‘जस्टिस’ रवीश कुमार नींद से नहीं जागना चाहते क्योंकि उन्हें वही ‘दंगा साहित्य’ पसंद है जो वास्तविकता से अलग है
रवीश आज भी नेहरू-इंदिरा के अहंकार के उस दौर से आतंकित हैं, जब मनचाहे तरीकों से सत्ता, समाज और संस्थाओं को अपने नियंत्रण में रखा करती थी। लप्रेकी रवीश इस…