नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा को साफ़ करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। इनमें प्रमुख रूप से गंगा के किनारे घाटों को साफ़ करने से लेकर ‘गंगा ग्रामीण प्रहरी’ की नियुक्ति है।
इसी तरह सरकार ने गंगा के पानी को साफ़ करने के लिए भी सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट के अलावा तीन नई तकनीक का इस्तेमाल किया है। इनमें प्रमुख रूप से बायोरेमीडिएशन, जियो सिंथेटिक ट्यूब और इंस्टिट्यूट रेन ट्रिटमेंट है। प्रयागराज में कुम्भ के दौरान गंदे पानी को गंगा में जाने से रोकने के लिए इन तीनों तकनीक को ट्रायल के रूप में शुरू किया गया है।
दरअसल प्रयाग राज शहर के सभी नालों से निकलने वाले पानी को सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाना बेहद खर्चीला और मुश्किल होता है। प्रयाग राज शहर में इस समय 46 ऐसे नाले हैं, जिसका पानी सीधे गंगा में मिल रहा था। ऐसे में गंदे पानी को रोकने के लिए इंस्टिट्यूट रेन ट्रीटमेंट तकनीक के तहत 6 नाले, जियो ट्यूब तकनीक के माध्यम से 5 नाले जबकि 35 नालों को बायोरेमीडिएशन तकनीक से साफ़ किया जा रहा है।
इन तकनीक के बारे में जानकारी देते हुए उत्तर प्रदेश जल निगम के अधिकारी पीके अग्रवाल ने बताया कि अभी इन सभी नई तकनीक का हम ट्रायल कर रहे हैं। इसके बाद एक टीम रिसर्च करेगी कि कौन सी तकनीक कम पैसे में ज्यादा बेहतर तरह से पानी को साफ़ कर रही है।
क्या हैं ये तीन तकनीक, कैसे करते हैं काम
- इंस्टिट्यूट रेन ट्रीटमेंट : यह तकनीक नेशनल एंवायरमेंटल इंजीनियर रिसर्च इंस्टिट्यूट (नेरी) के प्रयास से प्रभाव में आई है। नमामि गंगे अधिकारियों के मुताबिक नाले के गंदे पानी को साफ़ करने के लिए कम पैसे में यह एक बेहतर तकनीक है। इस तकनीक पर काम करने वाले नेरी संस्थान के छात्र ने बताया कि यह एक तरह का पोर्टेबल एसटीपी है। इसमें सबसे पहले गंदे पानी के साथ आने वाले सॉलिड कचरे को रोकने के लिए नाले में व्यवस्था की जाती है। इसके बाद सैप्टिक टैंक व एनॉक्सिक टैंक है। इस टैंक में बैक्टीरियल ग्रोथ होती है। यह बैक्टीरिया छोटे-छोटे सॉलिड कचरे को समाप्त कर देती है। इसके बाद नाले में एरोकॉन ब्लॉक लगाया जाता है, जिसमें बैक्टीरिया आसानी से फंस जाते हैं। इसके बाद साफ़ पानी निकलता है, जिसे गंगा में जाने दिया जाता है।
- जियो ट्यूब तकनीक : इस तकनीक के बारे में प्रधानमंत्री अपने मन की बात में चर्चा कर चुके हैं। इस तकनीक में सबसे पहले नाले के पानी से सॉलिड कचरे को अलग किया जाता है। इसके बाद पानी को डोजिंग यूनिट में लाया जाता है। इस मशीन में ही पॉलिमर को मिलाया जाता है। इसके बाद पानी में मौजूद छोटे-छोटे सॉलिड को समाप्त करने के लिए यहीं बैक्टीरिया को भी पैदा किया जाता है। इसके बाद इस पानी को जियो ट्यूब के अंदर ले जाया जाता है, जहाँ पानी में मौजूद सॉलिड कचरा ट्यूब के अंदर रह जाता है। इसके बाद साफ पानी ट्यूब से बाहर आता है। ट्यूब से बाहर आ रहे पानी को गंगा में जाने दिया जाता है जबकि ट्यूब से निकलने वाले कचरे को जलावन या खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- बायोरेमीडिएशन : इस समय प्रयागराज में इस तकनीक के जरिए सबसे अधिक नालों को साफ़ किया जा रहा है। इस तकनीक में नाले के अंदर कुछ-कुछ दूरी पर पानी में रूकावट के लिए साधन लगाए जाते हैं। इस तरह ठोस कचरे को बाहर कर लिया जाता है। इसके बाद पानी को एक टैंक में जमा किया जाता है। इस टैंक के पानी में बैक्टीरिया पैदा करने के लिए बैक्टो क्लीन केमिकल डाला जाता है। इसके बाद एक तरह पानी में मौजूद सभी बैक्टीरियल गंदगी यहाँ पानी से अलग हो जाता है। इसके बाद पानी को नदी में बहने दिया जाता है।
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