सिद्धांत और व्यवहार का अंतर देखना हो तो किसी वामपंथी पार्टी को देख लीजिए। ध्यान देंगे तो वहाँ तानाशाही से लेकर पितृसत्ता सब नज़र आएगी। महिलाओं को अधिकार देने की बात केवल दूसरी पार्टियों को घेरने में इस्तेमाल की जाती है।
बात हो रही है वामपंथ के एकमात्र दुर्ग केरल की। जहाँ बाकी 8 पार्टियों के हक को दरकिनार कर 10 पार्टियों के गठबंधन की सारी सीटों को मात्र दो पार्टियों ने आपस में बाँट लिया और दोनों ने अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान भी कर दिया है।
बता दें कि, केरल में कुल 20 लोकसभा सीटें हैं। सभी 20 सीटों को गठबंधन की दो बड़ी पार्टियों ने साझा कर लिया है। LDF में शामिल सबसे बड़ी पार्टी सीपीआई (एम) ने राज्य की 16 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया, वहीं दूसरी बड़ी पार्टी सीपीआई 4 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है।
मजेदार बात यह है कि इन सीटों पर भी मौजूदा सांसदों और विधायकों को ही मौका दिया गया है, यह कहकर कि इस बार जीतना ज़रूरी है। शायद मोदी फैक्टर का डर इतना हावी हो गया है कि गठबंधन की बाकी पार्टियों को पूर्णतया नज़रअंदाज कर दिया गया है।
ख़ैर, अब शायद ही कोई गठबंधन से पूछे कि कहाँ गई समानता की बात? क्या केरल में पिछड़ों को आगे बढ़ाने की बात LDF भूल गई। यह सिद्धांत उसे केवल दूसरी पार्टियों के सन्दर्भ में ही नज़र आता है।
बता दें कि महिला अधिकारों की दलील देने वाली इस गठबंधन के व्यवहार में कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा। कुल 20 सीटों में मात्र दो महिलाओं को मौका दिया गया है और वो भी उन्हें जो मौजूदा समय में सत्ता में हैं।