पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नंदीग्राम में ममता सरकार पर जम कर निशाना साधा। इस दौरान योगी ने राम जन्मभूमि अभियान के लिए बलिदान होने वाले कोठारी बंधुओं को याद किया, जिसके बाद वहाँ जोर-जोर से जय श्रीराम के नारे लगे।
सीएम योगी ने कहा, “कोठारी बंधुओं ने अयोध्या में राम मंदिर अभियान के लिए अपना बलिदान दिया। उनके बलिदान का स्मारक आज भी अयोध्या में है। राम मंदिर बनाने का उनका सपना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूरा किया गया।”
बंगाल की धरती पर योगी आदित्यनाथ द्वारा कोठारी बंधुओं को याद करने की वजह सीएम ममता बनर्जी का रवैया ही था। उन्होंने ममता बनर्जी को लेकर कहा, “दीदी को आईआईटी और आईआईएम की इमारतें बनवाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उनकी चिंता बस यही है कि कैसे भी जय श्रीराम बैन किया जाए।”
नंदीग्राम में सीएम योगी आदित्यनाथ ने जिन कोठारी बंधुओं का जिक्र किया गया, उन्हें 1990 में अयोध्या के विवादित ढाँचे पर चढ़ कर भगवा पताका फहराने के आरोप में गोली मार दी गई थी। इनमें से बड़े भाई का नाम राजकुमार (22 साल) और छोटे का नाम शरद (20 साल) था। रामलला के लिए शरद कोठारी ने सिर में गोली खाई तो राजकुमार कोठारी के गले को चीरती गोली निकल गई।
कोठारी बंधु: राम मंदिर के लिए बलिदान की अमर गाथा
मौजूदा जानकारी के अनुसार, कई अन्य स्वयंसेवकों की तरह ही कोठारी बंधुओं ने भी उस समय विहिप की कार सेवा में शामिल होने का फैसला किया। 20 अक्टूबर 1990 को उन्होंने अयोध्या जाने के अपने इरादे के बादे में पिता हीरालाल कोठारी को बताया। इसके बाद आरएसएस से प्रशिक्षित दोनों भाइयों ने 22 अक्टूबर 1990 को कोलकाता से ट्रेन पकड़ी। 25 तारीख से कोई 200 किलोमीटर पैदल चल वे 30 अक्टूबर की सुबह अयोध्या पहुँचे।
30 अक्टूबर को विवादित जगह पहुँचने वाले शरद पहले आदमी थे। विवादित इमारत के गुंबद पर चढ़ कर उन्होंने पताका फहराई। तभी दोनों भाइयों को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया। शरद और राजकुमार अब मंदिर आंदोलन की कहानी बन गए थे। अयोध्या में उनकी कथाएँ सुनाई जा रही थी।
फिर आया 2 नवंबर का दिन। ‘युद्ध में अयोध्या’ के अनुसार दोनों भाई विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। जब सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हट कर एक घर में जा छिपे। सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया।
छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। उनकी अंत्येष्टि में सरयू किनारे हुजूम उमड़ पड़ा था। बेटों की मौत से हीरालाल को ऐसा आघात लगा कि शव लेने के लिए अयोध्या आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके। दोनों का शव लेने हीरालाल के बड़े भाई दाऊलाल फैजाबाद आए थे और उन्होंने ही दोनों का अंतिम संस्कार किया था।