केरल की सांस्कृतिक राजधानी कोच्चि से महज 10 किमी दूर स्थित त्रिपुनिथुरा में शुक्रवार (6 सितंबर 2024) को भव्य ‘अठचमायम‘ परेड के साथ ही ओणम पर्व के 10 दिनी महात्योहार का आगाज हो गया। अब से अगले 10 दिनों तक केरल में हर तरफ सनातन संस्कृति की धूम रहेगी। मूलत: ओणम का त्योहार नई फसलों से जुड़ा है, लेकिन सांस्कृतिक और पौराणिक रूप से ओणम का विशेष महत्व है। भारत दर्शन में ओणम के हर पहलू से आपको अवगत करा रहा है ऑपइंडिया…
ओणम दक्षिण भारत के केरल राज्य का सबसे प्रमुख और भव्य त्योहार है, जो राज्य की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक परंपराओं का प्रतीक है। यह मलयालम कैलेंडर के चिंगम महीने (पहला माह, इसी से कैलेंडर की शुरुआत) में मनाया जाता है, जो अगस्त-सितंबर के समय आता है। ओणम का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह केरल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाता है। यह त्योहार राजा महाबली (जिन्हें राजा बली भी कहा जाता है) की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिन्हें उनकी महानता और धर्मपरायणता के लिए आज भी याद किया जाता है।
ओणम की पौराणिक कथा
ओणम पर्व मनाने का आधार राजा महाबली की पौराणिक कथा है। उनके शासनकाल को सुनहरे युग के रूप में याद किया जाता है, जब सभी लोग समान थे और देश में अन्न, धन और शांति की भरमार थी। राज्य में कोई भी भूखा या गरीब नहीं था। उनकी महानता से देवता चिंतित हो गए, क्योंकि वह उनके स्थान को चुनौती दे रहे थे। इसलिए, भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा महाबली से भिक्षा माँगी। उन्होंने राजा से तीन पग भूमि का दान माँगा, जिसे राजा ने खुशी-खुशी स्वीकार किया।
वामन अवतार में भगवान विष्णु ने अपनी दिव्य शक्ति से दो पगों में धरती और आकाश नाप लिया और तीसरे पग के लिए राजा ने अपनी स्वयं को प्रस्तुत कर दिया। भगवान विष्णु ने उनकी भक्ति और त्याग को देखकर उन्हें वरदान दिया कि वह साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने वापस आ सकते हैं। यही दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है।
अठचमायम से ओणम महोत्सव की शुरुआत
ओणम की शुरुआत अठचमायम से होती है, जो एक भव्य परेड के रूप में त्रिपुनिथुरा में आयोजित की जाती है। यह परेड केरल के विभिन्न लोक कलाओं का प्रदर्शन करती है, जिसमें कथकली, थेय्यम, पुलिकली, और कोल्कली जैसे पारंपरिक नृत्य शामिल होते हैं। यह जुलूस राजा महाबली की प्रतीकात्मक वापसी का स्वागत करता है और ओणम के दस दिवसीय उत्सव की शुरुआत होती है। अठचमायम के दौरान हर समुदाय के लोग मिलकर इस पर्व को मनाते हैं, जिससे यह सामाजिक एकता और समरसता का प्रतीक बन जाता है।
ओणम का 10 दिनों का महा उत्सव
ओणम के 10 दिनों में हर दिन का अपना विशिष्ट महत्व होता है। इन दिनों में घरों में फूलों की रंगोली (पुक्कलम) सजाई जाती है, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, और पारंपरिक खेल खेले जाते हैं। हर दिन एक खास गतिविधि से जुड़ा होता है, जो ओणम को और भी विशेष बनाता है।
- अथम: यह ओणम का पहला दिन होता है, जो अठचमायम परेड के साथ शुरू होता है। इस दिन से घरों में “पुक्कलम” (फूलों की सजावट) की शुरुआत होती है।
- चिथिरा: दूसरे दिन पुक्कलम की सजावट और बढ़ाई जाती है। इस दिन घरों की साफ-सफाई भी की जाती है।
- चोधी: इस दिन नए कपड़े और आभूषण खरीदे जाते हैं। ओणम के लिए तैयारियां इस दिन तेज हो जाती हैं।
- विशाखम: यह दिन बाजारों में खरीदारी और ओणसद्या (विशेष भोज) की तैयारियों के लिए महत्वपूर्ण है।
- अनिजम: इस दिन नौका दौड़ (वल्लम काली) का आयोजन किया जाता है, जिसमें केरल की पारंपरिक नावों की दौड़ होती है।
- थ्रीक्केटा: इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों और प्रियजनों को उपहार देते हैं और ओणम की शुभकामनाएं भेजते हैं।
- मूलम: इस दिन विभिन्न मंदिरों में पूजा और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। इसके साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत होती है।
