क्लीनचिट के बावजूद कमिश्नर और MS ने सरेआम बताया चोर: हिन्दूराव हॉस्पिटल के डॉ. पीयूष की प्रताड़ना क्यों?

कथित तौर पर कमिश्नर वर्षा जोशी ने दफ्तर में खड़ा कर डॉ. पीयूष पुष्कर को बुरा-भला कहा

डॉक्टर पीयूष पुष्कर दिल्ली के हिन्दू राव हॉस्पिटल में रेजिडेंट डॉक्टर हैं। वे लगातार प्रताड़ना के शिकार हैं। उन्हें प्रताड़ित कोई और नहीं बल्कि उनका ही कॉलेज और नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन कर रहा है। सोशल मीडिया पोस्ट्स को लेकर उनके ख़िलाफ हॉस्पिटल में साजिश रची जाती है। हालॉंकि सरकार के ख़िलाफ़ उन्होंने कुछ नहीं लिखा है।

डॉ. पीयूष पुष्कर का कहना है कि वे सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। कोरोना से निपटने में सरकार की मदद करना चाहते हैं। तमाम संघर्ष करते हुए उन्होंने पीपीई किट के लिए सीधा मैन्युफैक्चरर से संपर्क किया और अपने स्तर से जितना हो सकते ख़रीद कर डॉक्टरों की मदद की।

कथित तौर पर नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की कमिश्नर वर्षा जोशी उन्हें सार्वजानिक तौर पर ‘चोर’ और ‘धोखेबाज’ कह कर संबोधित करती हैं। एनबीई (नेशनल बोर्ड ऑफ एक्सामिनेशन्स) से क्लीनचिट मिलने के बावजूद उनके साथ ऐसा हो रहा। इसकी वजह से डॉ. पीयूष डिप्रेशन के शिकार रहे हैं। वे कई रातों से सोए तक नहीं हैं।

इस संबंध में बात करते हुए डॉ. पीयूष पुष्कर भावुक हो जाते हैं और रो पड़ते हैं। वे कोरोना से निपटने में सरकार की मदद कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन उन्हें ही दुष्प्रचार करने वाला बताता है। उन्हें बार-बार अपमानित किया जाता है। क्लीनचिट मिलने के बाद वर्षा जोशी ने फिर से उनके लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया। हॉस्पिटल की एमएस (मेडिकल सुपरिटेंडेंट) उन्हें ‘गेट लॉस्ट’ कह कर बिना कुछ कहे-सुने भगा देती हैं।

डॉक्टर पीयूष पुष्कर हिन्दू राव हॉस्पिटल में डीएनबी ऑर्थोपेडिक सर्जरी रेजिडेंट हैं। वे ‘रेजिडेंट डॉक्टर्स ऑफ हिन्दू राव’ के अध्यक्ष भी हैं। कुछ दिनों पहले की बात है, जब एक एनजीओ ने हॉस्पिटल को कुछ पीपीई किट डोनेट किया। उन्होंने इसे रिसीव किया और डॉक्टरों के बीच वितरित किया।

लेकिन, वर्षा जोशी को यह पसंद नहीं आया। उन्होंने इसे अपने इगो का मामला बना लिया और हाथ धो के डॉक्टर पुष्कर के पीछे पड़ गईं। उन्हें सोशल मीडिया पर चोर तक कहकर सम्बोधित किया गया और हॉस्पिटल की गरिमा पहुँचाने का आरोप लगाया गया।

इसके बाद डॉक्टर पीयूष पुष्कर के टर्मिनेशन का ऑर्डर जारी कर दिया गया। लेकिन, वर्षा जोशी ने जैसा सोचा था, एकदम से वैसा नहीं हुआ। ‘दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन’ सहित देश के कई अन्य हिस्सों में डॉक्टरों ने उनके इस क़दम का विरोध किया। इस मामले को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के समक्ष भी उठाया गया।

‘नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशंस’ ने उनके टर्मिनेशन ऑर्डर को रद्द कर दिया। लेकिन, ऊपर से आदेश आने के बावजूद हॉस्पिटल उन्हें ड्यूटी ज्वाइन नहीं करने दे रहा है। नीचे आप ‘डॉक्टर मोनिका फाउंडेशन’ द्वारा डोनेट किए गए पीपीई किट से संबंधित कागज़ देख सकते हैं:

डोनेशन पूरे पारदर्शी तरीके से किया गया

डॉ. पीयूष पुष्कर के टर्मिनेशन का आदेश नॉर्थ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की तरफ से आया। इसमें लिखा है कि ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के डीएनबी छात्र डॉक्टर पीयूष पुष्कर को हॉस्पिटल की गरिमा को ठेस पहुँचाने के आरोप में उनकी सेवा से टर्मिनेट किया जाता है। आदेश के साथ ही उनके त्वरित टर्मिनेशन की बात लिखी हुई है। नीचे आप डीएमसी द्वारा जारी किए गए टर्मिनेशन ऑर्डर को देख सकते हैं, जिस पर हिन्दू राव हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट का हस्ताक्षर हैं:

डीएमसी द्वारा जारी किया गया टर्मिनेशन का आदेश

इस आदेश को रिसीव करने वालों में डॉक्टर पीयूष का नाम इसीलिए है, क्योंकि वो DRA के अध्यक्ष भी हैं। इस पर अप्रैल 15, 2020 की तारीख अंकित है। डोनेशन वाले दस्तावेज पर भी डॉक्टर पुष्कर का नाम है। वो प्रक्रिया पूरे वैध तरीके से हुई थी।

