अयोध्या में रामजन्मभूमि पर नवनिर्मित मंदिर में भगवान रामलला की मूर्ति का 22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा भव्य तरीके से संपन्न हुआ। इस दिन देश और दुनिया भर के हिन्दुओं ने अपनी-अपनी जगह पर दीवाली मनाई। 500 वर्षों के संघर्ष के बाद आए इस दिन के पीछे अनगिनत रामभक्तों का बलिदान और त्याग है। उसमें से कई वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं जबकि कुछ आँखों देखी घटना को बताने के लिए आज जीवित हैं। उन जीवित रामभक्तों में से एक हैं रामजी गुप्ता। रामजी गुप्ता 6 दिसंबर 1992 में विवादित ढाँचे के ध्वंस के बाद CBI द्वारा गिरफ्तार किए गए पहले कारसेवक हैं।
अयोध्या में मौजूद ऑपइंडिया की टीम ने रामजी गुप्ता से मिलकर तब और अब के हालातों के बारे में जानकारी ली। रामजी गुप्ता मूल रूप से पहले फैज़ाबाद और अब अम्बेडकरनगर जिले के मुस्लिम बहुल इलाके टांडा के निवासी हैं। रामजी गुप्ता युवा अवस्था में ही विश्व हिन्दू परिषद (VHP) से जुड़ गए थे। रामजी गुप्ता का कभी टांडा में हैंडलूम का बड़ा कारोबार हुआ करता था। इनका परिवार अभी भी कस्बे के प्रतिष्ठित व्यापारियों में गिना जाता है।
हाँ ध्वंस के दौरान मैं वहाँ मौजूद था
रामजी गुप्ता की उम्र 70 वर्ष से अधिक हो चुकी है। इसके बावजूद वो पूरी तरह से फिट हैं। उन्होंने हमें बताया कि साल 1990 की कारसेवा में वे भी मौजूद थे। 6 दिसंबर 1992 को उन्होंने अपनी आँखों के आगे ढाँचा गिरते देखा था। उनका दावा है कि तब कारसेवकों के जोश के आगे शासन और प्रशासन सबको झुकना पड़ा था। विश्व हिन्दू परिषद की तरफ से रामभक्तों को सरयू से रेत लाकर विवादित ढाँचे पर चढ़ाने के निर्देश दिए गए थे। हालाँकि, बीच में कई रामभक्त जोश में आ गए और गुंबद कुछ घंटों में ढह गया।
कारसेवकों ने नहीं मानी किसी की भी बात
रामजी गुप्ता के मुताबिक, साल 1990 में रामभक्तों के नरसंहार का लोगों में गुस्सा था। तब प्रशासन ने विवादित ढाँचे के चारों तरफ लोहे के बैरिकेड किए थे। कुछ कारसेवकों ने विवादित ढाँचे को देखकर आक्रोश प्रकट किया। इस दौरान मौके पर मौजूद अन्य लोग भी आंदोलित हो उठे।
रामजी के अनुसार, VHP और RSS के पदाधिकारियों ने उनको रोकने की काफी कोशिश की, लेकिन वो नाकाम रहे। मौके पर मौजूद प्रशासन ने भी खुद को भीड़ के गुस्से के आगे पंगु पाया। उनका मानना है कि अगर पहले की तरह गोली भी चला दी गई होती तो भी विवादित ढाँचे का बच पाना लगभग नामुमकिन था। हालाँकि तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने गोली चलाने का आदेश देने से मना कर दिया था।
रामलला की मूर्ति खुले में कैसे छोड़ देता ?
