Friday, November 22, 2024
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9 महीने रोज 15 घंटे काम, दुर्घटना में पिता चल बसे फिर भी पूरी की शंकराचार्य की प्रतिमा: मिलिए MBA पास मूर्तिकार अरुण योगीराज से

उनका सपना अपने पूर्वजों की तरह मूर्तिकार बनना नहीं था और 2008 में मैसूर विश्वविद्यालय से MBA की डिग्री लेने के बाद वो एक प्राइवेट कंपनी के लिए कार्य कर रहे थे। लेकिन, उनके दादा ने बचपन में ही भविष्यवाणी की थी कि अरुण बड़े होकर हाथों में औजार उठाएँगे और कलाकारों के इस परिवार का नाम और ऊँचा करेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धुकरवार (5 नवंबर, 2021) को उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में जगद्गुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल पर उनकी भव्य प्रतिमा का अनावरण किया। दक्षिण से हिमालय तक की यात्रा कर के भारतीय सभ्यता में भक्तिभाव को पुनर्जीवित करने वाले आदि गुरु की इस प्रतिमा का निर्माण मूर्तिकार अरुण योगीराज ने किया है। 12 फुट की इस पत्थर की प्रतिमा को उन्होंने मैसूर के सरस्वतीपुरम में गढ़ा। अरुण योगीराज का कहना है कि ये उनके लिए ख़ुशी का क्षण है।

कभी उन्होंने सोचा भी नहीं है कि वो प्रतिमाएँ बनाने के लिए अपने हाथों में औजार उठाएँगे, लेकिन अब उनकी बनाई प्रतिमाएँ हिन्दू धर्म और भारत देश का मस्तक गर्व से ऊँचा करती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कार्य के लिए उन्हें चुना था। अरुण योगीराज का कहना है कि ये एक बड़ी जिम्मेदारी थी। ऐसा इसीलिए, क्योंकि पीएम मोदी की निगरानी में ये सब हो रहा था और वो हर गतिविधि के अपडेट्स लेते थे। पहले उन्होंने 2 फुट का मॉडल तैयार किया था।

उन्होंने दक्षिण भारत में शंकराचार्य की अन्य प्रतिमाओं को देखा और उनका अध्ययन किया। उन्होंने शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों और अन्य धार्मिक स्थलों के विद्वानों से बात की। PMO ने प्रतिमा कैसी होनी चाहिए ये उन्हें बता दिया है, लेकिन रिसर्च के हिसाब से बदलाव करने की उन्हें पूरी छूट थी। ये प्रतिमा ब्लैक क्लोराइट शीस्ट की ‘कृष्ण शिला’ से बनी है, जिसका उपयोग हजारों वर्षों से होता रहा है। कर्नाटक के एचडी कोटे से इसे लाया गया है। ये प्रकृति की भीषण मार झेलने में भी सक्षम है। 37 वर्षीय अरुण योगीराज ने 9 महीने रोज 14-15 घंटे की मेहनत की, जो अब सफल हुई है।

अरुण योगीराज को इसे तैयार करने में महीनों लगे। उनकी मानें तो ये ऐसा था, जैसे किसी को जन्म देना। उनके पिता और दादा भी मूर्तिकार रहे हैं। मूर्तिकारों की पाँचवीं पीढ़ी में जन्मे अरुण योगीराज के पूर्वजों को मैसूर राजपरिवार का संरक्षण प्राप्त था। उनके पिता योगीराज शिल्पी अपने पिता बी बसवन्ना शिल्पी की 8 संतानों में से एक थे। अरुण उनके 17 पोते-पोतियों में से एक हैं। अरुण के पिता गायत्री और भुवनेश्वरी मंदिर के लिए कार्य कर चुके हैं।

कृष्णा राजा सागर बाँध पर कावेरी की प्रतिमा उनके दादा ने ही बनाई थी। बसवन्ना शिल्पी श्री सिद्धलिंगा स्वामी के छात्रों में से एक थे। सिद्धलिंगा स्वामी ने ही बेंगलुरु के विधान सौधा गुम्बदों को डिजाइन किया है। वो मैसूर राजपरिवार के प्रमुख शिल्पी थे। बसवन्ना ने मात्र 10 वर्ष की आयु में 1931 में उनके गुरुकुल में शिक्षा आरंभ की और अगले 25 वर्षों तक वहाँ कड़ा प्रशिक्षण लिया। 1953 में वो मठ से बाहर निकले और स्वतंत्र कार्य शुरू किया। अरुण योगीराज की कहानी अलग है। अब तक उन्हें निम्नलिखित सम्मान मिल चुके हैं:

