Thursday, November 21, 2024
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वो ब्राह्मण राजा, जिनका सिर कलम कर दिया गया: जिन मुस्लिमों को शरण दी, उन्होंने ही अरब से युद्ध में दिया धोखा

"अगर मैं युद्धभूमि में सम्मान के साथ मौत को गले लगाता हूँ तो ये घटना अरब के इतिहास में अंकित हो जाएगी और देश-विदेश के बड़े-बड़े लोग भारत के बारे में बात करेंगे। लोग कहेंगे कि राष्ट्र के लिए राजा दाहिर ने दुश्मन से लड़ते हुए अपने जीवन का बलिदान कर दिया।"

राजा दाहिर सिंध के अंतिम हिन्दू राजा थे, जिनके बाद वहाँ इस्लामी शासन शुरू हो गया। 711-12 CE में मात्र 17 साल के मुहम्मद कासिम के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था, जिसे खलीफा ने एक विशाल सेना के साथ भेजा था। राजा दाहिर ने अरब से आई फौज को रोकने की भरसक कोशिश की, लेकिन उनकी सेना सीमित थी, इसीलिए उन्हें क्रूर अरबों के हाथों हार मिली। तब भारतीय शासक इस्लामी आक्रांताओं की क्रूरता और छल-प्रपंच वाले युद्ध से भी परिचित नहीं थे।

उनके पिता का नाम चच था, जिन्हें ‘अलोर का चच’ भी कहा जाता है। उन्हें अपने चाचा चंदर से राजगद्दी मिली थी। सिंध आज भी एक रेगिस्तानी क्षेत्र है। राजा दाहिर पर जब मुहम्मद बिन कासिम ने आक्रमण किया, तब उनके पास विकल्प था कि वो पड़ोस में किसी राजा के यहाँ सुरक्षित भाग जाएँ, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कहा था कि वो एक खुले युद्ध में अरब की फौज से मिलने जा रहे हैं और अपनी तरफ से वो अपनी सर्वश्रेष्ठ कोशिश करेंगे।

दाहिर ने कहा था, “अगर मैं जीत जाता हूँ तो मेरा साम्राज्य मजबूत हो जाएगा। लेकिन, अगर मैं युद्धभूमि में सम्मान के साथ मौत को गले लगाता हूँ तो ये घटना अरब के इतिहास में अंकित हो जाएगी और देश-विदेश के बड़े-बड़े लोग भारत के बारे में बात करेंगे। लोग कहेंगे कि राष्ट्र के लिए राजा दाहिर ने दुश्मन से लड़ते हुए अपने जीवन का बलिदान कर दिया।” राजा दाहिर दूरदर्शी थे, लेकिन उन्हें पड़ोसी राजाओं का सहयोग न मिला।

जब उनके वजीर ने उन्हें सलाह दी थी कि किसी मित्र राजा के यहाँ शरण ले लें, तो उन्होंने उन राजाओं के पास ये संदेश भिजवाया था, “आपलोगों को पता होना चाहिए कि अरब और आपके बीच मैं एक दीवार हूँ। अगर मैं गिरता हूँ तो अरब की फौज के हाथों आपकी तबाही को कोई नहीं रोक पाएगा।” जब उनके वजीर ने उन्हें कम से कम अपने परिवार को सुरक्षित कहीं पहुँचाने का निवेदन किया, तो उन्होंने कहा कि जब उनके ठाकुरों और सरदारों के परिवार यहाँ हैं, वो अपने परिवार को ही केवल कहीं और कैसे भेज सकते हैं?

राजा दाहिर के बारे में मुस्लिम शासक भी मानते थे कि वो वीर और निडर थे। उनके बारे में एक कहानी है कि जब एक बाघ ने हमला किया था तो उन्होंने अपने हाथ पर कपड़ा बाँध कर बाघ के मुँह में घुसा दिया था और उसे मार डाला था। राजा दाहिर ने 40 साल (c. 668 – 712 AD) सिंध पर राज किया था। इस दौरान उनके इलाकों में कानून का राज था और लुटेरे खदेड़ दिए गए थे। अरब फौज ने 635 AD में ही पर्सिया पर कब्ज़ा कर लिया था, लेकिन राजा दाहिर की एकमात्र यही कमजोरी थी कि वो इस खतरे को तुरंत भाँप नहीं पाए।

राजा दाहिर जहाँ अरब से दोस्ताना सम्बन्ध रखना चाहते थे, अरब को उस समय के किसी भी राजा के साथ दोस्ती पसंद नहीं थी और उनका एक ही लक्ष्य था – साम्राज्य विस्तार। राजा दाहिर ने अरब के कलाकारों को अपने दरबार में जगह दी और वो अरब की युद्धनीति को पसंद करते थे। उमय्यद खलीफाओं के अल्लाफी दुश्मनों ने राजा दाहिर के दरबार में शरण ली। क्रूर हज्जाज-बिन-युसूफ तब अरब का गवर्नर था।

