राहुल और हथियार दलाल के ख़ुलासे को बौखलाए मीडिया गिरोह ने दबाया, चलाई बेकार और बकवास ख़बरें, देखें सैम्पल

भ्रष्टाचार की बात करने वाले रवीश कुमार ने कुछ देखा ही नहीं, कुछ सुना ही नहीं

ऑपइंडिया ने बुधवार (मार्च 13, 2019) को राहुल गाँधी और हथियार दलाल संजय भंडारी के बीच क़रीबी संबंधों का ख़ुलासा कर बताया था कि कैसे कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने हसनपुर, पलवल में 6.5 एकड़ ज़मीन ख़रीदी थी। भंडारी रॉबर्ट वाड्रा का ख़ास आदमी है। उस ख़ुलासे में इसके अलावा अन्य रक्षा दलालों एचएल पाहवा और सीसी थम्पी के साथ उनके संबंधों को लेकर भी सबूत पेश किए गए। ख़बर का असर काफ़ी दूर तक हुआ और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राहुल गाँधी से जवाब माँगा। रिपब्लिक भारत ने इस ख़बर को प्रमुखता से चलाई और केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ सहित अन्य भाजपा नेताओं ने जीजा-साले की इस हेराफेरी के आधार पर राहुल को घेरा। वित्त मंत्री और कद्दावर नेता अरुण जेटली ने ब्लॉग लिख कर कॉन्ग्रेस की करतूतों को जनता के सामने रखा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी बात का समर्थन किया। एक दिन में इतना कुछ हो गया लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्हे साँप सूंघ गया था।

कुछ मुट्ठी भर लोग ऐसे भी थे जो हतप्रभ थे कि आख़िर चल क्या रहा है? तैमूर की लंगोट गीली होने की ख़बर को प्रमुखता से चलाने वाले इस गिरोह विशेष ने राहुल गाँधी, संजय, भंडारी, एचएल पाहवा और सीसी थम्पी के क़रीबी संबंधों वाले ख़ुलासे को ऐसे नज़रअंदाज़ किया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। भाजपा के ग्राम प्रधान के साले के ससुर के किसी बयान को उठा कर भाजपा के झूठ के रूप में प्रचारित कर एक-एक घंटे का शो कर लेने वाली तथाकथित पत्रकारों की इस जमात ने भ्रष्टाचार, वित्तीय हेराफेरी, अवैध करार से सम्बंधित इस ख़बर को तवज्जोह ही न दी। अपनी नई ‘कुलदेवी’ प्रियंका गाँधी की आराधना में व्यस्त इन डिजाइनर पत्रकारों ने इस ख़बर को कहीं भी स्थान नहीं दिया। उलटा उन्होंने इसे ढकने की भरपूर कोशिश की। अगर आप इनकी करतूतों को देखेंगे तो आप भी अपनी हँसी नहीं रोक पाएँगे। इसकी कुछ बानगी आपको नीचे दिख जाएगी।

सबसे पहले बात शुरू करते हैं लेखक, विचारक, दार्शनिक, समाचार एंकर, पत्रकार, भविष्यवक्ता और समाजसेवी रवीश कुमार से। सुदूर किसी गाँव के छोटे से जंगल में एक बिजली खम्भे में जंग लगने पर एक घंटे का प्राइम टाइम करने वाले रवीश ने कल राहुल गाँधी के पोल-खोल को दरकिनार करते हुए चंद्रशेखर आजाद की बात की। अब आप सोच रहे होंगे कि ये तो अच्छी बात है कि रवीश अब स्वतंत्रता सेनानियों के गुण गा रहे हैं। लेकिन यहाँ पेंच है। जरा ठहरिए। ये वो वाले चंद्रशेखर आजाद नहीं हैं। ये ‘चंद्रशेखर आजाद रावण’ है, जो एक वर्ष से भी अधिक जेल में रह कर बाहर निकला है। राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट के तहत आरोपित आजाद सहारनपुर में दंगा भड़काने के लिए कुख्यात है। भीम आर्मी के अध्यक्ष आजाद को उभरता हुआ दलित नेता बता कर रवीश ने उसके गुणगान में कसीदे पढ़े और अपने चैनल पर राहुल गाँधी वाली ख़बर को चालाकी से छिपाया।