  • 2014 में केंद्र सरकार द्वारा युंग टैलेंट अवॉर्ड
  • मैसूर डिस्ट्रिक्ट अथॉरिटी और कर्नाटक सरकार द्वारा राज्योत्सव अवॉर्ड
  • शिल्पकार संघ द्वारा शिल्प कौस्तुभ अवॉर्ड (पहली बार किसी युवा मूर्तिकार को ये सम्मान मिला)
  • मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने इन्हें सम्मानित किया
  • संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफ़ी अन्नान ने न सिर्फ उनके काम को वहाँ जाकर देखा, बल्कि उनकी प्रशंसा भी की
  • मैसूर राजपरिवार द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया
  • मैसूर डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स अकादमी ने उन्हें सम्मानित किया
  • अमर शिल्पी जकनकारी ट्रस्ट द्वारा सम्मान
  • मैसूर विश्वविद्यालय के कुलपति ने भी उन्हें सम्मानित किया

उनका सपना अपने पूर्वजों की तरह मूर्तिकार बनना नहीं था और 2008 में मैसूर विश्वविद्यालय से MBA की डिग्री लेने के बाद वो एक प्राइवेट कंपनी के लिए कार्य कर रहे थे। लेकिन, उनके दादा ने बचपन में ही भविष्यवाणी की थी कि अरुण बड़े होकर हाथों में औजार उठाएँगे और कलाकारों के इस परिवार का नाम और ऊँचा करेंगे। 37 वर्षों बाद ये सच हो गई है। अरुण के पिता की हाल ही में एक दुर्घटना में मौत हो गई थी। लेकिन, उससे पहले उन्होंने शंकराचार्य की प्रतिमा को पूरे होते देखा था और आँखों में आँसू भर कर बेटे को आशीर्वाद दिया था। अरुण योगीराज ने अब तक इन कार्यों को अपने हाथों में लिया और पूरा किया है:

  • मैसूर में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की आदमकद प्रतिमा
  • एक ही चट्टान से काट कर बनाई गई बृहत नंदी की 6 फुट की प्रतिमा
  • स्वामीजी शिवकुमार की 5 फ़ीट की प्रतिमा
  • माँ बनष्करी की 6 फ़ीट ऊँची प्रतिमा
  • हाथों से डिजाइन किए गए कई मंडपों और पत्थर के स्तंभों का निर्माण
  • मैसूर में बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की लाइफ साइज प्रतिमा, जिसे सफ़ेद संगमरमर से गढ़ा गया था
  • महाराजा जयचमराजेंद्र वुडेयार की 14.5 फ़ीट की प्रतिमा, जो सफ़ेद संगमरमर से ही बनाई गई थी
  • मैसूर विश्वविद्यालय में सोपस्टोन से बनी एक कलाकृति
  • मैसूर में ही भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की प्रतिमा
  • केआर नगर में योगनरसिंह स्वामी की 7 फीट लम्बी प्रतिमा
  • आंध्र प्रदेश में माहेश्वरी माता की इतनी ही ऊँची प्रतिमा
  • महान इंजिनियर विश्वेश्वरैया और डॉक्टर आंबेडकर की कई प्रतिमाएँ
  • सोपस्टोन से महाविष्णु की 7 फीट ऊँची प्रतिमा
  • भगवान बुद्ध की प्रतिमा कई अलग-अलग डिजाइनों में
  • पंचमुखी गणपति की प्रतिमा
  • 5 फीट ऊँची स्वामी शिवबाला योगी की प्रतिमा
  • सोपस्टोन से भगवान शिव की 6 फ़ीट ऊँची प्रतिमा

अरुण योगीराज ने मैसूर में 14.5 फ़ीट की महाराजा जयचमराजेंद्र वोडेयार की संगमरमर की प्रतिमा बनाई थी। साथ ही वो रामकृष्ण परमहंस की प्रतिमा भी बना चुके हैं। भगवान शिव की सवारी नंदी, हनुमान, भगवान वेंकटेश्वर और महान इंजीनियर विश्वेश्वरैया के अलावा वो 5.5 फ़ीट की गरुड़ की प्रतिमा भी बना चुके हैं। अब उनकी बनाई आदिगुरु शंकरचार्य की प्रतिमा भगवान शिव की नगरी केदारनाथ की शोभा बढ़ा रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी कला के मुरीद हो गए हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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