कौन बनेगा PM और कैबिनेट में होगा कौन… चुनने का आख़िरी मौक़ा सिर्फ़ यहाँ!

पीएम बनने के बाद हाथ हिलाते राहुल गाँधी जी (फोटो साभार : सपने का दोष)

तारीख़ – 27 मई
साल – 2019
दिन – सोमवार

पंचांग देखेंगे तो तो इस दिन में अशुभ काल शुभ समय पर भारी है। लेकिन सोमवार तो भोलेनाथ का दिन है। और बंदा ठहरा महाकाल का भक्त – एकदम औघड़। कसौल वाली हाई क्वॉलिटी माल का अखण्ड धुआँ छोड़ते हुए चिल्लाया – ‘अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का।’

औघड़ कौन? वही, जिसने महागठबंधन को बाँध कर रखने वाली बूटी दी। जो अलीगढ़ के वशीकरण और #@$करणी वाले बाबाओं का बाबा है। हाँ, हाँ… भगंदर-फिशर शाही दवाखाना वाला! अब इनकी बूटी तो काम आनी ही थी। सो आ गई।

चारों ओर जीत का शंखनाद फूँका जा रहा है। देश को ‘संघी-सांप्रदायिक’ ताक़तों से छुटकारा मिल गया है। समाजवाद-लालवाद-बेटावाद-दाढ़ीवाद से लेकर दीदी-बुआवाद सब मिलकर अब माल-वाद की मलाई खाएँगे।

लेकिन कौन कितना खाएगा? इस समस्या के समाधान के लिए 48 साल के चिर-युवा नेता राहुल गाँधी जी ने ऑपइंडिया को अपना पार्टनर चुना है। वो क्या है कि उनका शक्ति ऐप छोटा भीम लेकर भाग गया है। ख़ैर! हम उनको देंगे समाधान, लेकिन माध्यम होंगे आप। क्योंकि राहुल जी को ‘लोकतंत्र’ में है विश्वास! और कैबिनेट भी वो ‘लोकतांत्रिक’ तरीके से ही चुनेंगे। तो शुरू करते हैं पहले सवाल से…


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अब ज़रा इनके प्रोफ़ाइल को भी देख लें। देश वाली बात है, ग़लती की कोई गुंजाइश नहीं।

राहुल गाँधी – ‘गिनीज़ बुक’ में दर्ज़ महाकाल के सबसे असली वाले भक्त। कैलाश पर्वत को 2 दिन में नाप देने वाला ‘पैर’बली। पिछत्तीस से एक ज़्यादा राज्य के अकेले राजकुमार। PM जैसा देखने में लगने वाला अखण्ड भारत का अकेला चेहरा।

ममता बनर्जी – माँ, माटी, मानुष को लाल सलाम से ‘मुक्ति’ दिलाने वाली क्रांति की मसीहा। यह अगर राजनीति में नहीं आतीं तो वेस्ट बंगाल में कुछ भी ‘बेस्ट’ नहीं होता। दुर्गा पूजा पंडालों पर इनके काम को देखकर यूनाइटेड नेशन्स ने इन्हें ‘धरोहर’ की संज्ञा दी है।

मायावती – हाथियों का कष्ट इनसे देखा नहीं जाता। जंगल में उन्हें ठंड न लगे, इस कारण से उनके लिए पार्क बनवा दिया। अब सब हाथी बड़े मज़े में वहाँ खड़े रहते हैं। अपने जन्मदिन पर खुद केक न खाकर भूखे-नंगों को खिलाने की वज़ह से यह कलियुग की ‘लेडी कर्ण’ हैं।

अखिलेश – युवा हैं। लोग इन्हें प्यार से भैया कहते हैं। और डिंपल जी को ‘भाभी’। डिंपल जी इनकी धर्मपत्नी हैं। अपने पिताजी की ‘असाध्य सेवा’ करने के कारण राजनीति के गलियारों में इन्हें श्रवण कुमार कहा जाने लगा है।


