BHU प्रशासन का सफ़ेद झूठ: क्या VC गैर-हिन्दुओं से जुड़े इन ‘संवैधानिक बिंदुओं’ का जवाब दे पाएँगे?

BHU कुलपति राकेश भटनागर के जवाबों से असंतुष्ट SVDV के छात्र, पूछे कई काउंटर सवाल

काशी हिन्दू विश्विद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय (SVDV) के आंदोलनकारी छात्रों का अनिश्चित कालीन धरना संकाय के प्रवेश द्वार पर जारी है। बता दें कि BHU प्रशासन के बिना प्रमाण के दिए जवाबों से SVDV के छात्रों में घोर असंतुष्टि है। चक्रपाणि ओझा, शशिकांत मिश्र, आनंद मोहन झा, कृष्ण कुमार, शुभम सहित सभी धरनारत छात्रों ने कुलपति राकेश भटनागर के समक्ष कई गंभीर प्रश्न उठाए हैं। छात्रों ने इससे पहले SVDV के साहित्य विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर उमाकांत चतुर्वेदी द्वारा दिए गए आधे-अधूरे जवाबों पर भी कई काउंटर सवाल (प्रति-प्रश्न) किए थे और BHU प्रशासन से सभी प्रश्नों का समुचित जवाब माँगा था।

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प्रशासन ने तो कोई प्रमाण नहीं दिया लेकिन आज संकाय के छात्रों की तरफ से ऑपइंडिया को कई महत्वपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराए गए हैं जिन्हें देखकर संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में किसी गैर हिन्दू की नियुक्ति से छात्रों को क्यों आपत्ति है? क्यों वे सनातन परम्पराओं और मालवीय मूल्यों की लड़ाई लड़ रहे हैं? क्यों वे संकाय में एक मुस्लिम प्रोफ़ेसर डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं और क्यों किसी गैर हिन्दू को अपना गुरु नहीं मानना चाहते हैं?

SVDV के छात्रों के BHU प्रशासन पर आरोप, आपत्तियाँ और प्रमाण

धरनारत आंदोलनकारी छात्रों का कहना है, “संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के छात्रों ने संकाय में नियम, विधि, परंपरा एवं बीएचयू एक्ट के विरुद्ध जाकर कुलपति से एक गैर हिन्दू अध्यापक की नियुक्ति का कारण पूछा तो कुलपति राकेश भटनागर और उनके झूठे प्रशासन ने अपनी गर्दन बचाने के लिए 10 दिन की मोहलत माँगने के बावजूद एक झूठ का पुलिंदा जवाब के रूप में छात्रों के हाथ में थमाकर पूरे मामले से इस तरह पल्ला झाड़ लिया कि मानो सब कुछ यूजीसी के नियमों के अन्तर्गत हुआ है जिसे बीएचयू एक्ट की स्वीकृति भी प्राप्त है।”

छात्रों ने कुलपति से सवाल किया:

  • प्रशासन के पास इस सवाल का क्या जवाब है कि आखिर बीएचयू एक्ट की धारा 4 में जो परन्तुक या अपवाद ‘धार्मिक शिक्षा’ अर्थात ‘religious instruction’ को लेकर लिखा गया है उसका तात्पर्य वास्तव में क्या है?
  • इस परन्तुक या अपवाद के आधार पर बीएचयू में धार्मिक शिक्षा किस संकाय द्वारा, किसे व किस रूप में दी जा रही है?
  • यह परन्तुक या अपवाद आज भी बीएचयू एक्ट का हिस्सा क्यों है?

छात्रों का कहना है, “आज सारा विश्वविद्यालय प्रशासन जो कुलपति राकेश भटनागर के डर से चुप है लेकिन वह दबी जुबान जानता है और मानता भी है कि इस परन्तुक या अपवाद के आधार पर ही बीएचयू का धार्मिक शिक्षा का मामला सभी मत-मजहब के लिए नहीं खुला है, इसी के कारण धर्मविज्ञान संकाय में विगत 100 साल से किसी गैरहिन्दू शिक्षक की नियुक्ति नहीं हो सकी थी। इस नियम को दोबारा पढ़ना और प्रशासन को पढ़ाना और समझाना आवश्यक हो गया है।”

BHU Act-1951 एवं सभी संशोधनों में सम्मिलित नियम के अनुसार:

SVDV के छात्रों का कहना है, “कुलपति प्रो. राकेश भटनागर जेएनयू से आए हैं और इन्हें अंग्रेजी भी बहुत अच्छी आती है तो क्या उन्हें मालूम है कि धारा चार धार्मिक शिक्षा के मामले में बीएचयू को विशेष अधिकार दे रहा है कि धार्मिक शिक्षा सभी मत-मजहब के लिए नहीं खुली है। इस अनुच्छेद के अनुसार, इस धारा की कोई भी बात पूर्वादेश से दी जा रही धार्मिक शिक्षा पर लागू नहीं होती है। पूर्वादेश यानी अध्यादेश अर्थात कुलपति प्रो. राकेश भटनागर इस अनुच्छेद की पंक्तियों में लिखे “Ordinances” शब्द की मनमानी व्याख्या कर रहे हैं कि यह तो संसद का अध्यादेश है, और संसद ने यूजीसी के द्वारा हमें नियुक्ति का अधिकार भी दिया है। कुलपति महोदय को बीएचयू एक्ट की धारा दो (2-परिभाषा) जिसमें विधिक शब्दों की परिभाषा दी गई है, इसमें ऑर्डिनेंस की परिभाषा भी वर्णित है जिसका तात्पर्य है कि विश्वविद्यालय के द्वारा लागू किया जाने वाला पूर्वादेश।”

अंग्रेजी में लिखा है:



छात्रों का यहाँ कहना है, “अब प्रश्न है कि विश्वविद्यालय का वह ऑर्डिनेंस कौन सा है? कब जारी किया गया है? किसने जारी किया था जिसके द्वारा बीएचयू एक्ट-1951 में लिखा गया है कि….”

धरनारत छात्रों का सवाल है, “बीएचयू प्रशासन को उस ऑर्डिनेंस को देश के सामने प्रस्तुत करना चाहिए जिसके जरिए बीएचयू में धार्मिक शिक्षा बीएचयू एक्ट-1951 में संशोधन के पूर्व से दी जा रही थी, इसीलिए संसद को संशोधन के समय लिखना पड़ा कि “religious instruction being given.” अर्थात वह धार्मिक शिक्षा अर्थात, दी जा रही धार्मिक शिक्षा रोकी नहीं जाएगी। बीएचयू एक्ट-1915 में हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसायटी-1904 को उसकी सभी शक्ति, नियम एवं संपत्ति के साथ विलीन किया गया था। बीएचयू एक्ट में अब तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सभी में सबसे पहले इस तथ्य का वर्णन आता है।”

इसे निम्नांकित रूप से समझ सकते हैं:

“इस प्रकार से बीएचयू एक्ट के प्रथम अध्याय में ही उपर्युक्त पंक्तियाँ सबसे ऊपर वर्णित हैं कि बीएचयू एक्ट में हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसायटी का विलय उसकी संपूर्ण शक्तियों और संपत्ति के साथ हो गया है। यूनिवर्सिटी सोसायटी-1904 में बीएचयू की स्थापना के जो उद्देश्य निर्धारित किए गए थे, वह आज भी बीएचयू की उद्देशिका हैं।”

इसके अनुसार:

छात्रों ने आगे बताया, “बीएचयू की स्थापना के उपर्युक्त चार उद्देश्य आज भी यथावत हैं। इस सोसायटी के नियम क्रमांक-8 में लिखा है कि- संस्कृत महाविद्यालय का धर्मशास्त्र विभाग धर्मशास्त्र संकाय के नियंत्रण में रहेगा और इसका संचालन शास्त्रों द्वारा यथानिर्धारित हिन्दू धर्म के सिद्धांतों के अनुसार न्यासी परिषद द्वारा बनाए गए नियमों के अन्तर्गत होगा। नियम क्रमांक-9 के अनुसार, धर्मशास्त्र संकाय में प्रवेश, परीक्षा एवं उपाधि हेतु सभी नियम संकाय द्वारा स्वयं ही निर्धारित किया जाएगा। सोसायटी के नियम क्रमांक-11 में लिखा है कि धर्मशास्त्र संकाय को छोड़कर विश्वविद्यालय के समस्त महाविद्यालय, विद्यालय एवं संस्थान सभी मत-मजहबों एवं वर्गों के लोगों के लिए खुले रहेंगे।”

“काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सनातन हिन्दू धर्म की धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाला संस्थान विशेष रूप से होना चाहिए, इसका वर्णन हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसायटी-1904 के साथ-साथ बीएचयू एक्ट-1915 में भी भलीभाँति वर्णित है। बीएचयू एक्ट-1915 के अनुच्छेद चार में लिखा है कि- विनियमों के अधीन, यह विश्वविद्यालय सभी वर्ग, जाति और पंथ के व्यक्तियों के लिए खुला होगा किन्तु, केवल हिन्दू धर्म से संबंधित धार्मिक शिक्षा प्रदान करने और तत्सबंधी परीक्षा संचालित करने के लिए विशेष प्रावधान किया जाएगा।”

“बीएचयू के संशोधित एक्ट-1951 ने बीएचयू के मूल एक्ट-1915 के इसी प्रावधान को, जिसे 1917 में ही अमलीजामा पहनाते हुए फैकल्टी ऑफ थियोलॉजी अर्थात धर्मविज्ञान संकाय के रूप में क्रियान्वित कर दिया गया था, के अन्तर्गत प्रदान की जा रही धार्मिक शिक्षा को सभी मत-पंथों के लिए खुला रखने वाले अनुदेश से अलग कर स्पष्टतया रेखांकित कर दिया था कि बीएचयू सभी मत-मजहब के लिए खुला रहेगा किन्तु यह बात धार्मिक शिक्षा पर लागू नहीं होगी। धार्मिक शिक्षा के प्रावधान को संसद द्वारा पारित बीएचयू एक्ट-1915 के अन्तर्गत बीएचयू की अनेक विधिक समितियों ने, तत्कालीन बीएचयू कोर्ट (सर्वोच्च नीति निर्धारिक समिति) और बीएचयू कार्यकारिणी और सीनेट ने अपनी बैठकों, संकल्पों के द्वारा स्पष्ट किया है।”

BHU एक्ट-1915 के अन्तर्गत पारित स्टेट्यूट-65 के अनुसार:

आंदोलनकारी छात्रों का कहना है कि उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि बीएचयू की स्थापना के समय से ही धर्म की शिक्षा का विषय सनातन हिन्दू वैदिक, जैन-सिख और बौद्ध आदि के लिए विशेष रूप से निर्मित किया गया था। इसके लिए विशेष रूप से धर्मविज्ञान संकाय की स्थापना भी सबसे पहले संकाय के रूप में की गई। इस संकाय में अध्यापकों की नियुक्ति के विषय में भी समय-समय पर नियम-निर्देश किए गए।”

बीएचयू के पोर्टल पर संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय की स्थापना का जो उद्देश्य लिखा है उसमें वर्णित है:

“इसमें लिखा है कि संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकाय की स्थापना विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा विश्वविद्यालय स्थापना के मुख्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए की गई थी; प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अध्ययन को संरक्षित एवं उन्नत करने के लिए। इस प्रकार यह संकाय अपनी प्रकृति में विलक्षण है। यहाँ शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन-अध्यापन प्राचीन ज्ञान परंपरा की पद्धति के अनुसार,- वाचिक और लिखित परंपरा दोनों समेत, कड़ाई से परंपरा का पालन करते हुए किया जाता है।”

छात्रों का कहना है, “अब यहाँ प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि प्राचीन परंपरा और उससे जुड़े कर्मकांड, वाचिक एवं अन्य धार्मिक पद्धतियों का पालन क्या गैरहिन्दू भी उसी भाव-भावना से कर सकेगा जिस भाव-भावना से इस संकाय की स्थापना का उद्देश्य विश्वविद्यालय ने स्थान-स्थान पर घोषित कर रखा है।”

“किसी गैर-हिन्दू की शिक्षण कार्य में नियुक्ति किस कारण से प्रतिबंधित रखी गई थी, क्या विश्वविद्यालय के उद्देश्य और संकाय की स्थापना के उद्देश्य को पढ़ने के बाद इसमें कोई शंका शेष रह जाती है? इस सन्दर्भ में 1919 में उठे एक विवाद का सन्दर्भ देखना समीचीन है। 7 मार्च 1919 को धर्मविज्ञान संकाय द्वारा संकाय में अध्यापकों की नियुक्ति के सन्दर्भ में पारित प्रस्ताव में कहा गया था कि- केवल प्राचीन परंपरा से सदाचार और धार्मिक नियमों का पालन करने वाले आचार निष्ठ ब्राह्मण ही धर्म की शिक्षा देने के लिए संकाय में नियुक्त किए जा सकते हैं।”

“धर्म विज्ञान संकाय के उपर्युक्त प्रस्ताव के विरुद्ध डॉ. भगवान दास एवं स्वयं महामना मालवीय जी ने प्रश्न उठाया कि योग्य गैर ब्राह्मण हिन्दू भी अगर उपलब्ध होते हैं तो उन्हें धार्मिक शिक्षा से जोड़ा जाना चाहिए। इस प्रकार 14 दिसंबर 1921 को बीएचयू कोर्ट के द्वारा संकल्प पारित किया गया कि धर्मविज्ञान संकाय में अध्यापकों की नियुक्ति हिन्दू धर्म में से उदारतापूर्वक (आचारनिष्ठ ब्राह्मण के साथ आचारनिष्ठ गैर ब्राह्मण हिन्दू समुदाय में से भी) मानव धर्मशास्त्र के अनुसार, बिना किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाए की जाएगी।”

“इस प्रकार से धर्मविज्ञान संकाय में प्रवेश, नियुक्ति एवं अध्ययन की पाठ्य सामग्री हेतु विश्वविद्यालय ने ऑर्डिनेंस पारित किया जिसका उल्लेख आजतक सभी संशोधित बीएचयू एक्ट में सम्मिलित है। प्रश्न है कि उक्त ऑर्डिनेंस की पूरे सत्य स्वरूप में सभी के सामने रखने के बजाए बीएचयू के कुलपति राकेश भटनागर यूजीसी आदि के सर्कुलर का हवाला देकर देश को भ्रमित कर रहे हैं। जबकि सच्चाई यही है कि धर्मविज्ञान संकाय के मामले में संसद द्वारा पारित बीएचयू एक्ट के अनुच्छेद चार में उल्लिखित धार्मिक शिक्षा यानी religious instruction ही वास्तविक विधि है जिसके द्वारा गैर हिन्दू शिक्षक की धर्मविज्ञान संकाय में नियुक्ति प्रतिबंधित है क्योंकि अनुच्छेद चार के द्वारा धार्मिक शिक्षा का क्षेत्र सभी मत-मजहबों के लिए अधिकृत नहीं है।”

“स्पष्ट है कि यह विधिमान्य नियम परंपरा के रूप में चला आ रहा है कि संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के शिक्षकों की नियुक्ति में गैर-हिन्दू हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसायटी एवं बीएचयू एक्ट-1915 के प्रावधानों के कारण नियमतः अवसर नहीं पा सकते। ये नियम आज भी अस्तित्व में हैं और बीएचयू के सभी संशोधित एक्ट में इनकी उपस्थिति का संकेत सीधे तौर पर अनुच्छेद चार में किया गया है। यह अवश्य है कि बीएचयू एक्ट के अन्तर्गत गैरहिन्दू अध्यापक संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय छोड़कर कला संकाय, आयुर्वेद संकाय, संगीत संकाय समेत अन्य दूसरे संकायों और महाविद्यालयों के संस्कृत से जुड़े विभाग में अध्ययन-अध्यापन कर सकते हैं।”

संस्कृत विद्या धर्म संकाय के बाहर डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति का विरोध कर रहे धरनारत छात्रों ने BHU प्रशासन एवं कुलपति राकेश भटनागर से इन प्रमाणों के मद्देनजर कुछ और महत्वपूर्ण सवाल पूछे हैं, जिनका जवाब उन्हें प्रशासन से चाहिए।

