स्मृति ईरानी पर वार के लिए कॉन्ग्रेस ने अपनाए पुराने पैंतरे, बेटी को बनाया निशाना: चुनावी हताशा की लड़ाई लड़ रहे राहुल गाँधी के चुके हुए ‘सिपहसालार’

मैं गर्व से हिंदू हूँ : स्मृति ईरानी (तस्वीर- इंडियन एक्सप्रेस)

किसी महिला को नीचा दिखाने का सबसे आसान तरीका क्या है? खासतौर से तब जब उसने किसी विशेष राजनीतिक रूप से ताकतवर व्यक्ति को उसके ही गढ़ में मात दी हो? ऐसे में उसके परिवार, विशेष रूप से उनकी छोटी बेटी को निशाना बनाया जाए और उनके चरित्र पर आक्षेप लगाए जाएँ और यहाँ तक कि ‘संस्कार’ और उसकी परवरिश पर सवाल उठाए जाएँ तो क्या कहा जा सकता है?

दरअसल, स्मृति ईरानी को 2014 से ही जब से उन्होंने राहुल गाँधी को उनके ही गढ़ में चुनौती देने की ‘हिम्मत’ की तब से अपमान का सामना करना पड़ रहा है। उन पर लगातार स्त्री द्वेषी, सेक्सिस्ट हमले होते रहे हैं, जिनमें से कई यौन उत्पीड़न की श्रेणी में शामिल हैं।

असम राज्य के पूर्व कृषि मंत्री कॉन्ग्रेस नेता नीलामणि सेन डेका आपको याद होंगे। जिन्होंने 2015 में नलबाड़ी में एक जनसभा में कहा था कि कई लोग स्मृति ईरानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी पत्नी के रूप में संदर्भित करते हैं। एक दूसरे कॉन्ग्रेस नेता ने 2019 में, हुकुमदेव नारायण के साथ ईरानी की एक तस्वीर शेयर करते हुए कहा था कि स्मृति एक “रेप गुरु” के सामने झुक रही है, जबकि राहुल गाँधी को अपनी बलात्कार पर टिप्पणी के लिए माफी माँगने के लिए कहा गया था। तब इंद्राणी मिश्रा ने इशारा किया था कि स्मृति बलात्कार के आरोपित स्वामी चिन्मयानंद को सम्मान दे रही है, जबकि वह वास्तव में अनुभवी सांसद हुकुमदेव नारायण यादव थे।

कॉन्ग्रेस के एक अन्य नेता शशांक भार्गव ने 2020 में एक रैली के दौरान स्मृति ईरानी के खिलाफ यौन शोषण से भरी एक और ऐसी ही टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था, “ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी को वापस लेना चाहिए। बीते दिनों स्मृति ईरानी हाथों में ढेर सारी चूड़ियाँ लेकर घूमती थीं। वह प्रधानमंत्री की करीबी हैं और उन्हें चूड़ियाँ या और भी बहुत कुछ दे सकती हैं। मैं उनसे अनुरोध करूँगा कि प्रधानमंत्री को उनकी चूड़ियाँ और जो कुछ भी वह चाहते हैं उन्हें उपहार में दें और उनसे कीमतों में बढ़ोतरी को वापस लेने के लिए कहें।”

बेशक, अब आम चुनाव में 2 साल से भी कम समय रह गए हैं, ऐसे में कॉन्ग्रेस नेताओं ने भी ‘परिवार’ के प्रति अपने समर्पण को दर्शाने के लिए स्त्री विरोधी हमलों को एक पायदान और ऊपर ले जाने का फैसला किया है। चूँकि वे ईरानी को अपने ठहाकों और तंज से नहीं हिला सकते थे, तो अब उन्होंने एक महिला की कमज़ोरी – उसके बच्चों पर हमला करने की ठानी है।

यह ‘एक महिला को उसकी जगह दिखाने’ का सबसे आसान तरीका, है ना? आखिर उनके प्यारे ‘राजकुमार’ को हराने की एक महिला की हिम्मत कैसे हुई। पवन खेड़ा, जिन्हें राज्यसभा पद के लिए ठुकरा दिया गया था और यहाँ तक कि उनकी अनदेखी की गई थी, वे भी अपनी वफादारी साबित करने के लिए एक बार फिर से मोर्चा सँभालते हुए हमलावर हैं। उन्होंने कहा, “क्या उनकी बेटी, 18 वर्षीय ज़ोइश ईरानी का गोवा में ‘अवैध बार चलाना’ ‘संस्कार’ है?”

इससे पहले कि हम समस्या की तह तक जाएँ। आइए पहले हम कुछ तथ्यों पर सीधे बात करते हैं?

ज़ोइश ईरानी ने 2019 में गोवा में एक सिली सोल रेस्तरां और बार में इंटर्नशिप की, तब वह एक इंटर्न थी। एक इंटर्न बार का मालिक नहीं होती, ठीक उसी तरह जिस तरह पवन खेड़ा के तमाम चाटुकारिता या तपस्याओं के बावजूद कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बनने की संभावना नहीं है। इसके अलावा, बार का लाइसेंस रेस्तरां के मालिक एंथनी डी’गामा के नाम पर था। 2021 में उनके निधन पर, उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए लाइसेंस उनके कानूनी उत्तराधिकारी को दिया गया। लेकिन इस साल जब एंथनी डी’गामा के बेटे ने लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए आवेदन किया, तो उन्होंने उल्लेख किया कि टाइटल का हस्तांतरण 6 महीने की अवधि में समाप्त हो जाएगा। हालाँकि, गोवा आबकारी आयुक्त ने उन्हें इसके लिए कारण बताओ नोटिस भेजा।

वहीं आरटीआई के जवाब में जिस दस्तावेज के आधार पर कॉग्रेसियों ने ईरानी पर हमला करने का निर्णय लिया है, उसमें जोइश ईरानी या स्मृति ईरानी का बिल्कुल भी जिक्र नहीं है। इसलिए ज़ोइश को विवादों में घसीटा गया क्योंकि अतीत में, जब वह 16 साल की थी, उसने किसी जगह पर इंटर्नशिप की और उस जगह पर, तीन साल बाद, कुछ अनियमितता हो सकती है। लेकिन ज़ोइश की जब वह 16 साल की थी तब की तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फ्लैश की गईं। हाँ, वह अभी बेशक 18 साल की हो सकती है, लेकिन तब वह एक नाबालिग लड़की थी।

अब, चीजें यहाँ से अलग मोड़ लेती हैं। सवाल उठाया गया कि ईरानी के ‘संस्कार’ कहाँ थे कि उनकी बेटी ‘अवैध बार’ चला रही है। यहाँ, स्पष्ट इरादा यह बताने का था कि उनकी युवा लड़की ‘एक अवैध बार चला रही थी’, एक ऐसी जगह जो शराब परोसती है। मैं चीजों को पहले ही स्पष्ट कर दूँ कि कोई भी काम, जब तक कि वह अवैध न हो, सम्मान का पात्र है। सिर्फ इसलिए कि एक महिला (जरूरी नहीं कि ज़ोइश) बार में काम करती है या काम करती थी, यह किसी भी तरह से उसके चरित्र का प्रमाण पत्र नहीं है।

देखें कि ‘BAR’ सभी बड़े अक्षरों में कैसा है? इसी कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता को कोरोना महामारी के दौरान ऑक्सीजन संकट के दौर में अपने तथाकथित काम के लिए मानवता के मसीहा के रूप में सम्मानित किया जा रहा था। लेकिन यहाँ वह 18 साल की एक लड़की पर हमला कर रहा है, उसका चरित्र हनन कर रहा है। सोचिए जोइश को किस कदर भावनात्मक आघात का सामना करना पड़ रहा है बस इस बात के लिए कि उसकी माँ ने चुनाव में कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी को हराया था।

कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक महिला का अपमान कर राजनीतिक हिसाब चुकता करने से लेकर 18 साल की बेटी के चरित्र हनन तक की डिग्री हासिल कर ली है। यह तब होता है जब पार्टी का नेतृत्व एक महिला (सोनिया गाँधी) सँभाल रही हैं। जिस पार्टी ने भारत को पहला और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री दिया है। वह पार्टी अब इतना नीचे गिर गई है कि एक 18 साल की उम्र की लड़की के बारे में ‘बार’ जोक्स बना रही है। इससे घृणित और कुछ नहीं हो सकता।