- पूर्म: इस दिन उत्सव की तैयारियाँ अपने चरम पर होती हैं। विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियाँ जारी रहती हैं।
- उथ्रादम: इसे ओणम का ‘छोटा ओणम’ कहा जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं और ओणसद्या की तैयारी करते हैं।
- थिरुवोणम: यह ओणम का मुख्य दिन है। इस दिन राजा महाबली की वापसी का स्वागत करने के लिए परिवार के लोग एक साथ बैठकर ओणसद्या का आनंद लेते हैं। इस भोज में केले के पत्तों पर 26 से अधिक व्यंजन परोसे जाते हैं, जैसे अवियल, सांभर, पायसम, और केले के पत्ते पर परोसे गए अन्य स्वादिष्ट पकवान। पुक्कलम को इस दिन सबसे सुंदर रूप दिया जाता है।
ओणम का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
ओणम का सबसे प्रमुख आकर्षण ओणसद्या है, जो एक पारंपरिक भोज होता है। इस भोज में 26 से अधिक प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं। ओणसद्या को केले के पत्ते पर परोसा जाता है और इसमें चावल, सांभर, अवियल, थोरन, ओलन, किचड़ी, पायसम जैसे स्वादिष्ट व्यंजन शामिल होते हैं। इस भोज को परिवार के सदस्य एक साथ बैठकर खाते हैं, जो आपसी प्रेम और सौहार्द का प्रतीक होता है।
ओणम का सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। यह त्योहार केरल की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को जीवंत रखता है। इस दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें कथकली, पुलिकली (टाइगर डांस), वल्लम काली (नौका दौड़), और अन्य पारंपरिक नृत्य शामिल होते हैं। पुलिकली विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसमें लोग बाघ की तरह सज-धज कर नृत्य करते हैं। यह नृत्य ओणम के अवसर पर केरल के विभिन्न हिस्सों में आयोजित किया जाता है।
ओणम न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह केरल की सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव भी है। यह त्योहार समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाता है, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म के हों। ओणम के अवसर पर आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कथकली, पुलिकली, और थेय्यम जैसे पारंपरिक नृत्य प्रमुख होते हैं। ये कला रूप केरल की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने और अगली पीढ़ी को इसे संचारित करने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं।
ओणम का सामाजिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह त्योहार सामाजिक समरसता, समानता और भाईचारे का प्रतीक है। इस दौरान लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं, उपहार देते हैं, और भोज में हिस्सा लेते हैं। यह त्योहार समाज में आपसी प्रेम और सद्भावना का संदेश फैलाता है।
धार्मिक दृष्टिकोण से भी ओणम का महत्व अधिक है। इस दौरान भगवान विष्णु और राजा महाबली की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि ओणम के दिन राजा महाबली अपनी प्रजा से मिलने आते हैं और इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है।
ओणम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ओणम का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि इस त्योहार का उत्सव त्रावणकोर और कोच्चि के महाराजाओं के समय से होता आ रहा है। पहले यह उत्सव केवल शाही परिवारों तक सीमित था, लेकिन धीरे-धीरे यह समाज के हर वर्ग के लिए महत्वपूर्ण बन गया। इस त्योहार को राज्य की समृद्धि और कृषि उत्पादन से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि यह फसल कटाई के मौसम का प्रतीक है।
ओणम केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह केरल की सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक एकता का प्रतीक है। इस महाउत्सव के दौरान केरल के लोग अपने पारंपरिक मूल्यों को संजोते हैं और उन्हें अगली पीढ़ी को संचारित करते हैं। यह पर्व सामाजिक समरसता, समानता, और भाईचारे का संदेश देता है। ओणम के 10 दिनों में केरल का हर कोना रंगीन और उत्सवमय हो जाता है।