रामजी गुप्ता के मुताबिक, 6 दिसंबर 1992 को शाम होते-होते लगभग तमाम कारसेवक विवादित ढाँचे को ध्वस्त करके चले गए थे। तब भगवान राम की मूर्ति खुले में पड़ी थी, जिसे सुरक्षा बलों ने घेर रखा था। ऐसे में रामजी गुप्ता ने अपने साथ मौके पर बचे कुछ साथियों संग एक अस्थाई तम्बू बनाया।
इसी तम्बू में भगवान राम की मूर्ति को कुछ स्थानीय साधु-संतों के साथ विधि-विधान से कड़ी सुरक्षा में स्थापित करवाया गया। यही वो तम्बू था जिसमें भगवान राम की विग्रह 1992 से 2024 तक रही थी। मूर्ति स्थापना के बाद रामजी गुप्ता और उनके साथी देर रात अपने-अपने घरों को चले गए। इस बीच कल्याण सिंह की सरकार गिर गई। फैज़ाबाद (अब अयोध्या) के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को जिम्मेदार बताते हुए सस्पेंड कर दिया गया था।
CBI पकड़ कर ले गई लखनऊ
रामजी गुप्ता दावा करते हैं कि 11 दिसंबर 1992 को अचानक उनके टांडा स्थित घर पर CBI की टीम आ धमकी। इस टीम के साथ स्थानीय पुलिस भी मौजूद थी। CBI ने उन्हें पूछताछ के लिए अपने साथ चलने को कहा। उनको पहले तत्कालीन फैज़ाबाद जिला मुख्यालय लाया गया। यहाँ से टीम लखनऊ रवाना हो गई। लखनऊ में उनसे कई अधिकारियों ने लम्बी पूछताछ की। इस दौरान रामजी गुप्ता ने सब कुछ होना ‘भगवान राम की इच्छा’ बताया। आखिरकार रामजी गुप्ता को लखनऊ जिला कारागार भेज दिया गया।
महीने भर बाद हाईकोर्ट ने दे दी थी जमानत
रामजी गुप्ता ने हमें बताया कि CBI ने उनको एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर फ्रेम किया था। किसी वीडियो में उन्होंने विवादित ढाँचे को गिराए जाने की जिम्मेदारी खुद ले ली थी। वो जेल में भी भगवान का भजन करते रहे। रामजी गुप्ता ने अपनी जमानत के लिए हाईकोर्ट में अर्जी लगाई थी। हाईकोर्ट ने महज 1 माह बाद रामजी गुप्ता को जमानत दे दी थी। महज मीडिया के आगे जिम्मेदारी ले लेने की दलील और कोई ठोस सबूत न मिल पाने को हाईकोर्ट ने जमानत योग्य बताया था। तब से रामजी गुप्ता लगातार तारीखों पर अदालतों के चक्कर लगाते रहे।
सितंबर 2020 में सभी आरोपित हुए बरी
विवादित ढाँचे का केस लखनऊ सीबीआई कोर्ट में लगभग 27 वर्षों तक चला। इसी केस में लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा, जय भगवान गोयल, विनय कटियार, कल्याण सिंह, महंत नृत्य गोपाल दास, चम्पत राय, मुरली मनोहर जोशी, साक्षी महराज, बृजभूषण शरण सिंह और सतीश प्रधान आदि नामजद आरोपित थे। रामजी गुप्ता केस में कुल 32 आरोपित शामिल थे।
रामजी गुप्ता के मुताबिक, उनके अलावा इस मामले में साक्षी महराज और बृजभूषण शरण सिंह की भी गिरफ्तारी हुई थी। सितंबर 2020 को इन सभी को पर्याप्त सबूतों के अभाव में लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने बरी कर दिया था। इस दौरान अदालत ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा था कि विवादित ढाँचे को गिराया जाना कोई पूर्व सुनियोजित घटना नहीं थी।
व्यापर में लाखों का घाटा, खुद के खर्च से लड़े मुकदमा
रामजी गुप्ता ने हमें बताया कि उनके कारखाने में अधिकतर मुस्लिम समुदाय के ही लोग मजदूरी करते थे। साथ ही उनका माल खरीदने के लिए भी अधिकतर मुस्लिम समुदाय के छोटे व्यापारी आते थे। जब उनको सीबीआई विवादित ढाँचे के ध्वंस केस में गिरफ्तार करके ले गई, तब कइयों ने उनके बकाया पैसे रोक लिए।
इसी के साथ ही मुस्लिम मजदूरों ने भी काम करने से मना कर दिया। 1992-93 को याद करते हुए रामजी ने कहा कि तब के समय में उनके परिवार को कारोबार में लगभग 50 लाख रुपए का घाटा हुआ था। मुकदमे से लेकर जमानत आदि का पूरा खर्च रामजी गुप्ता के परिजनों ने अपनी जेब से भरा था।
बचपन से ही किया कट्टरपंथ से संघर्ष
रामजी गुप्ता ने अपने बचपन को याद किया। उन्होंने कहा कि जब वो किशोरावस्था में थे तब से उनके टांडा बाजार में अक्सर साम्प्रदायिक तनाव हो जाया करते थे। 80 के दशक में एक घटना लव जिहाद को ले कर घटी थी। तब हालत दंगों जैसे बन गए थे जिसमें रामजी गुप्ता को भी हिन्दुओं को बचाने के लिए सक्रिय होना पड़ा था। रामजी गुप्ता ने हमें यह भी बताया कि वो आज भी 70 वर्ष की अवस्था में भी धर्म के लिए किसी भी प्रकार की कुर्बानी देने को तैयार हैं।