ब्रह्मांड के रहस्यों की खोज में लगी अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) ने दूसरे ग्रहों के प्राणियों के अस्तित्व को लेकर 24 धर्मशास्त्रियों को अपने अभियान में शामिल करने का फैसला लिया है। हालाँकि, इन धर्मशास्त्रियों को अंतरिक्ष में नहीं भेजा जाएगा, लेकिन इस बात में इनका सहयोग लिया जाएगा कि अगर एलियन (Alien) के अस्तित्व का प्रमाण मिल जाता है तो पृथ्वी के लोगों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा और वे ईश्वर और संसार की संरचना को लेकर उनका दृष्टिकोण किस तरह प्रभावित होगा।
एजेंसी ने अमेरिका के न्यू जर्सी स्थित प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के ‘सेंटर फॉर थियोलॉजिकल इंक्वायरी (CTI)’ के अपने कार्यक्रम में भाग लेने के लिए 24 धर्मशास्त्रियों को नियुक्त किया है। इस सेंटर को नासा ने साल 2014 में 1.1 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुदान दिया था। सीटीआई का मुख्य काम धर्मशास्त्रियों, वैज्ञानिकों, विद्वानों और नीति-निर्माताओं को एक साथ मिलकर ‘वैश्विक सरोकारों’ पर सोचने और उस सोच को लोगों तक पहुँचाने के लिए एक माध्यम के रूप में काम करना है।
साल 2016 में शुरू हुए इस प्रोग्राम का उद्देश्य उन सवालों का जवाब देना है, जो मानव जाति को आरंभ से ही रहस्य के घने कोहरे में छिपा कर रखा है। जैसे कि जीवन क्या है? जिंदा रहने का क्या मतलब है? मनुष्य और परग्रही जीवों (एलियन) के बीच की रेखा का निर्धारण किस आधार पर होना चाहिए? ब्रह्मांड में दूसरी जगहों पर जीवन की कितनी संभावनाएँ हैं? आदि आदि।
ब्रह्मांड में जीवन की संभावनाओं पर विस्तृत शोध के लिए नासा के दो रोवर मंगल ग्रह पर उपस्थित हैं। बृहस्पति और शनि की जानकारियाँ जुटाई जा रही हैं। क्रिसमस के दिन (25 दिसंबर) को जेम्स वेब टेलीस्कोप को लॉन्च किया गया है, जो ब्रह्मांड में आकाशगंगा, तारे और ग्रह निर्माण की प्रक्रिया के अध्ययन करने में बेहद सहायक होगा। यह ब्रह्मांड के उन कोनों को भी देखने में सक्षम है, जो अब तक असंभव था। ऐसे में एजेंसी द्वारा धर्मशास्त्रियों की नियुक्ति का मतलब कुछ ऐसा है, जिससे ब्रह्मांड में एलियन के अस्तित्व को स्वीकार करना आवश्यक हो जाता है।
Here it is: humanity’s final look at @NASAWebb as it heads into deep space to answer our biggest questions. Alone in the vastness of space, Webb will soon begin an approximately two-week process to deploy its antennas, mirrors, and sunshield. #UnfoldTheUniverse pic.twitter.com/DErMXJhNQd
— NASA (@NASA) December 25, 2021
ऑक्सफ़ोर्ड से जैव रसायन में डॉक्टरेट और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में धर्मशास्त्री तथा पादरी डॉ एंड्रयू डेविसन इन 24 धर्मशास्त्रियों में शामिल हैं। नासा ने ‘एस्ट्रोबायोलॉजी के सामाजिक प्रभाव’ नाम से एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जो 2015 से 2018 तक चला था। डेविसन ने 2016 से 2017 तक इस प्रोग्राम में भाग लिया था। इन्होंने इस विषय पर कई शोध किए हैं।
डेविसन का मानना है कि इस पृथ्वी से बाहर जीवन की संभावना बलवती होती जा रही है। उन्होंने अपनी किताब ‘एस्ट्रोबायोलॉजी एंड क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन’ में सवाल किया है कि क्या भगवान ब्रह्मांड में कहीं और जीवन बना सकते थे? उन्होंने कहा है कि इस आकाशगंगा में 100 अरब से अधिक तारे और ब्रह्मांड में 100 अरब से अधिक आकाशगंगाएँ हैं। इसलिए पृथ्वी के अलावा भी ब्रह्मांड में जीवन हो सकता है।
वेटिकन वेधशाला के प्रमुख और पोप बेनेडिक्ट के वैज्ञानिक सलाहकार 45 वर्षीय जेसुइट पादरी जोस गेब्रियल फ्यून्स ने कहा था, “मेरी राय में यह संभावना (अन्य ग्रहों पर जीवन की) मौजूद है।” वहीं, साल 2008 में वेटिकन के मुख्य खगोलशास्त्री का कहना था कि ईश्वर में विश्वास करने और ‘दूसरे ग्रहों पर रहने वाले’ लोगों के अस्तित्व की संभावना के बीच कोई विरोध नहीं है। उन्होंने कहा था कि वे संभवत: मनुष्यों से अधिक विकसित हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि बृहस्पति ग्रह के बर्फीले चंद्रमा यूरोपा की सतह के नीचे महासागर हैं, जो जीवन की ओर संकेत करते हैं। वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि शुक्र के बादलों में रोगाणु होते हैं। वहीं, इसी साल दिसंबर में मंगल ग्रह का चक्कर लगा रहे ट्रैस गैस ऑर्बिरेटर (TGO) को मंगल पर काफी मात्रा में पानी का पता चला है। यह पानी मंगल ग्रह के कैनियन में है और सतह के नीचे है। मंगल का यह जलस्रोत लगभग 45 हजार स्क्वायर किलोमीटर में फैला हुआ है।