किसानों को फसल बेचने की स्वतंत्रता मिले, बिना टैक्स के खरीद-फरोख्त हो, तो किसी को क्या आपत्ति होगी?: कृषि मंत्री

कृषि मंत्री ने किसानों के मुद्दे पर की प्रेस कॉन्फ्रेंस

नए कृषि कानूनों को निरस्त कराने के लिए केंद्र सरकार के ख़िलाफ दिल्ली में जारी किसान आंदोलन के बीच आज कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने किसान आंदोलन को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत में नरेंद्र सिंह तोमर ने सबसे पहले पश्चिम बंगाल में हुई घटना को लेकर ममता सरकार की निंदा की और घटना को अंजाम देने वालों के ख़िलाफ कार्रवाई की माँग की।

आगे उन्होंने नए कृषि कानूनों पर बात की। उन्होंने कहा कि सारे कानून दो सदनों में लंबी बहस के बाद पारित हुए थे। सभी ने इस पर अपनी राय दी थी तब जाकर यह पूरे देश भर में लागू हुआ। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे पिछले कुछ सालों में नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में किसानों के उत्थान के लिए लगातार काम हुए हैं। कैसे पीएम नरेंद्र मोदी ये सपना संजोए बैठे हैं कि किसानों की आय साल 2022 तक दुगनी हो। इस क्षेत्र में अधिक से अधिक अनुदान दिया जाए और लाभकारी योजनाओं को लागू किया जाए।

2014 से पहले यूरिया सृजन की किल्लत को याद कराते हुए तोमर बोले कि तब मुख्यमंत्री दिल्ली में डेरा डालकर अपनी माँग रखते थे, और उसकी कालाबाजारी होती थी। पीएम मोदी के आने के बाद यूरिया की कमी कभी किसी किसान को नहीं हुई। इसी प्रकार के बहुत सारे विषय है जिनपर पिछले 6 साल में काम हुआ। नए कानूनों को लेकर भी देश की अपेक्षा यही थी कि इनके माध्यम से इस क्षेत्र का विकास होगा। कई बुद्धिजीवियों की ओर से इस पर अक्सर सिफारिशें हुईं कि ये कानून आए।

उन्होंने कहा कि इस कानून के जरिए सरकार का उद्देश्य किसानों को मंडी की बेड़ियों से आजाद करना चाहती थी जिससे वे अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी को भी, अपनी कीमत पर बेच सकें। उन्होंने पूछा कि किसानों को बेचने की स्वतंत्रता मिल जाए और बिना टैक्स के खरीद फरोख्त हो, तो इससे किसे क्या आपत्ति होगी? कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि अभी कोई भी कानून यह नहीं कहता कि तीन दिन के भीतर उपज बेचने के बाद किसान को उसकी कीमत मिलने का प्रावधान हो जाएगा, लेकिन इस कानून में यह प्रावधान सुनिश्चित किया गया है।

उन्होंने कहा कि हमें लगता था कि कानून के जरिए लोग इसका फायदा उठाएँगे, किसान महँगी फसलों की ओर आकर्षित होगा, बुवाई के समय उसे मूल्य की गारंटी मिल जाएगी और इसमें किसान की भूमि को पूरी सुरक्षा देने का प्रबंध किया गया है। 

आगे केंद्रीय मंत्री ने किसानों को भेजे गए प्रस्ताव के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि किसान चाहते हैं कि नए कानून निरस्त हों। लेकिन सरकार कह रही है कि वो खुले दिमाग के साथ उन प्रावधानों पर बातचीत करने के लिए तैयार हैं जिन पर किसानों को आपत्ति है।

उन्होंने एक बार फिर स्पष्ट किया कि ये कानून एपीएमसी या एमएसपी को प्रभावित नहीं करते हैं और सरकार ने इस बात को समझाने की कोशिश की है। इसके अलावा सरकार की ओर से यह भी कह दिया गया है कि एमएसपी चलती रहेगी।

उन्होंने बताया कि रबी और खरीफ की खरीद अच्छे से हुई है। एमएसपी को डेढ़ गुना किया गया है, खरीद की वॉल्यूम भी बढ़ाया गया है। अगर इसके बावजूद एमएसपी के मामले में किसानों को कोई शंका है तो सरकार लिखित में आश्वासन देने को तैयार है। 

किसान बातचीत में कृषि कानूनों को अवैध बताते हैं और कहते हैं कि कृषि राज्यों का विषय हैं, सरकार इसमें नियम नहीं बना सकती। इस पर केंद्र सरकार की ओर से उन्हें समझाया गया कि व्यापार पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार रखती है।

सरकार की ओर से बातचीत के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन किसान कोई सुझाव नहीं दे रहे, बस एक माँग पर अड़ें हैं कि कानून निरस्त हो। ऐसे सरकार बस जानना चाहती थी कि किसानों को किन प्रावधानों से दिक्कत है। जब उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया तो सरकार की ओर से ऐसे मुद्दे ढूँढे गए जिनसे किसानों को आपत्ति हो सकती है।

सरकार हर तरह से किसानों की समस्या का समाधान करना चाह रही है। वह टैक्स मुद्दे पर भी विचार करने को तैयार हैं। उनकी ओर से प्रस्ताव दिया गया है कि राज्य सरकार निजी मंडियों की व्यवस्था भी लागू कर सकेगी और राज्य सरकार निजी मंडियों पर भी टैक्स लगा सकेगी। एक्ट में यह प्रावधान था कि पैन कार्ड से ही खरीद हो सके। 

सरकार सोचती थी कि व्यापारी और किसान दोनों इंस्पेक्टर राज और लाइसेंसी राज से बच सकें। लेकिन किसानों को यदि ऐसा लगता है कि पैन कार्ड तो किसी के भी पास होगा और कोई भी खरीद कर सकेगा तो ऐसे में वह क्या करेंगे? इस आशंका को दूर करने के लिए सरकार की ओर से प्रस्ताव रखा गया कि राज्य सरकारों को पंजीयन के नियम बनाने की शक्ति दी जाएगी।

उन्होंने किसानों की जमीन पर उद्योगपतियों के कब्जे की बात पर भी अपनी तरफ से स्पष्टता दी। तोमर ने बताया कि गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग लंबे समय से चल रही है, लेकिन कहीं भी यह देखने को नहीं मिला कि उद्योगपतियों ने किसानों की जमीन हड़पी हो। फिर भी नए कानून में प्रावधान बनाया है कि इन कानूनों के तहत होने वाला समझौता केवल किसानों की उपज और खरीदने वाले के बीच होगा। इन कानूनों में किसान की जमीन को लेकर किसी लीज या समझौते का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। 

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया