Monday, November 4, 2024
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भारत का कीमती ‘लाल सोना’, जिसके इर्दगिर्द घूमती है ‘पुष्पा’: 2021 में इसकी ₹508 Cr की लकड़ियाँ जब्त हुईं, चीन भी दीवाना

इसके कई औषधीय गुण भी होते हैं। शराब और कॉस्मेटिक्स के कारोबार में लोकप्रिय इन लकड़ियों वाले 'रक्त चन्दन' को लेकर चीन में अलग किस्म की दीवानगी देखने को मिलती रही है। वहाँ का मिंग राजवंश इन लकड़ियों का दीवाना था।

अगर आपने अल्लू अर्जुन (Allu Arjun) की हालिया सुपरहिट फिल्म ‘पुष्पा’ (Pushpa) देखी होगी तो आपको पता होगा कि ये फिल्म ‘रक्त चन्दन’ (Red Sanders) के लकड़ियों (Wood) की तस्करी (Smuggling) के इर्दगिर्द घूमती है। बताया गया है कि कैसे आंध्र प्रदेश के घने जंगलों में इसे पाया जाता है और ये करोड़ों में बिकता है। इसे काट कर लाने में काफी मेहनत लगती है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे तरह-तरह के तिकड़म आजमा कर तस्कर इसे भारत से बाहर ले जाकर भी बेचते हैं। इसमें पूरा का पूरा ‘सिंडिकेट’ लगा हुआ होता है, जिसमें नेता से लेकर माफिया और कारोबारी तक शामिल होते हैं।

‘अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature) ने ‘रक्त चन्दन’ को विलुप्त होने के कगार पर खड़ी प्रजाति में रखा है। ये पूर्वी घाटों (भारत का पूर्वी तटवर्तीय क्षेत्र) में एक समिति क्षेत्र में ही अब बच गया है। 2018 में इसे ‘लगभग विलुप्त होने का खतरा’ वाली श्रेणी में IUCN ने रखा था। पिछली तीन पीढ़ियों से इसकी संख्या में 50-80% तक की गिरावट सामने आई है। काफी ज्यादा काटे जाने के कारण ये अब दुनिया भर में मौजूद पेड़ों का 5% ही बचा है।

असल में इस फिल्म में जो भी दिखाया गया है, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की सीमा की वो दशकों से सच्चाई रही है। चन्दन की तस्करी से हमारे दिमाग में पहला नाम खूँखार डाकू वीरप्पन का आता है, लेकिन उसके मारे जाने के बाद भी ये रुकी नहीं है। चन्दन में दो प्रकार के प्रमुख होते हैं – लाल लकड़ियों वाले और सफ़ेद। पूजा-पाठ के लिए भी इसका उपयोग होता है। जहाँ ‘रक्त चन्दन’ का उपयोग शैव और शाक्त संप्रदाय द्वारा किया जाता है, वैष्णव समाज सफ़ेद चन्दन को प्रयोग में लाता है।

एक और बात जानने लायक है कि ‘रक्त चन्दन’ की लकड़ी लाल और आकर्षक दिखती है, लेकिन इसमें सफ़ेद चन्दन की तरफ सुगंध नहीं होता। विज्ञान इसे ‘Pterocarpus santalinus (टेराकॉर्पस सॅन्टनस)’ के नाम से जानता है। सामान्यतः इसके उपयोग इत्र और हवन-पूजन के लिए नहीं किया जाता है, जिसके लिए सफ़ेद चन्दन विख्यात है। लेकिन, सौंदर्य प्रसाधन और वाइन की इंडस्ट्री में इसकी बड़ी माँग है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में 3000 रुपए प्रति किलो से इसके मूल्य की शुरुआत होती है।

भारत में इसे काटना और इसकी तस्करी करने पर प्रतिबन्ध है, लेकिन इसके बावजूद अवैध रूप से इसकी खरीद-बिक्री होती है। इसके लिए ‘रेड सैंडलर्स एंटी-समुगलिंग टास्क फोर्स’ का गठन किया गया है, जिसने अकेले 2021 में इसकी 508 करोड़ रुपए की लकड़ियाँ जब्त की। RSASTF का कहना है कि पिछले साल इसकी तस्करी से जुड़े 117 मामले दर्ज किए गए और 342 तस्कर गिरफ्तार हुए। अब इसकी तस्करी रोकने के लिए टास्क फोर्स को सैटेलाइट फोन्स दिए जा रहे हैं, ताकि जंगल में उन्हें संचार व्यवस्था में दिक्कत न हो।

‘रक्त चन्दन’ के पेड़ मुख्य रूप से शेषचलम के जंगलों में पाए जाते हैं, जो आंध्र प्रदेश में तमिलनाडु से सटे चित्तूर, कडपा, कुरनूल और नेल्लोर नामक चार जिलों में फैला हुआ है। ये जंगल 5 लाख वर्ग हेक्टेयर में फैला हुआ है ‘रक्त चन्दन’ के पेड़ की ऊँचाई 8-11 मीटर तक की होती है। इसके पेड़ धीरे-धीरे विकसित होते हैं, इसीलिए लकड़ियों का घनत्व भी अधिक होता है। इसीलिए, ये पानी में तेज़ी से डूबता है और ऐसे ही पहचाना जाता है। चीन, जापान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में इसकी खासी माँग है।

चीन में जब ‘मिंग राजवंश’ का शासन हुआ करता था, तब वहाँ के लोग इन लकड़ियों के दीवाने हुआ करते थे। 14वीं से 17वीं शताब्दी तक के इस काल में इससे बने फर्नीचर की चीन में काफी माँग थी। वहाँ के ‘रक्त चन्दन संग्रहालय’ में अब भी इन लकड़ियों से बनी कलाकृतियाँ रखी हुई हैं। इसी तरह जापान में शादी के दौरान उपहार में दिए जाने वाले एक वाद्ययंत्र के लिए ‘रक्त चन्दन’ की लकड़ियों का उपयोग किया जाता था, लेकिन समय के साथ ये परंपरा कम हो गई है।

इसे भारत का ‘लाल सोना’ भी कहा जाता है। इसकी वजह से दक्षिण भारतीय राज्यों में कई बार हिंसा देखने को मिली है। इसके कई औषधीय गुण भी होते हैं। शराब और कॉस्मेटिक्स के कारोबार में लोकप्रिय इन लकड़ियों वाले ‘रक्त चन्दन’ के पेड़ों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत भी भारत सरकार की ही है। दुनिया में और कहीं ये नहीं मिलते हैं। इसकी तस्करी पर 11 साल तक के जेल का प्रावधान है। 2015 में एक एनकाउंटर में 20 तस्कर मारे भी गए थे।

अंत में जान लीजिए कि असल में पुष्पा में ‘रक्त चन्दन’ की तस्करी को दिखाने के लिए नकली लकड़ियों का प्रयोग किया गया है। 500 से लेकर 1500 तक लोगों के साथ कई दिनों तक जंगल में इस फिल्म की शूटिंग की गई। फोम और फाइबर से ‘रक्त चन्दन’ की नकली लकड़ियों का निर्माण किया गया। फिल्म के आर्ट डिपार्टमेंट ने इसके लिए एक फैक्ट्री ही स्थापित कर डाली थी। एक बार तो पुलिस तक चकमा खा गई थी और क्रू को पूरी जाँच के बाद जाने दिया था। इन नकली लकड़ियों को शूटिंग के लिए जंगल ले जाना होता था और वापस लाना होता था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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