तलाश कर रहे हैं और वह जल्द ही बरामद हो जाएगी।”
पुलिस महानिरीक्षक जावेद ओधो ने कहा कि तमाम जाँच के बाद भी किसी गवाह को याद नहीं है कि छोटी लड़की के साथ क्या हुआ था। उन्होंने कहा कि जेआईटी इस मामले को सुलझाने के लिए दिन-रात काम कर रही है और हमारे पास जल्द ही जवाब होगा। हालाँकि इसका क्या जवाब होगा, इसका अंदाजा सभी को है।
बता दें कि सिंध प्रांत के कई हिस्सों में नाबालिग हिंदू किशोरियों की ही नहीं, बल्कि विवाहित हिंदू महिलाओं तक का अपहरण और उनका धर्म परिवर्तन कराकर निकाह कर लेने के अनगिनत मामले आते रहे हैं। पाकिस्तान में हिंदुओं पर होने वाली बेइंतिहाँ जुल्म की खबरें कभी-कभार मीडिया में भी आ जाती है, लेकिन ऐसे मामलों में कभी ठोस कार्रवाई नहीं होती। कार्रवाई होती भी है, तो स्थानीय ताकतवर कट्टरपंथी मुस्लिमों के दबाव में वो बंद कर दी जाती है और मामला हमेशा ढाक के तीन पात की तरह वैसे का वैसे ही रह जाता है और फिर उसी तरह की दूसरी घटनाओं पर हल्ला मचना शुरू हो जाता है। घटना दर घटना घटती जाती हैं। पीड़ित सुबकते रहते हैं, लेकिन कभी न्याय नहीं मिल पाता। खैर, न्याय की बात करना भी जहाँ बेमानी हो, वहाँ न्याय की उम्मीद क्या करना?