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एमके स्टालिन – नाम से ही भारी-भरकम लगते हैं। दुश्मन देश पहले से ही डर जाएगा। भ्रष्टाचार इनके परिवार को ‘छू’ तक नहीं पाया है।

फ़ारुक़ अब्दुल्ला – सीमांत प्रदेश से आते हैं। मतलब भारत की रक्षा करना इनके ख़ून में है। जम्मू-कश्मीर अगर आज ‘स्वर्ग’ है, तो इनके परिवार की ही बदौलत।

शत्रुघ्न सिन्हा – ख़ैर… इनका तो नाम ही शॉटगन है। अपने-आप में रक्षा-सुरक्षा कवच। इनका ‘ख़ामोश’ बोलना और बॉर्डर का सिक्यॉर होना – आधुनिक हिन्दी व्याकरण में पर्यायवाची के तौर पर संकलित कर लिया गया है।


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जयंत चौधरी – लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनमिक्स से पढ़े हैं। लेकिन ‘बात’ खेती-किसानी की करते हैं। इनके पापा अजित सिंह भी खुद को ‘किसानों’ का ही नेता मानते हैं।

शरद पवार – बाप रे! हम-आप जो चीनी खाते-पीते हैं, वो इनकी ही देन है। जैसे हम माँ का कर्ज़, दूध का कर्ज़ नहीं चुका सकते, ठीक उसी तरह पवार साब की ‘चीनी का कर्ज़’ शायद ही कभी चुकाया जा सके।

एचडी देवगौड़ा – अब ये तो पीएम भी रह चुके हैं – 325 दिन तक। किसान-पुत्र हैं। फ़िलहाल बेटे के ग़म में डूबे रहते हैं। सुना है इनका बेटा ‘क्लर्क’ है।


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तेजस्वी यादव – अखण्ड भारत के इतिहास में सबसे ‘ऊँची 9वीं कक्षा’ तक शिक्षा ग्रहण की। मतलब ये जहाँ खड़े होते हैं, शिक्षा वहीं से शुरू होती है। इनके पप्पा का नाम लालू यादव है। विपक्ष की ‘साज़िश’ के कारण जेल में हैं। वैसे शोले वाली मौसी बता के गईं हैं कि सीधे आदमी हैं।

हार्दिक पटेल – युवा दिलों की धड़कन हैं। शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थियों से इतना लगाव कि दो बार में ग्रैजुएशन पास किया। नंबर 50 फ़ीसदी से कम ही आए, लेकिन वो विपक्ष की ‘साज़िश’ थी।

हेमंत सोरेन – भारत के सबसे यंग मुख्यमंत्री का रिकॉर्ड रखते हैं… और क्या चाहिए भाई! वैसे इंटरमीडिएट तक पढ़े हैं। उसके बाद पूरी जवानी ‘राज्य-हित’ में झोंक दी।


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शशि थरूर – इनके बाल बहुत सिल्की हैं। फांय-फांय अंग्रेज़ी बोलते हैं। मतलब महिलाओं को अच्छे लगते हैं। और हाँ… महिलाओं का कल्याण तो छोड़िए, उन्हें मोक्ष दिलाने को ये किसी भी ‘हद’ तक चले जाते हैं।

ममता बनर्जी और मायावती के प्रोफ़ाइल को दोबारा पढ़ने की हिम्मत रखने वाले ‘वीर’ कृपया ऊपर जाकर पढ़ें।


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(Error-404… के कारण सभी विकल्प राहुल गाँधी को ही दिखा रहा है। वित्त का प्रभार सिर्फ़ गाँधी फैमिली के पास हो, कम्प्यूटर जी ऐसी मंशा नहीं है।)

PS: सभी प्रश्नों में राहुल गाँधी जी को विकल्प के तौर पर रखने का मक़सद उस पद की गरिमा को कम आँकना नहीं है बल्कि यह दर्शाता है कि गाँधी की जेनेटिक्स के कारण उनमें वो सभी गुण हैं, जो किसी भी पद के लिए फिट है। मतलब गाँधी से पद है, पद से गाँधी नहीं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया