फैक्ट चेक: क्या मोहन भागवत ने राष्ट्रवाद को नाज़ीवाद और हिटलर से जोड़ा?

मोहन भागवत के नेशनलिज़्म पर दिए बयान पर मीडिया की करामात

सोशल मीडिया और सेलेक्टिव मीडिया किस तरह से अपने हिस्से के सच को जनता के सामने रख कर अपना उल्लू सीधा करता है इसका आज एक और उदाहरण सामने आया है। अमेरिका के मशहूर समाचार पत्र वॉशिंगटन पोस्ट की पूर्व मशहूर प्रकाशक कैथरीन ग्राहम ने पत्रकारिता और ख़बरों को लेकर कहा था- “News is what someone wants suppressed. Everything else is advertising. The power is to set the agenda. What we print and what we don’t print matter a lot.”

इसका हिंदी में अर्थ है- “खबर वह होती है, जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मुद्दे तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते।”

हाल ही में जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में छात्रों द्वारा की गई पत्थरबाजी के आधे वीडियो दिखाने वाले पत्रकारों ने खुद ही खुद को जनता के सामने बेनकाब किया है। और कम से कम इस बात का प्रमाण दे दिया है कि वो दर्शकों को क्या दिखाना चाहते हैं और क्या छुपाना चाहते हैं।

क्या है मामला –

देश का मीडिया गिरोह अपनी धुन पर सवार है और उसने आज यही प्रयोग आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान के साथ दोबारा किया है। हाल ही में उनके एक और बयान को, जिसमें उन्होंने कहा था, “तलाक के अधिक मामले शिक्षित और सम्पन्न परिवारों से सामने आ रहे हैं, क्योंकि शिक्षा और संपन्नता अहंकार पैदा करती है, जिससे परिवार टूट रहे हैं।” मीडिया ने उसे मरोड़कर यह प्रपंच फैलाया कि भागवत ने यह कहा कि पढ़ने-लिखने से तलाक ज़्यादा होता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत आज बृहस्पतिवार (फरवरी 20, 2020) को झारखंड के राँची में एक कार्यक्रम के दौरान जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। मीडिया गिरोह ने मोहन भागवत के इसी कार्यक्रम के दौरान दिए गए भाषण के सिर्फ एक हिस्से को प्रमुखता से प्रकाशित किया है और बताया है कि मोहन भागवत ने ‘राष्ट्रवाद’ को लेकर बड़ा बयान दिया है।

मीडिया गिरोह प्रमुख NDTV ने मोहन भागवत का सीधा-सा अर्थ निकालते हुए अपनी भाषा में हेडलाइन देते हुए लिखा- “RSS चीफ मोहन भागवत बोले- नेशनलिज्म न कहो, क्योंकि नेशनलिज्म का मतलब होता है हिटलर।”

क्या है मोहन भागवत के बयान का सच

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने राँची में कार्यक्रम में हिस्सा लिया, इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में अपनी ब्रिटेन यात्रा का जिक्र करते हुए एक किस्से के माध्यम से राष्ट्रीयता (नेशनलिज़्म/Nationalism) शब्द की व्याख्या करते हुए लोगों से कहा कि शब्दों का चयन अच्छी प्रकार से करना चाहिए क्योंकि इनके अर्थ भिन्न हो सकते हैं।

मोहन भागवत ने अपने भाषण में बताया कि ब्रिटेन में आरएसएस कार्यकर्ताओं से उस दौरान जब उनकी बातचीत हुई, उसी में यह बात निकलकर सामने आई कि बातचीत में शब्दों के अर्थ भिन्न हो जाते हैं। मोहन भागवत ने कहा- “…इसलिए आप नेशनलिज़्म/Nationalism (राष्ट्रवाद) इस शब्द का उपयोग करने से बचें। आप नेशन (राष्ट्र) कहेंगे चलेगा, नेशनल (राष्ट्रीय) कहेंगे चलेगा, नेशनलिटी (राष्ट्रीयता) कहेंगे तो भी चलेगा, मगर नेशनलिज्म (राष्ट्रवाद) न कहो क्योंकि नेशनलिज्म का मतलब होता है हिटलर, नाजीवाद, फासीवाद। ऐसे ही शब्दों का बदलाव हुआ है।”

