एनआईए (NIA) ने जब से कुछ आतंकियों को पकड़ा है तब से लगातार सोशल मीडिया पर NIA का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। एक से बढ़कर एक तर्क गढ़े जा रहे हैं। मोदी विरोध अपनी जगह है लेकिन उस विरोध में तथाकथित लिबरल बुद्धिवादी और विद्वान इतने आगे निकल चुके हैं कि जब तक उनकी आँखों के सामने विस्फोट नहीं होगा तब तक वो ये भी नहीं मानने को तैयार हैं कि ऐसे ‘जुगाड़-टेक्नोलॉजी’ से भी बम बनाया जा सकता है।
आईईडी ( IED) ऐसे ही जुगाड़ से बनाया जाता है। बम बनाने के लिए बनारस में कुकर, टिफिन और साइकिल का भी इस्तेमाल हुआ था। अगर यहाँ प्रेशर कुकर मिल जाता तब भी ये कोई न कोई कुतर्क गढ़ लेते। ऐसी प्रतिक्रियाओं से ही ऐसे नरपिशाचों का मनोबल बढ़ता है।
अभी साल भर पहले सेना ने दंतेवाड़ा के जंगलों से गुण्डाधुर नाम के एक नक्सली कमांडर को उसके साथियों सहित पकड़ा था, जिनके पास से कुछ पाइप बम बरामद किए गए थे जो रॉकेट लॉन्चर की तरह काम करते थे। इनको बनाने के लिए वाहनों का प्रेशर नोज़ल काम में लिया गया था जो कि पाइप बम में मौजूद विस्फोटक को ठीक रॉकेट लॉन्चर की तरह दूर तक फेंकता था। यह पाइप बम आम पाइप बम से कई गुना ज्यादा खतरनाक था क्योंकि साधारण पाइप बम के धमाके में इतनी तीव्रता नहीं होती थी। जिससे सेना के वाहनों को कभी-कभी कम क्षति पहुँचती थी और उसमें मौजूद जवानों के बचने की पूरी सम्भावना बनी रहती थी। लेकिन प्रेशर नोज़ल से बने रॉकेट लॉन्चर की तरह काम करने वाले पाइप बम की मारक क्षमता साधारण पाइप बम से कई गुना अधिक थी। इसे दूर से रिमोट कंट्रोल डिवाइस से भी चलाया जा सकता था।
पूछताछ में गिरफ्तार नक्सली कमांडर ने बताया कि प्रेशर बम से एक-दो वाहन ही चपेट में आते हैं लेकिन इस तकनीक से एक बार में एक से ज्यादा वाहनों और जवानों को टार्गेट किया जा सकता है। इसके दायरे में आए वाहनों या जवानों का बचना नामुमकिन है। प्रेशर बम को ज़मीन में 20 से 25 डिग्री के कोण पर दबाकर रखा जाता था, ताकि पहले वाहन के पीछे चल रहे अन्य वाहन भी धमाके के दायरे में आ सकें।
ये सारी बातें इसलिए बतानी ज़रूरी हैं क्योंकि पिछले दो-चार दिन से एक से बढ़कर एक हाई क्वालिटी ईर्ष्या और कुढ़न की डोज़ लिए हुए पत्रकार और तथाकथित विद्वान जो सरकार का मज़ाक उड़ाते हुए लिख रहें हैं कि NIA जिसको रॉकेट लॉन्चर कह रही है, वो राकेट लॉन्चर नहीं था बल्कि वह तो ट्रैक्टर की ट्रॉली का प्रेशर नोज़ल था।
यह तो कमाल की बात हो गयी कि एक आदमी के पास आईईडी बम नहीं पकड़ा गया, सिर्फ कुछ किलोग्राम पोटैशियम नाइट्रेट, अमोनियम नाइट्रेट, सल्फर पेस्ट, सुगर मैटेरियल, लोहे के पाइप व छड़ें, कंचें, नोकदार कीलें, तार के बंडल, सैकड़ो डिजिटल अलार्म घड़ियां, मोबाइल फोन सर्किट, मोबाइल की बैटरियाँ, रिमोट कंट्रोल डिवाइस, वायरलेस स्विच पकड़े गए। अब बताइये कि इनमें आईईडी बम कहाँ है? यह तो सिर्फ सामान भर था। जब आईईडी बम पकड़ा जायेगा तब ही माना जायेगा कि ये लोग आतंकवादी हैं? नहीं, तब तक हमारे कई मीडिया के पुरोधा और तथाकथित समाज सेवकों की नज़र में वर्कर माने जायेंगे। हो सकता है फिर भी ये लोग नहीं माने। ऐसे हाई क्वालिटी के महानुभाव तब भी कहेंगे कि सिर्फ आईईडी बनाया ही तो है, फोड़ा कहाँ है?
जब तक कहीं किसी स्कूल-कॉलेज में, मंदिर में, बाजारों, बस अड्डों पर बम नहीं फोड़ेंगे तब तक ये नहीं मानेंगे कि पकड़े गए लोग आतंकवादी हैं। वैसे, ऐसे महानुभाव तब भी कहेंगे कि बम धमाके में जो लोग पकड़े गए हैं वह तो इनोसेंट हैं, यह काम तो आरएसएस का है, या यह हिन्दू आतंकवाद है, और सिर्फ समुदाय विशेष से होने की वजह से मोदी सरकार इनको फँसा रही है।
शायद इन्होंने नक्सलियों और आतंकवादियों के काम करने के तरीकों को ठीक से नहीं जाना है जो साधारण चीजों से भी खतरनाक से खतरनाक बम बनाने में एक्सपर्ट हैं। या फिर जानबूझकर ये ऐसी दलीलें लाते हैं ताकि इनके गिरोह के लोग, और वो आतंकी बचे रहें जिन्हें इनका मूक समर्थन मिलता रहता है।
इसलिए यह किसी हालत में नहीं मानेंगे कि पकड़े गए लोग आतंकवादी हैं। यह तो तभी मानेंगे जब इनके कान के नीचे धमाका होगा ।