Friday, November 22, 2024
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पहली पत्नी की सहमति से की गई दूसरी शादी वैध नहीं हो जाती: पटना हाईकोर्ट

कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का हवाला देकर कहा कि दो हिंदुओं के बीच में विवाह तभी संपन्न माना जाएगा, जब दोनों में से किसी का कोई जीवनसाथी पति या पत्नी के रूप में उनके साथ न रहता हो।

पटना हाईकोर्ट में न्यायाधीश हेमंत कुमार श्रीवास्तव और न्यायाधीश प्रभात कुमार सिंह की खंडपीठ ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया कि पहली पत्नी की रजामंदी के बावजूद भी किसी व्यक्ति को दूसरी शादी करने का अधिकार नहीं मिलता। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार ऐसी शादी वैध नहीं होती।

पटना हाईकोर्ट ने यह फैसला एक सीआरपीएफ के पूर्व असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर की अपील पर सुनाया। जिन्होंने कुछ समय पहले पहली पत्नी के साथ गुजर-बसर करने के दौरान ही सीआरपीएफ की एक महिला कॉन्स्टेबल सुनीता उपाध्याय से शादी कर ली थी।

जानकारी के अनुसार, दूसरी शादी के बाद अपीलकर्ता की पहली पत्नी रंजू सिंह ने उनके ख़िलाफ़ शिकायत की थी और उनपर विभागीय कार्रवाई शुरू हुई थी। जाँच सम्पन्न होने के बाद सीआरपीएफ अधिकारी वास्तविकता में पहली पत्नी के दोषी पाए गए थे और उन्हें प्रशासन के आदेशानुसार उनकी नौकरी से निकाल दिया गया था। इसके बाद उन्होंने अपने ऊपर सुनाए गए फैसले के ख़िलाफ़ पुनर्विचार करने की माँग की, लेकिन फिर भी उनके ख़िलाफ़ लिए आदेशों में कोई बदलाव नहीं हुआ।

अपीलकर्ता (सीआरपीएफ अधिकारी) के वकील ने इस पूरे मामले पर सुनवाई करते हुए बताया कि उनके मुवक्किल पर उनकी पहली पत्नी द्वारा लगाए आरोपों पर हुई विभागीय जाँच के दौरान ही उनकी पहली पत्नी ने एक हलफनामा भी दायर किया था, जिसमें स्पष्ट लिखा था कि पूर्व सीआरपीएफ अधिकारी ने सुनीता उपाध्याय से दूसरी शादी उनकी मर्जी से की। लेकिन उस समय उस दस्तावेज को जाली बताकर दरकिनार किया गया और कहा गया कि प्रशासन ने उनके मामले में हर पहलू पर जाँच की है। इसके बाद उनपर चार्ज लगाए गए और उनपर कार्रवाई हुई।

पूरे मामले में पेश की गई दलीलों को गौर से सुनने के बाद कोर्ट ने सीआरपीएफ अधिकारी की अपील को खारिज कर दिया और कहा कि अगर ऐसा मान भी लिया जाए कि पहली पत्नी ने शिकायत कर्ता को शादी करने की अनुमति दी। तब भी ये शादी कानूनी रूप से वैध नहीं है। कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम एक्ट का हवाला देकर कहा कि पहली पत्नी की रजामंदी के बावजूद भी किसी व्यक्ति को दूसरी शादी करने का अधिकार नहीं मिलता।

कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 का हवाला देकर कहा कि दो हिंदुओं के बीच में विवाह तभी संपन्न माना जाएगा, जब दोनों में से किसी का कोई जीवनसाथी पति या पत्नी के रूप में उनके साथ न रहता हो।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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