ब्रिटेन में एक आरएसएस कार्यकर्ता के साथ अपनी बातचीत को याद करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि वहाँ 40 से 50 लोगों से संघ के बारे में उनकी बातचीत हुई थी। उन्होंने कहा- “संघ के कार्यकर्ता ने मुझे कहा कि अंग्रेजी आपकी भाषा नहीं है और इसलिए शब्दों का इस्तेमाल बचकर कीजिएगा। यहाँ पर नेशनलिज्म शब्द की जगह नेशनल कहेंगे तो चलेगा, नेशन कहेंगे तो चलेगा, नेशनलिटी कहेंगे तो चलेगा पर नेशनलिज्म मत कहिएगा। नेशनलिज्म का मतलब हिटलर और नाजीवाद होता है।” 

गौरतलब है कि यह कहने से पहले ही मोहन भागवत यह स्पष्ट कर चुके थे कि शब्दों का अर्थ आज के समय में बदल दिए गए हैं। साथ ही, हमें यह भी देखना होगा कि एक ही शब्द अलग-अलग देश, काल और परिस्थिति में अलग-अलग अर्थ पाते है। ध्यान देने की बात यह है कि भारत में ही विगत कुछ वर्षों में राष्ट्रवाद और फासीवाद शब्दों को वामपंथी मीडिया गैंग से लेकर देश के कथित विचारक वर्ग ने खूब इस्तेमाल किया है। इन शब्दों को इतना इस्तेमाल किया गया है कि ये अब अपने मूल और शाब्दिक अर्थ से अलग माने जाने लगे हैं।

देश के कुछ कथित निष्पक्ष पत्रकार नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर भी अपने प्राइम टाइम में लोगों को फासीवादियों की तरह ही ‘गैस चैंबर’ में बंद कर दिए जाने जैसे रटे-रटाए वाक्यों को रोजाना 9-10 PM के बीच जनता के कानों में ठूँसते देखे गए थे। जाहिर सी बात है कि भ्रामक हेडलाइंस का उदेश्य एक विचारधारा के विरुद्ध लोगों को भर्मित कर अपना उल्लू सीधा करना ही होता है।

इसी के प्रकाश में मोहन भागवत ने राँची में बयान दिया कि उन शब्दों से बचिए, जिनका अर्थ कुछ और ही कर दिया गया है। निश्चित तौर पर मोहन भागवत द्वारा यह बात एक तरह से वहाँ मौजूद जनसभा को दिशा-निर्देशित करने के उद्देश्य से कही गई थी।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का पूरा भाषण नीचे दिए गए वीडियो में सुन सकते हैं। भाषण के शुरू में ही मोहन भागवत स्पष्ट कहते सुने जा सकते हैं कि शब्दों का अर्थ बदलता जा रहा है। इसके बाद ही उन्होंने बताया है कि राष्ट्रवाद शब्द के इस्तेमाल करने पर आपके कथन का सीधा अर्थ फासीवाद और नाजीवाद से जोड़ दिया जाता है। इसलिए इसके प्रयोग से बचना चाहिए। हम अक्सर खबरों में देखते आए हैं कि राष्ट्रवाद या नेशनलिज़्म जैसे शब्दों का प्रयोग करते ही विरोधी अपने एजेंडे को अक्सर आगे कर देते हैं।

यह वीडियो देखने से पता चलता है कि मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा चलाई जा रही हेडलाइन भ्रामक और बेहद चालाकी से संघ के खिलाफ इस्तेमाल करने के उद्देश्य से चलाई जा रही है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया