कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार: नदीमर्ग में 70 साल की महिला से लेकर 2 साल के मासूम तक को मारी गोली

नदीमर्ग में आतंकियों को पड़ोस के मुस्लिम बहुत गॉंवों से भी मदद मिली थी (फाइल फोटो)

एक इंग्लिश मैगज़ीन को 2018 में रामकिशन धर बताते हैं, “बगल वाली मस्जिद से पंडितों और भारत के खिलाफ ऊँची आवाज में नारें लगने शुरू होते ही हम समझ जाते थे कि हमारा यहाँ से जाने का समय आ गया है।” ऐसा 1989 से लगातार होता रहा और आज कश्मीर घाटी हिन्दुओं से लगभग खाली हो गई है। जम्मू-कश्मीर जिसे धरती का स्वर्ग कहा गया वह हिन्दुओं के लिए नरक बन गया। खुले तौर पर वहाँ एक नहीं, बल्कि कई नरसंहारों को अंजाम दिया गया। इन मामलों पर कभी कोई कार्यवाही नहीं की गई। ऐसा ही एक दास्ताँ नदीमर्ग नरसंहार की है।

शोपियाँ जिले में नदीमर्ग (अब पुलवामा में) एक हिन्दू बहुल गाँव था, जिसकी कुल आबादी मात्र 54 थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद के पैतृक गाँव से 7 किलोमीटर दूर स्थित इस गाँव में 23 मार्च, 2003 की रात सब तबाह हो गया। जब पूरा देश भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की याद में शहीद दिवस मना रहा था, तब नदीमर्ग में हिन्दुओं का नरसंहार हो रहा था। उस दिन 7 आतंकवादी गाँव में घुसे और सभी हिन्दुओं को चिनार के पेड़ के नीचे इकठ्ठा करने लगे। रात के 10 बजकर 30 मिनट पर इन आतंकियों ने 24 हिन्दुओं की गोली मार कर हत्या कर दी। गौर करने वाली बात थी कि 23 मार्च को पाकिस्तान का राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।

मरने वालों में 70 साल की बुजुर्ग महिला के साथ 2 साल का मासूम बच्चा भी शामिल था। क्रूरता की हद पार करते हुए एक दिव्यांग सहित 11 महिलाओं, 11 पुरुषों और 2 बच्चों पर बेहद नजदीक से गोलियाँ चलाई गई। कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि पॉइंट ब्लेंक रेंज से हिन्दुओं के सिर में गोलियाँ मारी गई थी। आतंकी यही नहीं रुके उन्होंने घरों को लूटा और महिलाओं के गहने उतरवा लिए। न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार ने इस घटना का जिम्मेदार ‘मुस्लिम आतंकवादियों’ बताया। अमेरिका के स्टेट्स डिपार्टमेंट ने भी इसे धर्म आधारित नरसंहार माना था।

आतंकियों को मदद पड़ोस के मुस्लिम बहुलता वाले गाँवों से मिली थी। उस दौरान जम्मू-कश्मीर पुलिस के इंटेलिजेंस विंग को संभाल रहे कुलदीप खोड़ा भी मानते हैं कि बिना स्थानीय सहायता के नदीमर्ग नरसंहार को अंजाम ही नहीं दिया जा सकता था। नरसंहार के चश्मदीद बताते है कि आतंकियों ने हिन्दूओं को उनके नाम से पुकारकर घरों से बाहर निकाला था। यानी वे पहले से ही इस योजना पर काम कर रहे थे। आतंकियों ने गाँव का दौरा किया हो, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इस प्रकरण में राज्य सरकार की भूमिका भी संदेह वाली बनी रही। उस इलाके की सुरक्षा में लगी पुलिस को हटा लिया गया था। घटना से पहले वहाँ 30 सुरक्षाकर्मी तैनात थे, जिनकी संख्या उस रात घटाकर 5 कर दी गई।

अगले ही महीने इस नरसंहार में शामिल एक आतंकी जिया मुस्तफा को गिरफ्तार कर लिया गया। पाकिस्तान के रावलकोट का रहने वाला यह आतंकी लश्कर-ए-तय्यबा का एरिया कमांडर था। उसने जाँच के दौरान बताया कि लश्कर के अबू उमैर ने उसे ऐसा करने के लिए कहा था। मुस्तफा के मुताबिक वह उन बैठकों का हिस्सा रहा, जहाँ देश भर के हिन्दू मंदिरों पर आतंकी हमले की योजना बनाई गई थी। उसने एजेंसियों को बताया कि वे सभी पाकिस्तान के संपर्क में थे। वहाँ से उन्हें कहा गया था कि जेहाद के लिए 6 आतंकियों को दिल्ली और गुजरात में मुस्लिम युवाओं के बीच भेजना है। सितम्बर 2001 में सीमा पार से मुस्तफा कश्मीर घाटी में घुसा था। वह दूसरे 6 आतंकियों के साथ पुलवामा के आसपास आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता था।

मुस्तफा स्थानीय लोगों से संपर्क से लश्कर में भर्ती होने के लिए युवाओं को उकसा रहा था। हथियारों और वायरलेस के अलावा उसके पास से कुछ दस्तावेज भी बरामद किए गए। उनसे पता चला कि उसे पैसा पाकिस्तान से मिलता था। इस गिरफ्तारी ने पाकिस्तान के उन दावों की पोल खोल दी जिसमें वह भारत में आतंकी गतिविधियों में अपना हाथ होने से इनकार करता रहा है। अमेरिका में असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट्स (दक्षिण एशिया), क्रिस्टीना रोक्चा ने भी चेतावनी देते हुए कहा कि पाकिस्तान को उसकी जमीन से संचालित आतंकवाद को रोकने के हरसंभव प्रयास करने चाहिए। नदीमर्ग नरसंहार के सभी आतंकी पाकिस्तान से ही आए थे। इसकी पुष्टि बॉर्डर सिक्यूरिटी फ़ोर्स को 18 अप्रैल, 2003 को मिली एक सफलता से हो गई। मुस्तफा के खुलासे के बाद बीएसएफ ने कुलगाम में तीन आतंकियों को मार गिराया। उनमें से एक आतंकी मंजूर ज़ाहिर था जो कि नरसंहार के साथ अक्षरधाम मंदिर हमले में भी शामिल था। लाहौर का रहने वाला मंजूर लश्कर के लिए काम करता था।

नदीमर्ग नरसंहार के बाद जम्मू-कश्मीर के हिन्दुओं के मन में बैठ गया कि वे राज्य में सुरक्षित नहीं हैं। बीते दशकों में उनके पुनर्वास की कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई। भारत के उच्चतम न्यायालय से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली। चूँकि यह मामला ‘कई साल पुराना है इसलिए न्यायालय इस पर सुनवाई नहीं कर सकता’। यह कहकर 2017 में दो न्यायाधीशों की पीठ ने हिन्दुओं के घाटी में वापसी पर दायर पीआईएल को खारिज कर दिया। एक तरफ हिन्दुओं का नरसंहार हुआ तो दूसरी ओर उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित भी किया गया। उनके घर सस्ते दामों में स्थानीय मुस्लिमों को बेच दिए गए। मसलन, जिस हिन्दू के घर को 2.5 लाख में बेचा गया अगर उसकी जगह वह किसी मुस्लिम का होता तो उसकी कीमत 8 लाख होती।

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Devesh Khandelwal: Devesh Khandelwal is an alumnus of Indian Institute of Mass Communication. He has worked with various think-tanks such as Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation, Research & Development Foundation for Integral Humanism and Jammu-Kashmir Study Centre.