कर्नाटक के बेंगलुरु (Bengaluru, Karnataka) स्थित अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय (Azim Premji University) के एक छात्र ने आरोप लगाया है कि हिंदू होने के कारण एक समूह द्वारा उसे परेशान किया गया और उसके साथ भेदभाव किया गया। इसके बाद कैंपस में किसी बात को लेकर एक मुस्लिम छात्र से बहस करने के कारण विश्व प्रशासन ने 2 मई 2022 को आगामी शैक्षणिक गतिविधियों से निष्कासित कर दिया।
जिस छात्र को निष्कासित किया गया है, उसका नाम ऋषि तिवारी है। तिवारी उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के बल्लान गाँव के रहने वाले हैं और यूनिवर्सिटी में M.A (डेवलपमेंट) के छात्र हैं। तिवारी के अनुसार, संस्थान के प्रोफेसरों और अन्य छात्रों ने उनके पूर्ववर्ती शिक्षण संस्थान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) को निशाना बनाया गया।
इन लोगों का कहना है कि यह विश्वविद्यालय ‘दक्षिणपंथी’ और उनकी आस्था हिंदू धर्म का गढ़ है। तिवारी का कहना है कि इन लोगों ने उन्हें गाली देने के मकसद से ‘संघी’, ‘भाजपा का आदमी’ और ‘कट्टरपंथी हिंदू’ कहा। इस मामले से जुड़ा अधिक विवरण आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
तिवारी का कहना है कि यह तब बढ़ गया, जब छात्रों के एक समूह ने उन्हें घेर लिया और उनके साथ गाली-गलौज करते हुए मारपीट की। उन्होंने बताया कि एक विवाद के दौरान एक मुस्लिम छात्र के चेहरे पर खाना फेंकने और उस पर थूकने के फर्जी मामले में फँसा दिया गया। उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद छात्रों के एक वर्ग ने उन पर हमला किया और उनके खिलाफ अभियान चलाया।
तिवारी पर मुस्लिम छात्र को परेशान करने का आरोप लगाया गया है और दावा किया गया विवाद के दौरान ये छात्र अपना रोजा तोड़ रहे थे, उसी दौरान तिवारी ने ये काम किया। हालाँकि, तिवारी के पक्ष पर ध्यान दिए बिना विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने गिरोह बनाकर विरोध करना शुरू कर दिया।
एक मुस्लिम छात्र का कथित तौर पर मजाक उड़ाने को लेकर उन पर ‘इस्लामोफोबिया’ का आरोप लगाया जा रहा है। प्रशासन के सामने दबाव बढ़ने के बाद तिवारी को कैंपस से निष्कासित कर दिया गया और 31 दिसंबर 2022 तक के लिए उन्हें छात्रावास से बाहर कर दिया गया।
विश्वविद्यालय के आधिकारिक ग्रुप में भेजे गए मैसेज में तिवारी को घटना के बाद निलंबन से पहले ही एक अपराधी के रूप में लेबल कर दिया गया था। तिवारी ने आरोप लगाया है कि इस मामले में उनके पक्ष पर ध्यान नहीं दिया गया। ऋषि तिवारी को विश्वविद्यालय में ना सिर्फ वैचारिक रूप अलग-थलग और निशाना बनाया गया, बल्कि व्हाट्सएप मैसेज के माध्यम से उन्हें बदमाशी, उत्पीड़न और हमले के अपराधी के रूप में चित्रित भी किया गया। इस संबंध में ऑपइंडिया ने यूनिवर्सिटी का पक्ष जानने की कोशिश की, लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं मिला।
स्पष्टीकरण के अधिकार से वंचित ऋषि तिवारी के खिलाफ आरोप वैचारिक और धार्मिक आधार पर लगाए गए, जिन्हें अक्सर ‘संघी’ या ‘भाजपा समर्थक’ कहकर निशाना बनाया जाता रहा। ऋषि तिवारी ने यह भी आरोप लगाया कि हाथ में हिंदू पहचान वाला प्रतीक पहनने के कारण उन्हें लगातार अलग-थलग किया जा रहा था। उन्होंने कहा, “अगर मुझे अपनी पहचान और हिंदू धर्म में विश्वास है तो यह कोई अपराध नहीं है। वैचारिक मतभेद होने का मतलब यह नहीं है कि मुझे अपनी डिग्री और नौकरी के रूप में इतना भुगतान करना होगा।”