जिन लोगों ने राजा दाहिर के यहाँ शरण ली थी, उनके किसी रिश्तेदार का उसने सिर कलम करवा दिया था। उसकी चमड़ी उधेड़ दी गई थी। बदला लेने के इरादे से ये लोग वहाँ से भागे थे। इतिहासकार मानते हैं कि अरब और राजा दाहिर के बीच दुश्मनी 8 जहाजों के लूटे जाने के बाद शुरू हुई। श्रीलंका में कुछ अरब के व्यापारियों की मौत हो गई थी और इसका फायदा श्रीलंका के राजा ने अरब की कृपा प्राप्त करने के लिए उठाया।

श्रीलंका से उन अरब व्यापारियों की विधवाओं, बेटियों और अन्य परिजनों को जहाज से अरब भेजा गया। साथ ही काफी कीमती गिफ्ट भी भेजे गए। मौसम खराब रहने के कारण कराची के पास स्थित देबल बंदरगाह पर उन जहाजों को रुकना पड़ा, जहाँ लुटेरों ने सब कुछ लूट लिया। हज्जाज को जब ये पता चला कि उसने दाहिर को बंधकों को छोड़ने और धन लौटाने को कहा। दाहिर ने जवाब दिया कि वो बाहर के लुटेरे थे, जिन पर उसका कोई वश नहीं।

इस कहानी के कई वर्जन हैं। लेकिन, कहा जाता है कि दाहिर के ही देश में कई ऐसे लोग थे जिन्होंने उनके साथ गद्दारी की थी। जिन अल्लाफी भाइयों को राजा दाहिर ने शरण दी थी, अब उनकी जिम्मेदारी थी कि वो अरब के भेद बता कर सिंध की सेना की मदद करें। राजा दाहिर ने जब कई दिनों तक शरण देने की एवज में उनसे मदद माँगी, तो उन्होंने कहा, “हम आपके आभारी हैं, लेकिन हम इस्लाम की फौज के खिलाफ तलवार नहीं उठा सकते।”

इसके बाद उन लोगों ने दरबार से जाने की इजाजत माँगी और राजा दाहिर ने उन्हें सिंध से बाहर भेज दिया। राजा दाहिर की सेना के साथ मुहम्मद बिन कासिम का युद्ध हुआ, जिसे हम करोड़ अरोड़कोट का युद्ध कहते हैं। जैसा कि इस्लामी प्रचलन था, राजा दाहिर के धड़ से सिर को अलग कर दिया गया और उसे हज्जाज के पास भेजा गया। राजघराने की कई महिलाओं ने जौहर किया। बाकी महिलाओं को पकड़ कर दास बना दिया गया और उनकी खरीद-बिक्री की गई।

आज राजा दाहिर से सिंध के लोग ही नफरत करते हैं और मुहम्मद बिन कासिम को नायक मानते हैं। चूँकि अब वहाँ इस्लामी मुल्क पाकिस्तान स्थित है और मुस्लिमों की जनसंख्या ज्यादा है, राजा दाहिर की मूर्तियों को ध्वस्त भी कर दिया जाता है। उनके लिए राजा दाहिर विलेन हैं और आक्रांता मुहम्मद बिन कासिम देवता। वो मुहम्मद बिन कासिम, जिसने सिंध की कई महिलाओं का बलात्कार किया। उसकी जीत के बाद सिंध में मंदिरों को ध्वस्त कर उनकी जगह मस्जिदें खड़ी की गईं।

कहते हैं, शक्तिशाली राजा हर्षवर्धन ने अपने काल में अरब आक्रमणों (642-43 CE) में अरब दुश्मनों का दमन करने की कोशिश नहीं की, जिससे उनका मनोबल बढ़ता गया। सिंध के तो लोग भी अमीर नहीं थे, वहाँ की जमीन उतनी उपजाऊ नहीं थी और देबल के मंदिर के पास उतना अकूत धन नहीं था, फिर भी वहाँ इस्लामी आक्रमण हुआ। मुहम्मद बिन कासिम ने देबल का मंदिर गिरा दिया और वहाँ खलीफा के नाम का खुतबा पढ़ा गया।

मुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण को आप भारतीय उप-महाद्वीप में प्रथम इस्लामी कत्लेआम भी कह सकते हैं। चचनामा ने इस युद्ध के बारे में कहा है कि ऐसा पहले कभी देखा-सुना नहीं गया था। साथ ही इसे एक ‘साहसी युद्ध’ बताया गया है। लेकिन, यहाँ मुस्लिमों को अलग नीति अपनानी पड़ी और उन्हें हिन्दू ‘काफिरों’ को सुविधाएँ देकर बहलाना-फुसलाना पड़ा, ताकि भारत पर उनके कब्जे का मंसूबा आगे बढ़े।

एक कहानी ये भी है कि कैसे खलीफा से झूठ बोल कर राजा दाहिर की बेटियों ने मुहम्मद बिन कासिम का अंत करवाया। खलीफा इस बात से नाराज था कि मुहम्मद बिन कासिम ने सूर्यदेवी के ‘सतीत्व’ को भंग कर दिया है, जबकि ऐसा करने का अधिकार सिर्फ उसे, यानी खलीफा को ही था। चचनामा के अनुसार, सूर्यदेवी ने अपने पिता राजा दाहिर की हत्या का बदला लेने के लिए खलीफा से झूठ बोला था और इसका पता चलते ही खलीफा ने दोनों बहनों को घोड़े की पूछ से बाँधकर तब तक घसीटे जाने की आज्ञा दी, जब तक उनकी मौत न हो जाए।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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