अप्रैल के महीने श्री लंका में हुए आत्मघाती हमलों में 250 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। श्रीलंकाई लोगों को यह जानकर बहुत बड़ा झटका लगा था कि उन हमलों के पीछे समुदाय के ही स्थानीय लोगों का हाथ हो सकता है। श्रीलंका में ईस्टर संडे के आत्मघाती हमले के कारण देश में सांप्रदायिक हिंसा काफी ज्यादा भड़क चुकी है। इसको लेकर प्रशासन भी लगातार कदम उठा रहा है।
इस्लामिक आतंकियों द्वारा चर्च और होटलों में की गई खतरनाक बमबारी के बाद से श्री लंका में समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। मस्जिदों और समुदाय के व्यापार पर हमले के बाद श्रीलंका के कई इलाकों में भारी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है। श्री लंका के सैनिकों ने बख्तरबंद वाहनों में इस हफ्ते हिंसा की चपेट में आए क्षेत्रों का दौरा किया। इस दौरान निवासियों का कहना है कि हिंसा के वक्त लोग अपने घरों और दुकानों से निकलकर धान के खेतों में छुप रहे थे और वहीं पुलिस खड़ी हिंसा देखती रही।
पुलिस और निवासियों के अनुसार, फेसबुक पर शुरू हुए विवाद के बाद कई दर्जन लोगों ने रविवार (मई 12, 2019) को क्रिश्चियन-बहुल वाले शहर चिलवा में मस्जिदों और समुदाय की दुकानों पर पत्थर फेंके और एक व्यक्ति को खूब पीटा। वहाँ के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने एक विवादित फेसबुक पोस्ट को लिखने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार किया है, जिसकी पहचान 38 वर्षीय अब्दुल हमीद मोहम्मद हसमार के रूप में हुई है।
उसने ऑनलाइन कमेंट में लिखा था, “एक दिन तुम लोगों को रोना है।” लोगों ने इस कमेंट को धमकी के रूप में ले लिया और शहर में हिंसा शुरू हो गया। इस पोस्ट पर मचे बवाल के बाद शहर में कई मस्जिदों और समुदाय की दुकानों पर पथराव किया गया। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने इलाके में कर्फ्यू लगा दिया था।
14 मई को श्री लंका के पास के कोट्टमपतिया में एक मस्जिद में भीड़ के हमले के बाद श्री लंका के सैनिकों ने बख्तरबंद वाहन के जरिए हेटिपोला की सड़कों पर गश्त लगाई। अधिकारियों ने कहा कि सबसे अधिक प्रभावित उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में स्थिति नियंत्रण में थी, जबकि मजहब विरोधी भीड़ रविवार से शहर से शहर जा रही थी। श्री लंका में तनाव का माहौल है और सांप्रदायिक हिंसा भड़की हुई है। इस हिंसा में मजहब विरोधी भीड़ ने मस्जिदों पर हमला किया। इसके अलावा हिंसा के दौरान मजहब के धार्मिक ग्रंथ कुरान को भी जला दिया गया।
कोट्टमपिटिया शहर में एक मस्जिद के बाहर इकट्ठा हुए लोगों के समूह में से एक ने बताया, “समुदाय के लोग पास के धान के खेतों में छुप गए। जिसके कारण किसी की जान नहीं गई।” उन्होंने बताया कि सोमवार की दोपहर के बाद लगभग एक दर्जन लोगों का एक समूह टैक्सियों में आया था और समुदाय के स्वामित्व वाले स्टोर पर पत्थरों से हमला किया। देखते ही देखते भीड़ ने काफी नुकसान किया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक भीड़ ने मुख्य मस्जिद, 17 समुदाय विशेष के स्वामित्व वाले कारोबार और 50 घरों पर हमला किया। 48 साल के अब्दुल बारी ने बताया कि दुकान को पेट्रोल बम से जला दिया गया, उन्होंने कहा कि हमलावर मोटरबाइकों पर थे, जो छड़ और तलवारों से लैस थे।
साथ ही वहाँ के लोगों ने भीड़ को तितर-बितर करने में विफल रहने के लिए पुलिस को दोषी ठहराया। 47 साल के मोहम्मद फलील के अनुसार, “पुलिस देखती रही, वे गली में थे। उन्होंने किसीको भी नहीं रोका। उन्होंने हमें अंदर जाने के लिए कहा। हमने पुलिस को कहा कि इसे रोको, लेकिन पुलिस ने गोली नहीं चलाई। पुलिस को ये रोकना था, लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया।”
वहीं, पुलिस के प्रवक्ता रूवान गुणसेकेरा ने उन आरोपों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया है कि हिंसा के दौरान पुलिस खड़ी थी। उन्होंने कहा कि सुरक्षा की स्थिति नियंत्रण में थी और अपराधियों को दंडित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सभी पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि हिंसा करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही ज्यादा से ज्यादा पुलिस बल का इस्तेमाल किए जाने की बात भी कही गई है। अपराधियों को 10 साल की जेल की सजा हो सकती है। वहीं इस मामले में श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि सोमवार देर रात उन्होंने सुरक्षा बलों को मजहब विरोधी हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की जिम्मेदारी दी थीं।