सोशल मीडिया पर उत्पीड़न
ऑपइंडिया ने सोशल मीडिया पर जब इसका विवरण में खंगाला तो पाया कि ऋषि तिवारी के साथ व्यवस्थित रूप से दुर्व्यवहार किया गया था। यह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। इंस्टाग्राम स्टोरीज में तिवारी की खुलेआम बदनाम करने की कोशिश की गई। इसके साथ ही उनके अपने सहपाठियों ने तिवारी का समर्थन करने वाले लोगों को भी बदनाम करने की खुली धमकी दी। कॉलेज का एक आंतरिक मामला वामपंथियों से एकतरफा वैचारिक युद्ध में बदल गया और उन्होंने सोशल मीडिया पर खुले तौर पर ऋषि तिवारी को ‘शर्मिंदा’ करने का फैसला कर लिया गया।
तिवारी द्वारा किए गए कथित अपराधों के सबूत के बिना ये लोग सोशल मीडिया ट्रायल में उन्हें अपराधी के रूप में चित्रित करने के स्तर तक चले गए। तिवारी के खिलाफ ‘संघी’ होने लगे आरोप उनकी विचारधारा से संबंधित प्रतीत होता है। उन पर यह आरोप लगाया गया कि ‘संघी विचारधारा मुस्लिमों के खिलाफ नफरत पर आधारित है’ और इसलिए इस धारणा पर उन्हें अपराधी के रूप में चित्रित करना सुविधाजनक था। तिवारी ने जो कहा उसमें इस्लामोफोबिया एंगल बनाया गया, ताकि उन्हें निशाना बनाने के लिए ठोस कहानी बनाई जा सके।
जिन लोगों ने मामले में पक्ष लेने से इनकार कर दिया और जाँच होने की प्रतीक्षा की, उन पर ‘पक्षपात’ का आरोप लगाया गया। पूरे मामले पक्ष लेने की जरूरत थी और वह भी तिवारी के खिलाफ। इसके अलावा, परिसर में उक्त मुस्लिम छात्र के साथ तिवारी के विवाद को कथित ‘घृणा और नरसंहार के आह्वान’ के साथ संदर्भित करने के लिए कहा गया था। विश्वविद्यालय में ओपिनियन की विविधता के लिए कोई स्थान था, इसलिए इसे ‘फासीवाद’ का नाम दे दिया गया।
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के एक फैकल्टी ने बैच की ओर से एक एकजुटता पत्र लिखकर कॉलेज में कट्टरता की घटना की निंदा करने के लिए कहा। उसने घटना के खिलाफ एक बैठक करने को कहा और मामले में तिवारी के खिलाफ खुला स्टैंड लिया। तिवारी ने पहले शिकायत की थी कि शिक्षकों का एक समूह उनकी राजनीतिक विचारों को लेकर उन्हें अलग-थलग कर रहा है।
तिवारी के खिलाफ विरोध का आह्वान
छात्रों के एक गुट ने इस घटना को ‘इस्लामोफोबिया’ करार देते हुए परिसर में ऋषि तिवारी के खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। इंस्टाग्राम स्टोरीज के माध्यम से सोशल मीडिया पर उत्पीड़न करने के अलावा छात्रों को इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए लामबंद किया गया। दावा किया गया कि तिवारी ने एक अन्य छात्र के मुँह पर थूका है।
जब ऑपइंडिया ने ऋषि तिवारी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि कॉलेज की अनुशासन समिति द्वारा जाँच पूरी होने तक उन्हें परिसर में किसी भी शैक्षणिक गतिविधि में शामिल होने से रोक दिया गया है। उन्हें अगली सूचना तक परिसर और उनके छात्रावास में प्रवेश करने से रोक दिया गया है।
हालाँकि, मामले में जाँच होनी बाकी है, फिर भी ऋषि तिवारी को सिर्फ आरोपों के लिए दंडित किया गया। जब उनसे पूछा गया कि सीधे निलंबन का निर्णय क्यों लिया गया, तब उन्होंने कहा कि कैंपस में विरोध का आग भड़काने वाले छात्रों के दबाव में कॉलेज को इस तरह के कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा। तिवारी को ई-मेल पर भेजे गए निलंबन नोटिस में उल्लेख किया गया है कि उनका निष्कासन ‘सभी छात्रों की सुरक्षा के हित’ में लिया गया कदम है।