‘बिहारी’ रवीश कुमार ने राहुल गाँधी द्वारा यूपी-बिहार के लिए कहे गए अपमानजनक शब्दों को भी अपने प्राइम टाइम को कोई स्थान नहीं दिया। उलटा राहुल गाँधी को बेबाक नेता की तरह पेश करते हुए बताया गया कि देखिए कैसे उन्होंने परिपक्वता से हर एक सवाल का जवाब दिया। कुल मिला कर इस प्राइम टाइम में वो सब कुछ था जिस से असली मुद्दे को छिपाने की कोशिश की जाए। इसमें राहुल तो थे पर भंडारी नहीं था, इसमें प्रियंका तो थी पर वाड्रा नहीं थे, इसमें आजाद तो था लेकिन पाहवा और थम्पी नहीं थे, इसमें राजनीति तो थी पर कॉन्ग्रेस की करतूतों का जिक्र नहीं था।

रवीश ने राहुल गाँधी को बचाने के लिए ढूँढा नया मसीहा

उधर फेक न्यूज़ में दक्ष ‘द वायर’ का तो कहना ही क्या। उसने तो प्रियंका गाँधी को घृणा की हवा के ख़िलाफ़ प्रेम की आँधी बता कर उनकी सफलता की कामना करने वाली ओपिनियन पीस को भ्रष्टाचार के मुद्दे के ऊपर प्राथमिकता दी। प्रियंका गाँधी की डिक्शनरी को समझाते हुए इस रिपोर्ट में उन्हें राष्ट्रप्रेम की प्रतिमूर्ति दर्शाया गया। पोर्टल अभी तक ज़ोया अख्तर की अमेज़न सीरीज, नोटबंदी के कथित घाटे इत्यादि पर ही अटका पड़ा है। वायर के सौतेले भाई ‘द क्विंट’ की बात करें तो उसने आमिर खान, राफेल, योगेंद्र यादव के चुनाव आयोग से सवाल, इन्हीं चीजों को प्राथमिकता दी और राहुल गाँधी-संजय भंडारी के रिश्तों के बारे में कुछ भी नहीं कहा। क्विंट और वायर के बुआ के बेटे स्क्रॉल ने तो दो क़दम और आगे बढ़ कर प्रियंका गाँधी की ट्विटर प्रोफाइल पिक्चर को अपनी हेडलाइन बना दिया। स्क्रॉल ने प्रियंका गाँधी द्वारा ट्विटर प्रोफाइल पिक्चर बदलने को एक बड़ी बहस की चिंगारी कहा।

जींस और और टॉप पर अटका पड़ा है स्क्रॉल

ये सोचनीय है कि अगर कोई राजनेता या राजनेत्री (जिसकी अभी-अभी राजनीति में एंट्री हुई है) अपनी डीपी बदल ले तो उसे एक बड़ी बहस का आधार बता दिया जाता है। लेकिन, देश की पुरानी पार्टी के अध्यक्ष के रक्षा दलालों के साथ क़रीबी सम्बन्ध होने की बात सामने आती है तो उसे दबा दिया जाता है। ये आज का मीडिया है। प्रियंका गाँधी ने जीन्स पहन रखी है और अगर ट्विटर पर किसी ने कह दिया कि ये रिफ्रेशिंग है तो ये उनके लिए सबसे बड़ी ख़बर बन जाती है। अब कोई राजनेता जीन्स टॉप पहने या कुर्ता-पाजामा, मीडिया वालों के लिए ये चुनावी मुद्दा है और इसी आधार पर राजनेताओं की विश्वसनीयता तय की जाएगी। भ्रष्टाचार उनके लिए बस एन राम द्वारा लिखे बिना सिर-पैर के लेखों तक ही सीमित है। ऐसे लेख, जिसमें तथ्यों को घुमा-फिरा कर पाठक को एक भूल-भुलैया में ऐसा उलझाया जाता है, जैसे कि वो कोई अर्थशास्त्र की पुस्तक पढ़ रहा हो।

आख़िर क्या कारण है कि जिस ख़बर पर विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, रिपब्लिक भारत जैसे बड़े चैनल पर बहस चली, राहुल गाँधी द्वारा इस से जुड़े सवालों को दरकिनार कर दिया गया लेकिन मीडिया के इस वर्ग विशेष के कानों में जूँ तक न रेंगी। गिरोह ने जिस तरह इतनी आसानी से इस ख़बर को दरकिनार किया और अलूल-जलूल ख़बरों को प्रकाशित कर इसे दबाने की कोशिश की, उसे लगा कि लोगों को कुछ भी पता नहीं चलेगा। लेकिन ऐसा नहीं है। दक्षिणपंथियों को बेवकूफ, अनपढ़ और अज्ञानी दिखाने के चक्कर में सर्फ एक्सेल और माइक्रोसॉफ्ट एस्केल को लेकर ख़बरें बनाने वाली मीडिया के इस जमात की पोल अब खुल चुकी है। जनता जागरूक है, इनके कुटील प्रयासों को देख रही है और समझ भी रही है।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.