जम्मू कश्मीर के डोडा स्थित वासुकी नाग मंदिर में तोड़फोड़ की घटना सामने आई है। भद्रवाह के इस मंदिर को भद्रकाशी के रूप में भी जाना जाता है। जम्मू संभाग में हुई इस घटना के बाद से स्थानीय हिन्दुओं में रोष व्याप्त है। सड़क पर उतरे प्रदर्शनकारियों ने दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की माँग की। बताया जा रहा है कि ये घटना रविवार (5 मई, 2022) देर रात या फिर सोमवार को तड़के हुई। मंदिर में अंदर से लेकर बाहर तक तोड़फोड़ मचाई गई है।
सुबह में जब पुजारी वहाँ पहुँचे तो उन्होंने इस स्थिति की जानकारी बाक़ी लोगों को दी। लोगों का कहना है कि ऐसी हरकतों के जरिए सांप्रदायिक माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने दोबारा ऐसी हरकतें रोकने के लिए दोषियों को ढूँढ कर कड़ी कार्रवाई की माँग की। सरकार द्वारा एक्शन न लेने की सूरत में प्रदेश भर में सड़क पर उतर कर चक्का जाम की चेतावनी भी दी गई। बता दें कि भद्रवाह के सौंदर्य और आध्यात्मिक विरासत के कारण इसे ‘मिनी कश्मीर’ भी कहते हैं।
भद्रवाह में कई प्राकृतिक और आध्यात्मिक स्थल हैं। इन्हीं धार्मिक स्थलों में नागों के राजा माने जाने वाले वासुकी का मंदिर भी है। भगवान शिव के गले में वासुकी नाग ही दिखाई देते हैं। वसुकी के पिता ऋषि कश्यप थे और उनकी माँ कद्रू थीं। उनके सिर पर नागमणि भी होती है। उनका ये मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला का एक अद्भुत नमूना है, जहाँ एक पत्थर पर दो प्रतिमाएँ (वासुकी और राजा जामुन वाहन) तराशी हुई हैं। इससे थोड़ी ही दूर पर कैलाश कुंड स्थित है, जिसे वासुकी कुंड के नाम से भी जानते हैं।
Vasuki Nag ji mandir is located in Kailash Kund at an altitude of 13,500ft. J&K Dharmarth Trust along with the local Hindu samitis escort the annual Kailash Yatra to the temple. I appeal to the public to exercise restraint & maintain communal harmony.
— Vikramaditya Singh (@vikramaditya_JK) June 6, 2022
जम्मू कश्मीर के पूर्व विधान पार्षद और महाराजा हरि सिंह के वंशज विक्रमादित्य सिंह ने कहा, “भद्रवाह के कैलाश कुंड स्थित श्री वासुकी नाग मंदिर में स्थानीय बदमाशों द्वारा तोड़फोड़ मचाए जाने की घटना सामने आई है। मैंने व्यक्तिगत रूप से डोडा के DC और SSP से बात कर के जल्द से जल्द मामले की जाँच करने और दोषियों पर कार्रवाई के लिए कहा है। ये मंदिर 13,500 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है। ‘J&K धर्मनाथ ट्रस्ट’ और स्थानीय हिन्दू समितियाँ वार्षिक कैलाश यात्रा में मदद करते हैं। मैं लोगों से शांति और सांप्रदयिक सद्भाव बनाए रखने की अपील करता हूँ।”
डोडा पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन्स ग्रुप ने घटनास्थल का जायजा भी लिया है। इस क्षेत्र में कोई आबादी नहीं रहती है और ठंड के मौसम में कोई कनेक्टिविटी भी नहीं रहती है, क्योंकि ये इलाका पहाड़ियों की चोटी पर है। अब भी ये भारी बर्फ़बारी के कारण बंद है। पुलिस ने इसे दानपेटी को लूटने का प्रयास बताया है, लेकिन ये पहले से ही खाली था। ये मंदिर 11वीं शताब्दी में बना था और प्रतिमाएँ 87 डिग्री के झुकाव पर निर्मित की गई थीं।
मंदिर के बारे में कहानी कुछ यूँ है कि सन् 1629 में बसोहली के राजा भूपत पाल ने भद्रवाह पर कब्ज़ा किया था, लेकिन कैलाश कुंड पार करते समय वो नाग जाल में फँस गया। घबराए राजा ने विशाल नाग से माफ़ी माँगी, जिसके बाद नाग ने राजा के कान के छल्ले से एक मंदिर बनवाने को कहा। इस कुंड को ‘वासक छल्ला’ भी कहते हैं, क्योंकि मंदिर निर्माण में देरी के कारण आक्रोशित नागराज ने पानी पी रहे राजा को छल्ला झरने से वापस कर दिया। हालाँकि, राजा ने जल्द मंदिर निर्माण का संकल्प लेते हुए छल्ला वापस समर्पित किया। कथा है कि रास्ते में मूर्तियाँ यहाँ रखी गईं और यहाँ से उठी ही नहीं।