कहते हैं राजनीति गंदी जगह है, आखिर वहाँ तो मर्दों की दुनिया है। स्वाभाविक रूप से, एक महिला के लिए न केवल अपने लिए जगह बनाना बल्कि चौथी पीढ़ी के राजनेताओं की तरह वास्तव में शक्तिशाली राजनेताओं को हराना कठिन होता है, जिनके पिता, दादी और परदादा भारत के प्रधान मंत्री रहे हैं। जो यह मानते हुए बड़ा हुआ है कि वह भारत के प्रधानमंत्री की सीट का स्वाभाविक उत्तराधिकारी है।

गौरतलब है कि स्मृति ईरानी ने 2014 के आम चुनावों में अमेठी से तत्कालीन 2 बार के सांसद राहुल गाँधी को टक्कर दी, वो भी एक ऐसे निर्वाचन क्षेत्र में जिसने उनके परिवार के कई सदस्यों को लोकसभा भेजा है। राहुल गाँधी चुनाव जीत गए लेकिन ईरानी ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। राहुल गाँधी को 46.71% वोट शेयर के साथ 4,08,651 वोट मिले जबकि ईरानी को 34.38% वोट शेयर के साथ 3,00,748 वोट मिले। जबकि पिछले कार्यकाल, 2009 में, राहुल गाँधी को 71.78% वोट शेयर के साथ 4,64,195 वोट मिले थे। इसलिए ईरानी भले ही हार गई हों, लेकिन उन्होंने ‘युवराज’ को कड़ी टक्कर दी थी।

लेकिन स्मृति ईरानी यहीं नहीं रुकी, अगले पाँच वर्षों तक ईरानी ने कड़ी मेहनत की और जब उन्होंने उस वर्ष अमेठी में फिर से राहुल गाँधी को टक्कर दिया, तो उन्होंने न केवल वोटों की संख्या बल्कि वोट शेयर भी बढ़ाया था। ईरानी को 49.71% वोट शेयर के साथ 4,68,514 वोट मिले, जबकि राहुल गाँधी को 4,13,394 वोटों के साथ 43.84% वोट मिले। राहुल गाँधी का वोट शेयर कम हो गया था। राहुल गाँधी ने गहरे में महसूस किया था कि वह अमेठी हार रहे हैं, यही वजह है कि उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए केरल में दूसरी ‘सुरक्षित सीट’ वायनाड को चुना। हाँ, राहुल गाँधी ने दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था और अपना पारिवारिक गढ़ स्मृति ईरानी से हार गए थे, तब भी उनकी बहन सहित उनकी पार्टी के नेताओं ने उनका मजाक उड़ाया, उपहास किया।

अब जब वे उन पर हमला करके उन्हें नहीं तोड़ पाए हैं, तो वे इसे एक पायदान ऊपर ले गए हैं। उन्होंने एक 18 साल की उम्र की बेटी के प्रति अपमानजनक, घटिया टिप्पणियों, स्त्री द्वेषी हमलों, घृणित और अश्लील ‘बार’ जोक्स को हथियार बनाया है। वे चाहते हैं कि ईरानी टूट जाएँ और इसलिए एक महिला की कमजोरी, उनके बच्चों पर हमला कर रहे हैं। लेकिन ईरानी इतनी आसानी से टूट जाने वालों में नहीं हैं। उन्होंने इस मामले में एक लीगल नोटिस भेजा है और अपना मन बना लिया है कि वह छोड़ेंगी नहीं।

स्मृति ईरानी ने वर्षों से जो धैर्य और दृढ़ संकल्प दिखाया है, उम्मीद है उसकी झलक उनके बच्चों में भी पैदा हुई है और वे बड़े होकर अपनी माँ की तरह उतने ही मजबूत होंगे। और ईरानी खुद इस बार 2024 में न सिर्फ अमेठी बल्कि वायनाड से भी चुनाव लड़ेंगी और दोनों सीटों से विजयी होंगी।

Nirwa Mehta: Politically incorrect. Author, Flawed But Fabulous.