हालाँकि, इसके बाद NBE ने इस टर्मिनेशन ऑर्डर को रद्द कर दिया। एनबीई ने लिखा कि डॉक्टर पुष्कर हिन्दू राव हॉस्पिटल में ‘स्पेशलिटी ऑफ ऑर्थोपेडिक सर्जरी’ में पोस्ट एमबीबीएस डीएनबी सीट मिली है। दिसंबर 2019 में उन्होंने फाइनल थ्योरी एग्जाम दी थी।

एनबीई ने हॉस्पिटल द्वारा दिए गए सारे दस्तावेजों की जाँच के बाद पाया कि इस मामले को टर्मिनेशन से पहले ‘ग्रीवांस रेड्रेसल कमिटी’ के पास नहीं ले जाया गया, जो कि इस प्रक्रिया की सबसे बड़ी खामी की ओर इशारा करता है। यानी, ‘प्रिंसिपल नेचर ऑफ़ जस्टिस’ को नज़रंदाज़ किया गया। इसी आधार पर उनका टर्मिनेशन ग़लत पाया गया और उन्हें फिर से बहाल कर दिया गया।

उन्हें 20 अप्रैल से फिर से अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने को कहा गया। लेकिन, हॉस्पिटल ने अड़ंगा लगाना शुरू कर दिया और उन्हें ज्वाइन करने नहीं दिया जा रहा है।

यह भी कहा जा रहा है कि बिना जाँच के सीधा टर्मिनेट कर देना एक बहुत ही क्रूर निर्णय था। उन्हें रिजाइन करने को भी कहा जा सकता था। एनबीई के आदेश के बावजूद हॉस्पिटल उन्हें वापस नहीं ले रहा है, जो फिर से नियमों का उल्लंघन है। टर्मिनेट करने से पहले उनसे कोई स्पष्टीकरण भी नहीं माँगा गया था। न तो उन्हें अपनी बात रखने का मौका दिया गया और न ही उचित जाँच की गई।

वहीं वर्षा जोशी का आरोप है कि डॉ. पीयूष पुष्कर ने एनजीओ से हॉस्पिटल अथॉरिटी बनकर कांटेक्ट किया, जबकि मेडिकल सुपरिटेंडेंट पहले से ही संपर्क में थीं। उनके आरोप हैं कि पीपीई के स्टॉक का वितरण करना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।

एनबीई ने बीएमसी के आदेश पर लगाईं रोक, फिर से बहाल किया

एक वकील ने इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बोबडे को भी पत्र लिखा। उन्होंने सीजेआई से इस मामले में हस्तक्षेप की माँग की थी। इधर डॉक्टर पीयूष पुष्कर ने आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि उस एनजीओ ने ही उनसे संपर्क किया था। उन्होंने इस सम्बन्ध में हॉस्पिटल के पदाधिकारियों को सूचित कर दिया था।

उन्होंने कहा कि अगर कोई एनजीओ उनके नाम पर कुछ डोनेट करता है तो क्या उन्हें उसके वितरण का अधिकार नहीं है? वर्षा जोशी का कहना है कि पहले पीपीई किट हॉस्पिटल स्टोर में जाना चाहिए था। वहीं डॉक्टर पुष्कर का कहना है कि रेजिडेंट डॉक्टरों ने ऐसा करने से मना किया था, क्योंकि स्टोर में जाने के बाद उसका ठीक से वितरण हो ही नहीं पाता है।

यहाँ बात ये है कि जब रेजिडेंट डॉक्टरों की यही राय थी, एनजीओ ने पीपीई किट डोनेट किया और वितरण के समय वहाँ मौजूद था, तो फिर कमिश्नर वर्षा जोशी को क्या दिक्कत आ गई? एक डॉक्टर के करियर के साथ क्यों खेला जा रहा है?

डॉक्टर पीयूष कहते हैं कि वो हॉस्पिटल के भले की सोच रहे हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो वो अपने रुपयों से पीपीई किट नहीं ख़रीदते। उन्होंने इतना कुछ होने के बावजूद सार्वजनिक तौर पर कभी हॉस्पिटल के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहा, फिर उन्हें बदनाम क्यों किया जा रहा है?

उन्होंने पीपीई के बारे में पूरा अध्ययन किया। ‘कोरोना टास्क फोर्स’ में उन्होंने अपनी टीम के साथ ड्यूटी के इतर समय और संसाधन देकर जनसेवा की और सरकार की मदद करने का प्रयास किया।

डॉक्टर पीयूष ने बताया कि उन्हें 5 महीने से कोई सैलरी नहीं मिली है। वो घर से रुपए माँग कर काम कर रहे हैं। उनके घर पर उनकी माँ काफी परेशान है। बावजूद इसके लगातार उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि वो भले ही वापस ज्वाइन कर लें, लेकिन उन्हें फिर से प्रताड़ित किया जाएगा। उनके ख़िलाफ़ कुछ और मुद्दे खोज कर निकाले जाएँगे, ताकि उन्हें फिर से किसी बहाने बाहर निकाला जा सके। ‘ग्रिवांस एड्रेसल सेल’ में भी कमिश्नर, एमएस और उनके लोग ही बैठे हुए हैं। ऐसे में वहाँ से न्याय की उम्मीद ही नहीं है।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.