Sunday, September 15, 2024
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संयुक्‍त राष्‍ट्र में भारत ने उठाया ‘हिंदूफोबिया’ का मुद्दा, कहा- दुनिया को हिन्दू, सिख और बौद्ध विरोधी खतरों को समझना होगा

"वैश्विक आतंकी रणनीति में इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म के खिलाफ धार्मिक भय को ही जगह मिली है। लेकिन पिछले दो सालों से कई देश आतंकवाद को नस्लीय व जातीय रूप से प्रेरित हिंसक उग्रवाद, हिंसक राष्ट्रवाद, दक्षिणपंथी उग्रवाद जैसी कैटेगरी दे रहे हैं। यह प्रवृत्ति कई कारणों से खतरनाक है।"

संयुक्त राष्ट्र में भारत ने दुनिया का ध्यान ‘हिंदूफोबिया’ की ओर दिलाया है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बौद्ध और सिख धर्म के खिलाफ घृणा के साथ-साथ ‘हिंदूफोबिया’ का मसला उठाते हुए भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र (UN) के सदस्‍य देशों से इसे पहचानने की अपील की। गुरुवार (20 जनवरी, 2022) को यूएन में भारत के स्‍थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि यूएन ने अन्‍य तरह के धार्मिक फोबिया पर तो बात की है, मगर हिंदू, सिख और बौद्ध विरोधी खतरों को स्‍वीकार नहीं किया गया है। भारत ने कहा कि इस खतरे पर दुनिया को बात करनी ही होगी ताकि ऐसे विषयों पर चर्चा में ‘और संतुलन’ सुनिश्चित किया जा सके।

तिरुमूर्ति ने दिल्ली स्थित ग्लोबल काउंटर-टेररिज्म सेंटर (जीसीटीसी) द्वारा आयोजित एक वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में यह बयान दिया। UN में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र की नई वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति (जीसीटीएस) में कई खामियाँ हैं। धार्मिक भय के मौजूदा रूपों विशेष रूप से हिंदू विरोधी, बौद्ध विरोधी और सिख विरोधी भय चिंता का विषय है। इस खतरे से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र और सभी सदस्य देशों को ध्यान देने की जरूरत है।”

दुनिया को देना चाहिए हिंदूफोबिया पर ध्‍यान

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तिरुमूर्ति जून 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित जीसीटीएस की सातवीं समीक्षा का जिक्र कर रहे थे। उन्होंने आगे अपने बयान में यह भी कहा, “एक और ट्रेंड जो पिछले कुछ वक्‍त में बढ़ा है, वह है खास तरह के धार्मिक फोबिया को हाईलाइट करने का। यूएन ने पिछले कुछ वर्षों में उनमें से कुछ को हाईलाइट किया है, खासतौर से इस्‍लामोफोबिया, क्रिश्‍चनोफोबिया और एंटी-सेमिटिज्‍म। वैश्विक आतंकी रणनीति में इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म के खिलाफ धार्मिक भय को ही जगह मिली है। लेकिन पिछले दो सालों से कई देश अपने राजनीतिक और धार्मिक वजहों से आतंकवाद को नस्लीय व जातीय रूप से प्रेरित हिंसक उग्रवाद, हिंसक राष्ट्रवाद, दक्षिणपंथी उग्रवाद जैसी कैटेगरी दे रहे हैं। यह प्रवृत्ति कई कारणों से खतरनाक है।” तिरुमूर्ति ने इसकी भर्त्‍सना की।

तिरुमूर्ति ने UN के कुछ सदस्‍य देशों के उस कदम का भी कड़ा विरोध किया जिसमें उन्‍होंने आतंकवाद को घटनाओं के पीछे की प्रेरणा के आधार पर वर्गीकृत करने का प्रस्‍ताव रखा था। उन्होंने कहा कि इससे उस सिद्धांत कि आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा होनी चाहिए, की अवहेलना होगा।

तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को आगाह करते हुए कहा, “UNSC को नई शब्दावली और झूठी प्राथमिकताओं से सावधान रहना चाहिए, जो हमारे फोकस को कमजोर कर सकती हैं।” उन्होंने जोर देते हुए कहा, “आतंकवादी आतंकवादी होते हैं। इसमें अच्छे और बुरे नहीं होते हैं। इस अंतर का प्रचार करने वालों का एजेंडा होता है। जो उनके लिए कवर करते हैं, वे उतने ही दोषी हैं।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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