भारत संविधान से चलने वाला एक धर्म निरपेक्ष देश है। इस देश में रहने वाले शर्मा हो या वर्मा, झा हो या ओझा, खान हो या पासवान सभी लोगों को संविधान द्वारा एक समान अधिकार मिला है। ऐसे में देश में रहने वाले हर नागरिक की यह जिम्मेदारी होती है कि वो अपने देश के संविधान में दर्ज नियम और कानून का सही से पालन करे। यदि कोई कानून हाथ में लेता है तो स्वाभाविक है कि पुलिस कार्रवाई करेगी। इसलिए गौ-तस्करी के आरोपित को किसी मज़हब से जोड़कर देखने के बजाय एक अपराधी के रूप में देखना जरूरी है।
जिन मुट्ठी भर लोगों ने पहलू खान की मौत के बाद भारत को असहिष्णु बताकर सरकार के खिलाफ मंडी हाउस टू जंतर-मंतर तक पैदल मार्च किया, वही लोग गौ-तस्करी के मामले पर कुछ बोलने से परहेज़ करते रहे। जबकि होना यह चाहिए था कि जो गलत है उसे गलत कहा जाए और जो सही है उसे सही कहा जाए।
निश्चित रूप से गौरक्षकों द्वारा यदि कानून को हाथ में लिया जाता है तो वह गलत है। प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने खुद इस मामले पर बयान देकर फ़र्ज़ी गौरक्षकों पर कार्रवाई करने की बात कही है। इसके बावजूद जो लोग गौरक्षकों के मामले पर सरकार को घेरने की कोशिश करते हैं, उन्हें गौ-तस्करों द्वारा गोलीबारी की घटना पर सोचने की जरूरत है।
राजस्थान विधानसभा में विधायक हीरालाल नागर ने सरकार से गौ-तस्करी को लेकर सवाल किया था। इस सवाल के जवाब में राजस्थान सरकार के पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने बताया सवाल के जवाब में राजस्थान सरकार के पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने बताया कि 2015 से वर्ष 2017 के बीच गौ-तस्करी के कुल 1,113 मामले दर्ज हुए थे। इस दौरान पुलिस ने 16,428 गौवंश बरामद किया और 2,198 गौ-तस्करों को धर दबोचा।
इस सवाल के जवाब में कटारिया ने आगे बताया कि इस दौरान 33 बार फायरिंग की घटना हुई है। इन आँकड़ों से यह पता चलता है कि गौ-तस्करों ने कई बार पुलिस के ऊपर गोलीबारी करके कानून को अपने हाथ में लिया है। राजस्थान की तरह ही, यूपी और हरियाणा में भी गौ-तस्करी के मामले सामने आ रहे हैं। इन राज्यों में भी आए दिन गौ-तस्करी में लिप्त अपराधियों द्वारा पुलिस पर गोलीबारी की घटना सामने आती रहती है।
कुछ दिनों पहले गोकशी के मामले में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या हो गई थी। इस मामले में भी गौरक्षकों को बदनाम करने की कोशिश की गई। इसी तरह जब कभी गौतस्करी के आरोपित को पुलिस हिरासत में लेती है तो लोग इस मामले में आरोपित को किसी खास मज़हब से जोड़कर देखने लगते हैं। यदि कानून तोड़ने वाला व्यक्ति अपराधी है तो फिर ऐसे मामले को मजहब के एंगल के देखना तो किसी भी तरह से सही नहीं हो सकता है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा गौ-तस्करों द्वारा पुलिस पर गोलीबारी की कई घटना हो चुकी है।
दिसंबर 2018 में मेरठ के मंडाली में गो-तस्करों द्वारा पुलिस के जवानों पर गोली चलाने का एक मामला सामने आया था। इसके बाद पुलिस के जवानों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए दो तस्करों को हिरासत में लिया था। इस घटना में मंडाली थाना के एसओ बाल-बाल बचे थे। इस घटना में एजाज़ और महमुद्दीन नाम के दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था। ये दोनों ही जबद्दीन नाम के आरोपित के लड़के हैं, जो इस समय दो दर्जन से अधिक गौ-तस्करी के मामले में जेल में हैं।
इस घटना की चर्चा यहाँ इसलिए की गई ताकि आप समझ सकें कि किस तरह एक खास समूह के लोग लगातार कानून को हाथ में ले रहे हैं। यदि इन लोगों पर पुलिस कार्रवाई करती है और कोई हादसा हो जाता है तो यह संभव है कि मुट्ठी भर लोग दिल्ली में पैदल मार्च निकालते हुए देश को ख़तरे में बताना शुरू कर दें।
हमें इस बात को समझने की जरूरत है कि हमारे देश की अंतरात्मा में सहिष्णुता है। हमारे समाज की कानून में अहिंसा व धर्म निरपेक्षता की भावना सबसे पहले आती है। अंग्रेज़ों ने हमारे बीच फूट डालने की कोशिश की तो हमने मिलकर तोप-गोलों का सामना किया। अहिंसा की राह पर चलते हुए उन्हें देश से भागने के लिए मजबूर कर दिया।
ऐसे में हमें यह भी समझने की जरूरत है कि जो कानून और समाज के ख़िलाफ़ है वो न तो हिंदू है न ही किसी मजहब विशेष के। ऐसे लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ अपराधी हैं। अपराधी को समाज में रहने कोई अधिकार नहीं है, ऐसे में यदि कुछ लोग कानून के दायरे में गौ-तस्करों का विरोध कर रहे हैं तो वह गलत कैसे हो सकता है? हमें समाज में गलत तत्वों को समाप्त करने के लिए उठ रहे आवाजों को जगह देने की ज़रूरत है।