SVDV के छात्रों का कुलपति से सवाल

  1. बीएचयू प्रशासन को यदि यह तथ्य अभी भी नहीं स्वीकार हैं तो उसे स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर बीएचयू एक्ट-1951 एवं सभी संशोधित अधिनियमों के अन्तर्गत उल्लिखित ‘धार्मिक शिक्षा’ का स्वरूप क्या है?
  2. एक्ट में उल्लिखित ‘धार्मिक शिक्षा’ का ‘ऑर्डिनेंस’ अथवा पूर्वादेश या नियम बीएचयू में कहाँ किस संकाय के तत्वावधान में क्रियान्वित किया जा रहा है?
  3. कौन क्रियान्वित कर रहा है?
  4. कहाँ और किस प्रकार से क्रियान्वित कर रहा है?
  5. किसे ‘धार्मिक शिक्षा’ बीएचयू में आज भी दी जा रही है?
  6. किसके द्वारा दी जा रही है?
  7. कब से दी जा रही है?
  8. नहीं दी जा रही है तो क्यों नहीं दी जा रही है?
  9. कुलपति और बीएचयू प्रशासन बताए कि बीएचयू की स्थापना के उद्देश्यों की प्रथम पंक्ति के प्रथम वाक्यांश में उल्लिखित हिन्दू शास्त्रों की उन्नति, हिन्दू विचार और संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य का परिपालन परिसर में किस रूप में और कहाँ पर किया जा रहा है?
  10. अगर संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय ‘धार्मिक शिक्षा’ के नियम के अन्तर्गत नहीं आता है तो बीएचयू का कौन सा संकाय या विभाग ‘धार्मिक शिक्षा’ के नियम के दायरे में आता है?
  11. अगर कोई भी संकाय या विभाग ‘धार्मिक शिक्षा’ के नियम के दायरे में नहीं आता है तो फिर धार्मिक शिक्षा दिए जाने का उल्लेख बीएचयू एक्ट में आज भी क्यों उल्लिखित है?

गौरतलब है कि इससे पहले डॉ. फिरोज खान की SVDV में नियुक्ति में गड़बड़ी और BHU प्रशासन और कुलपति राकेश भटनागर, साहित्य विभाग के विभागाध्यक्ष उमाकांत चतुर्वेदी द्वारा नियुक्ति में की गई लापरवाही सहित धाँधली तक जैसे कई आरोपों के विरोध में 7 से 21 नवंबर तक पहले भी कुलपति आवास के सामने छात्र धरने पर बैठे थे। छात्रों से धरना समाप्त करने के अनुरोध के साथ प्रशासन ने उनकी माँगों पर दस दिन के भीतर जवाब देने की लिखित सहमति दी थी।

30 नवंबर को दस दिन बीतने के बाद सोमवार (दिसंबर 2, 2019) को साहित्य विभाग के विभागाध्यक्ष ने जो अधूरा जवाब दिया था, उससे छात्र सहमत नहीं हुए, और विरोध में पुनः धरने पर बैठ गए। BHU प्रशासन के बिना किसी प्रमाण के आधेअधूरे जवाब से असंतुष्ट हैं और प्रशासन से कई काउंटर प्रश्न कर चुके हैं। SVDV संकाय में पठन-पाठन पहले से ही बंद है। साथ ही छात्रों ने 5 दिसंबर से होने वाली परीक्षा का बहिष्कार करने की भी चेतावनी दी है, जिसके मद्देनजर अभी परीक्षा की नई तिथि 10 दिसंबर कर दी गई है।

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जब ऑपइंडिया ने छात्रों से इस नए परीक्षा की तिथि पर बात की तो छात्रों की तरफ से शशिकांत मिश्र ने बताया, “यदि BHU प्रशासन इस समस्या का उपरोक्त वर्णित प्रमाणों, BHU एक्ट, मालवीय जी के मूल्यों, संकाय के उद्देश्यों के अनरूप कोई समाधान नहीं निकालता है तो हम सभी छात्र इस परीक्षा की तिथि का भी बहिष्कार करने पर अडिग हैं। हमारा धरना इस बार किसी आश्वासन पर नहीं बल्कि इस समस्या के पूर्ण समाधान के साथ ख़त्म होगा।”

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