JNU हिंसा की जाँच में भी रोड़े डाल रहे वामपंथी, प्रोफेसरों की 5 सदस्यीय समिति के विरोध में JNUTA

JNU हिंसा की जॉंच में बाधा डाल रहे वामपंथी

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में रविवार (5 जनवरी) को साबरमती हॉस्टल में नक़ाबपोश बदमाशों की हिंसा के कारणों का पता लगाने के लिए कुलपति एम जगदीश कुमार ने पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया है। इस समिति में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी टीचर्स फेडरेशन (JNUTF) के सदस्यों को शामिल किया गया है। इनमें, प्रोफ़ेसर सुशांत मिश्रा, मज़हर आसिफ़, सुधीर प्रताप सिंह, संतोष शुक्ला और भसवती दास शामिल हैं।

ख़बर के अनुसार, कुलपति द्वारा जारी की गई अधिसूचना में कहा गया है कि यह समिति हिंसा के कारणों का पता लगाकर जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। इसके अलावा, कुलपति ने कहा कि यदि सुरक्षा में किसी भी तरह की चूक हुई होगी, तो समिति छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उचित उपायों की सिफ़ारिश भी करेगी।

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (JNUTA) ने कुलपति द्वारा नियुक्त की गई जाँच समिति के सदस्यों के चयन पर सवाल उठाए हैं। सेंटर फॉर कॉपरोटेविव पॉलिटिक्स एंड पॉलिटिकल थ्योरी स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर मोहिंदर सिंह ने कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सुलह का रास्ता दिखाया था। उससे पहले कुलपति द्वारा अपने लोगों को शामिल कर समिति का गठन करना ठीक नहीं। उन्होंने जाँच समिति की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए हैं। JNUTA वैचारिक रूप से JNUTF का विरोधी माना जाता है।

JNUTF के वरिष्ठ सदस्य और स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के डीन अश्विनी महापात्रा ने बताया कि जाँच समिति का गठन JNU के छात्रों को राष्ट्रहित में काम करने के लिए किया गया। जिस तरह से विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नकारात्मक मुद्दों को लेकर चर्चा में बना हुआ है उससे हम आहत हैं। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि JNU को लेकर नकारात्मक धारणाएँ बदल जाएँ। आने वाले दिनों में, हमारे पास कैंपस के लिए कई कार्यक्रम हैं। उन्होंने प्रदर्शनकारी छात्रों के सन्दर्भ में कहा कि हमें उनके प्रदर्शनों से समस्या नहीं है, लेकिन हम चाहते हैं कि छात्र राजनीतिक हकीकत और अपने विरोध की सीमाओं को समझें।

अश्विनी महापत्रा का कहना है कि वो कुलपति से केवल औपचारिक बैठकों में ही मिलते हैं। इस दौरान उनकी चर्चा का विषय विश्वविद्यालय की जगह को सभी के लिए एकसमान रूप से उपलब्ध कराना होता है, जिसमें नियमित तौर पर अनुसंधान की अनुमति देना भी शामिल है। बता दें कि JNUTF ने पिछले महीने JNUTA की कमियों के चलते ख़ुद को उससे अलग कर लिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया