इस हमले में 30 श्रद्धालुओं, एक राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी व एक कमांडो ने अपनी जान की आहुति दी थी। गंभीर रूप से घायल एक और कमांडो ने दो वर्षों तक अस्पताल में अपने जीवन के लिए संघर्ष करते हुए मृत्यु का वरण किया।
आज से 18 वर्ष पहले 24 सितम्बर 2002 को, दो आतंकवादियों ने गुजरात के गाँधीनगर स्थिति अक्षरधाम मन्दिर पर हमला किया था, जिसमें 30 व्यक्ति मारे गए तथा 80 घायल हुए थे। माना जाता है कि इस हमले के पीछे लश्कर-ए-तोयबा का हाथ था। यहाँ उन घटनाओं का क्रमानुसार वर्णन पढ़िए, जो हमले के समय घटित हुई थी।
24 सितम्बर को 2 आतंकियों का मन्दिर परिसर में प्रवेश
रिपोर्ट्स के अनुसार, हमले के दिन शाम 4 बज कर 45 मिनट पर अक्षरधाम मंदिर परिसर के द्वार संख्या 3 पर दोनों आतंकियों को छोड़ा गया। जहाँ से उन्होंने परिसर में घुसने का प्रयास किया लेकिन उन्हें वहाँ BAPS के स्वयंसेवकों द्वारा सुरक्षा जाँच हेतु रोक लिया गया। बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) वो संस्था है, जो मंदिर का प्रबंधन संभालती है।
आतंकवादी सुरक्षा जाँच को छोड़ कर एक ऊँची बाड़बंदी को फाँद कर मंदिर परिसर में दाखिल हुए। वे मंदिर परिसर में निर्मित मनोरंजन पार्क से होते हुए गोलीबारी करते हुए आगे बढ़े। वे निर्दोष श्रद्धालुओं पर गोलाबारी करते हुए, ग्रेनेड फेंकते हुए तेजी से मंदिर के मुख्य मार्ग की ओर बढ़ने लगे। इस हमले को देखते हुए मंदिर के पर्यवेक्षक खोद सिंह जाधव व बीएपीएस स्वयंसेवकों ने मुख्य मंदिर में स्थिति स्वयंसेवकों को सम्पर्क किया तथा तुरंत मुख्य मंदिर का द्वार बंद करने के लिए कहा।
मुख्यमंत्री कार्यालय को हमले की सूचना दी गई
लगभग 4 बज के 48 मिनट पर मुख्यमंत्री कार्यालय को इस हमले की सूचना दी गई। इसके 15 मिनट बाद राज्य पुलिस तथा कमांडो इकाइयाँ मंदिर परिसर में पहुँच गई। उन्होंने मंदिर में स्थिति सैकड़ों श्रद्धालुओं को सुरक्षित बाहर निकाला तथा अनेक स्थानीय लोग भी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सहायता के लिए आगे आए, जिन्होंने घायलों को अस्पताल पहुँचाने में मदद की।
आतंकियों ने बदला अपना लक्ष्य
जब आतंकियों को यह लगने लगा कि वो मंदिर के मुख्य दरवाजे को नहीं खोल सकते तो वो प्रदर्शनी हॉल संख्या 1 में पहुँचे, जहाँ एक मल्टीमीडिया शो चल रहा था। उन्होंने हॉल में मौजूद पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिससे कइयों की मृत्यु हुई, कुछ घायल हुए। प्रदर्शनी हॉल में मारकाट मचाने के बाद वे परिक्रमा मार्ग में छुप गए।
फँसे हुए श्रद्धालुओं को निकालने का काम जारी रहा
सुरक्षा बलों के जवानों ने मंदिर में परिसर में छिपे आतंकियों को खोजने के साथ हमले में फँसे श्रद्धालुओं को धीरे-धीरे सुरक्षित निकालना प्रारंभ किया। मुख्य मंदिर में उपस्थित श्रद्धालुओं को भी लगभग 7:30 बजे तक सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। जब आतंकियों को ये लगा कि अब उनके बचने का कोई मार्ग शेष नहीं है, तो वो परिक्रमा क्षेत्र से बाहर कूद कर मौजूदा कमांडो बल पर गोलाबारी करने लगे।
NSG को बुलाया गया
शाम के लगभग 5:15 बजे तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तब के उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी से बात की तथा इस स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के जवानों की माँग की। रात के लगभग 10:10 बजे तक NSG गार्ड्स अक्षरधाम पहुँचे तथा करीब 11:30 बजे से उन्होंने अपना ऑपरेशन प्रारंभ कर दिया। आतंकी आधी रात के समय अपनी जान बचाने के लिए परिसर में निर्मित शौचालय में छिप गए। तब तक रैपिड एक्शन फ़ोर्स, सीमा सुरक्षा बल, राज्य रिजर्व पुलिस तथा आतंकवाद निरोधक दस्ते सहित कई सुरक्षा एजेंसियाँ मंदिर परिसर में पहुँच चुकी थीं।
अगले दिन सुबह मारे गए आतंकी
सूरज के उगते ही आतंकियों की अधीरता बढ़ने लगी। वे सुरक्षा बलों पर लगातार गोलीबारी करने लगे। सुबह के लगभग 6:45 बजे कमांडो इन आतंकियों को मारने में सफल रहे, जो प्रदर्शनी हॉल संख्या 3 के समीप झड़ियों में छिपे हुए थे।
अनेक जानें चली गईं
इस हमले के दौरान 30 श्रद्धालुओं, एक राज्य पुलिस अधिकारी तथा एक कमांडो ने अपनी जान गँवाई। एक अन्य कमांडो गंभीर रूप से घायल हुए, जो दो वर्षों तक अस्पताल में जीवन-मृत्यु का युद्ध लड़ने के बाद अंततः वीरगति को प्राप्त हुए।
अक्षरधाम मन्दिर को पुनः खोला गया
राज्य सरकार व मंदिर प्रबंधन द्वारा मंदिर की सुरक्षा हेतु विभिन्न नए उपाय करने तथा सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने के बाद 7 अक्टूबर 2002 को मंदिर परिसर पुनः श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया।
इस मामले में अदालत ने 6 व्यक्ति को दोषी ठहराया और उन्हें सजा भी दी लेकिन 2014 में सबूतों की कमी के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें छोड़ दिया। इस मामले में फरार एक अन्य आरोपी को ATS ने बाद में 2019 में जम्मू-कश्मीर से गिरफ्तार किया।