राजदीप सरदेसाई: आज रिया की स्तुति से टीआरपी की तलाश, कभी गुजरात दंगों पर ‘प्रोपेगेंडा’ से सेंकी थी रोटियॉं

एक विफल अभिनेत्री में अपनी पत्रकारिता की राख तलाशते राजदीप सरदेसाई

न्यूज़ रूम से समाचार पढ़ना और अपने विचार थोप देना एक समय तक भारतीय मीडियाकारों की सच्चाई रहा है। लेकिन तब बाजार में आज की तरह प्रतिस्पर्धा, संचार के मध्यम और सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म भी मौजूद नहीं थे। राजदीप सरदेसाई जैसे तथाकथित पत्रकारों ने शायद ही कभी सोचा होगा कि उन्हें न्यूज़रूम में बने बनाए माहौल के अलावा कभी दोहरे संचार के लिए भी लोगों के बीच होना होगा और जिस दिन ऐसा हुआ उस दिन वो लोगों के साथ मुक्केबाजी करते नजर आए।

24×7 समाचार पढ़ने और सोशल मीडिया के कारण हर शब्द के लिए जनता के प्रति जवाबदेही से राजदीप सरदेसाई जैसे लोग बौखलाए हुए हैं। दरअसल, इस हर समय जनता के सामने और जनता के बीच होने की वजह से इन पत्रकारों का वास्तविक चेहरा भी अब सबके सामने है क्योंकि हर समय आप अपने शब्दों के चयन और अपने व्यवहार के लिए न्यूज़रूम के बनाए बनाए माहौल और स्क्रिप्ट के अनुसार नहीं चल सकते।

राजदीप सरदेसाई जैसे लोग, जिन्होंने अपनी पत्रकारिता का करियर ही 2002 के गुजरात दंगों में नरेन्द्र मोदी को विलेन साबित करने और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ खुद ही न्यायधीश बनकर बनाया है, आज बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह की मौत में उनके परिवार द्वारा मुख्य आरोपित बताई गई रिया चक्रवर्ती का मीडिया मैनेजमेंट कर रहे हैं।

इसके साथ ही राजदीप सरदेसाई अपने निष्पक्ष होने का भी दावा करना चाहते हैं और साथ ही तटस्थ रिपोर्टर होने का भी दावा करते हैं। उससे भी बड़ी विडंबना यह कि रिया चक्रवर्ती जैसी एक विफल अभिनेत्री में राजदीप अपनी पत्रकारिता का भविष्य तलाश रहे हैं।

नरेंद्र मोदी की खरी-खरी

यह 2014 के आम चुनावों से ठीक पहले की ही बात है जब भाजपा ने पार्टी के चेहरे के रूप में नरेंद्र मोदी को चुना और भारत अपने अगले युग के राजनितिक बदलाव की तैयारियाँ कर रहा था। राजदीप सरदेसाई इस समय सीएनएन-IBN के न्यूज़ रिपोर्टर हुआ करते थे।

राजदीप सरदेसाई ने शायद ही सोचा होगा कि उन्हें अपनी वर्षों पुरानी रोजी-रोटी के जुगाड़ की कहानी को ही फिरसे दोहराने के लिए नरेंद्र मोदी की ओर से इतना स्पष्ट जवाब मिलेगा। रैली के दौरान ही राजदीप सरदेसाई ने अपने लिए नरेंद मोदी के पास जगह बनाई और माइक पर उनसे सवाल किया कि क्या 2002 के दंगे उनके भविष्य की राजनीति की राह में बाधक साबित होंगे?

इस पर नरेंद्र मोदी ने जो जवाब दिया था उसके स्वर आज तक राजदीप के कानों में गूँजते होंगे। नरेंद्र मोदी ने कहा – “मैं राजदीप सरदेसाई को शुभकामना देता हूँ कि वो पिछले दस साल से इसी मुद्दे के भरोसे जी रहे हैं।”

इस पर जब राजदीप ने अपने भावों को नियंत्रित करते हुए नरेंद्र मोदी को टोकने का प्रयास किया तो नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा- “नहीं, सुनना पड़ेगा। इसी मुद्दे से आपकी रोजी-रोटी चलती है। और मैंने तो ऐसा भी सुना है कि मोदी को गाली देने वालों को राज्यसभा की सीट मिलती है, पद्म भूषण और अन्य पुरस्कार मिलते हैं। मेरी राजदीप को शुभकामना है कि आप अपना यह अभियान जारी रखिए और ऐसे मित्रों की मदद से राज्यसभा पहुँच जाइए…पद्म भूषण, पद्म विभूषण कुछ प्राप्त करिए।”

राजदीप ने फिर अपना घटिया और घिसा-पिटा सवाल जारी रखा और ‘कहीं ना कहीं’ को कई बार दोहराते हुए फिर कहा कि 2002 मोदी के राजनीतिक जीवन में रुकावट पैदा कर सकता है।

इस पर नरेंद्र मोदी ने उन्हें फिर उसी भाषा में जवाब देते हुए कहा – “राजदीप सरदेसाई आपके पास आपका न्यूज़ चैनल है। आप घंटों तक इस पर डिबेट चलाइए।” नरेंद्र मोदी तब भी आज जितने ही अपने पूरे नियंत्रण में थे, जबकि राजदीप के चेहरे और आवाज में आज जितना ही छिछोरापन!

राजदीप सरदेसाई और नरेंद्र मोदी के बीच बातचीत के इस दुर्लभ क्षण को इस लिंक पर देखा सकते हैं –

इसके बाद नरेंद्र मोदी के राजनीतिक जीवन में जो कुछ घटा है, वह सब हम सबके सामने है। और राजदीप के साथ क्या कुछ घटित हो रहा है वह भी हम सब देख रहे हैं। राजदीप को आज एक बॉलीवुड की ऐसी अभिनेत्री का मीडिया मैनेजमेंट करके जीवन यापन करना पड़ रहा है, जिसके खाते में उसके द्वारा की गई फिल्मों से ज्यादा उस पर एक सफल अभिनेता की मौत से जुड़े आरोप लग चुके हैं।

यह भी वास्तविकता है कि राजदीप सरदेसाई को ना ही रिया चक्रवर्ती से और ना ही सुशांत सिंह राजपूत से ही संवेदना है। वह बस TRP की रेस में किसी तरह खुद को खबरों में बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं। और उन्होंने रिया चक्रवर्ती का प्रायोजित इंटरव्यू कर साबित कर दिया है कि इसके लिए वो किसी भी हद तक गुजरने के लिए भी तैयार हैं।

राजदीप के लिए यह कोई समझौते वाली बात भी नहीं है, वास्तव में यही उनका वास्तविक नजरिया है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही मानो राजदीप सरदेसाई पर वज्रपात हो गया। इसके रुझान न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर पर उनके द्वारा मोदी समर्थकों के साथ की गई मुक्केबाजी थी। इसी बीच उन्होंने राज ठाकरे से भी इंटरव्यू के दौरान डाँट भी खाई। लेकिन यही राजदीप का स्वभाव है और यही उनकी फितरत है।

उन्हें तो अब यह महसूस होना भी बंद हो गया होगा कि वह अपने इस स्वभाव, जिसे वो पत्रकारिता कहते हैं, के कारण उन्हीं के पूर्व सहयोगी रवीश कुमार द्वारा ‘दुकानदार’ तक कह दिया गया। रिया चक्रवर्ती के इंटरव्यू के बाद वह हमेशा से ही विवादित बरखा दत्त से भी फटकार खा चुके हैं। जनता उन्हें रोज ही भली-बुरी बातें सुना रही है।

यही वो राजदीप सरदेसाई भी है, जो आज भी मौका मिलते ही पीएम मोदी पर गुजरात दंगों का आरोप लगाने का अवसर नहीं गँवाते। सुप्रीम कोर्ट कब की पीएम मोदी पर लगे आरोपों के बाद उन्हें दोषमुक्त भी घोषित कर चुकी है। लेकिन राजदीप की अपनी एक निजी अदालत है ; यह अदालत सस्ती लोकप्रियता और TRP के लिए उन्हें कभी न्यायधीश तो कभी वादी और कभी प्रतिवादी बना रही है। यही वजह है कि वो एक ऐसे व्यक्ति की मौत की जाँच तक को समय की बर्बादी बताने से नहीं चूकते, जो अभी अपने अभिनय के करियर के शुरूआती दिनों में ही था।

जब राजदीप ने सोहराबुद्दीन केस में माँगी थी माफ़ी

इसके अलावा, राजदीप की पत्रकारिता के खोजी संस्करणों में एक बड़ी उपलब्धि तब जुड़ी थी, जब उन्होंने मई 2007 में, सीएनएन-आईबीएन के तत्कालीन प्रधान संपादक रहते सोहराबुद्दीन मामले पर एक कार्यक्रम चलाया था, जिसका शीर्षक था ’30 मिनट – सोहराबुद्दीन, द इनसाइड स्टोरी।’

सोहराबुद्दीन केस में झूठी रिपोर्टिंग के लिए ‘पत्रकार’ राजदीप सरदेसाई को कोर्ट से बिना शर्त माफी माँगनी पड़ी थी। दरअसल, इस कार्यक्रम में राजदीप सरदेसाई द्वारा पेश की गई न्यूज रिपोर्ट में कहा गया था, “पुलिस सूत्रों का कहना है कि वंजारा और पांडियन ने हैदराबाद स्पेशल इंवेस्टिगेशन यूनिट के एसपी राजीव त्रिवेदी की मदद से बीदर में सोहराबुद्दीन और कौसर बी को पकड़ा। राजीव त्रिवेदी ने फर्जी नंबर प्लेट वाली कारें मुहैया कराईं, जिसमें सोहराबुद्दीन को अहमदाबाद लाया गया और फिर एक फर्जी मुठभेड़ में मारा गया।

इस कार्यक्रम के बाद आंध्र प्रदेश स्टेट द्वारा राजदीप सरदेसाई और सीएनएन-आईबीएन के 10 अन्य पत्रकारों के खिलाफ हैदराबाद की एक अदालत में शिकायत दर्ज की गई। आईपीएस राजीव त्रिवेदी को बिना शर्त माफी जारी करते हुए राजदीप सरदेसाई ने कहा, “मैंने महसूस किया कि इसमें कोई साक्ष्य नहीं है कि स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव यूनिट के एसपी राजीव त्रिवेदी की मदद से वंजारा और पांडियन ने सोहराबुद्दीन और कौसर बी को बीदर में पकड़ा। श्री राजीव त्रिवेदी, आईपीएस के बारे में यह झूठी खबर थी।”

नरेंद्र मोदी की कुत्ते से तुलना

इसके अलावा पीएम मोदी के लिए राजदीप की नफरत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह उनके नाम की तुलना एक कुत्ते तक से कर चुके हैं। आम चुनाव प्रचार के दौरान, जब समर्थकों ने नरेंद्र मोदी के लिए ‘नमो’ और राहुल गाँधी के लिए ‘रागा’ जैसे नामकरण करने शुरू किए थे, तो राजदीप ने फरवरी 08, 2014 को एक ट्वीट में अपने पालतू कुत्ते का नाम ‘निमो’ रखा और भारतीय पीएम उम्मीदवार की कुत्ते से तुलना करते हुए भड़काऊ ट्वीट किए।

पत्रकारिता की आड़ में वर्षों से एक परिवार और उसके कार्यकर्ताओं की ‘स्वामिभक्ति’ करने वाले राजदीप अपने अन्नदाताओं के प्रति कितने निष्ठावान हैं इस बात का उदाहरण इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब पी चिदंबरम सीबीआई से भाग रहे थे, तब राजदीप ने कहा था कि चिदंबरम राजनीतिक साजिश का शिकार बनाए गए हैं। चिदंबरम तिहाड़ में थे और राजदीप न्यूज़रूम में।

2010 में जब सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में अमित शाह को जेल भेजा गया था, तब राजदीप सरदेसाई ने इसे क़ानून की जीत बताया था। जबकि इसी राजदीप को चिदंबरम को जेल भेजे जाने पर उन्हें साजिश नज़र आ रही है।

आज यही राजदीप रिया चक्रवर्ती को निर्दोष साबित करने के लिए सुबह शाम सोशल मीडिया पर और बची हुई कसर अपने न्यूज़ चैनल पर पूरी करते देखे जा सकते हैं। वर्ष 1993 के मुंबई बम धमाके में दाउद इब्राहिम का नाम आने पर रिया चक्रवर्ती की ही तरह का ‘कवर-अप’ करते हुए राजदीप ने उसे निर्दोष बताने के लिए टाइम्स ऑफ़ इंडिया में लेख तक लिखा था।

गैर-कॉन्ग्रेसी प्रधानमंत्री से नफरत और दक्षिणपंथियों का विरोध ही राजदीप सरदेसाई की पत्रकारिता का असली चेहरा है। इसके अलावा जो कुछ है, वह सब आडम्बर और प्रासंगिक बने रहने की चाह है।

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