राजस्थान के उदयपुर में ईडाणा माता का शक्तिपीठ है। यह जगह माता के अग्निस्नान के लिए प्रसिद्ध है। अग्निस्नान की कोई तिथि तय नहीं है। कभी भी अपने आप अग्नि प्रकट होती और फिर खुद ही बुझ भी जाती है।
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक सोमवार (28 मार्च 2022) को माता ने अग्निस्नान किया। सुबह के करीब 11:30 बजे देखते ही देखते मंदिर परिसर में ऊँची-ऊँची आग की लपटें उठनी शुरू हो गईं। यह अग्निस्नान लगभग 15 मिनट तक चला। इस दौरान श्रृंगार, चढ़ावा और वस्त्र जलकर भस्म हो गए। लेकिन मूर्ति को तनिक भी नुकसान नहीं पहुँचा। इसे देखने के लिए काफी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। जानकारी के अनुसार यह अग्निस्नान तकरीबन एक साल बाद हुआ है।
इससे पहले ईडाणा माता ने 9 मार्च 2021 की शाम 4 बजे अग्निस्नान किया था। इसके 5 दिन बाद 14 मार्च 2021 को भी अग्निस्नान हुआ था। अग्नि स्नान की सूचना जैसे ही फैली तो आसपास के कई गाँव के लोग मंदिर पहुँच गए। अग्नि स्नान करते हुए माँ के अद्भुत स्वरूप के दर्शन किए। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो माता के अग्निस्नान की कोई तय तिथि नहीं है। यह कभी-कभी महीने भी 3-4 बार भी हो जाता है तो कभी साल भर नहीं होता।
उदयपुर से करीब 60 किलो मीटर दूर कुराबड़- बम्बोरा मार्ग पर अरावली की पहाडिय़ों के बीच स्थित ईडाणा माता का यह मंदिर हजारों वर्ष प्राचीन है। मान्यता है कि महाभारत काल में इस मंदिर की स्थापना की गई थी। अग्निस्नान देखने के लिए लोग यहाँ विदेशों से भी आते हैं। लेकिन कोई तिथि तय नहीं होने के कारण ज्यादातर मौकों पर लोगों को निराश होकर ही लौटना पड़ता है। इस मंदिर की देवी ईडाणा माता को स्थानीय रजवाड़े अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते आए हैं।
यहाँ माता का कोई भव्य मंदिर नहीं है। ईडाणा माता बरगद के वृक्ष के नीचे विराजमान हैं। माता के सिर के ऊपर कोई शिखर भी नहीं है। माता खुले आसमान के नीचे निवास करती हैं। माँ की मूर्ति के पीछे केवल मनोकामना पूरी होने पर भक्तों की ओर से चढ़ाई जाने वाली चुनरी और त्रिशूलों का सुरक्षा कवच मौजूद है।
यह घटना किसी आश्चर्य से कम नहीं है कि अग्नि स्नान के बाद भी माता की प्रतिमा वर्षों पहले जैसी थी आज भी वैसी ही है। जबकि ईडाणा माता के अग्निस्नान के समय उठने वाली लपटों से कई बार उस बरगद के पेड़ तक को नुकसान पहुँचा हैं जिसके नीचे सदियों से माता रानी विराजमान हैं। इस शक्ति पीठ की विशेष बात यह है कि यहाँ माँ के द्वार और दर्शन चौबीस घंटे खुले रहते हैं और माना जाता है कि यहाँ आकर लकवाग्रस्त मरीज ठीक हो जाते हैं।