जिस आंदोलन में रेप, हत्या, किडनैपिंग हुई, उसमें दर्ज केस वापस: हेमंत सोरेन का पहला काम, ऋण माफी पर चुप्पी

हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)

हेमंत शोरेन दूसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। रविवार (29 दिसंबर 2019) को शपथ ग्रहण के तीन घंटे के अंदर ही हेमंत सोरेन ने अपनी पहली कैबिनेट मीटिंग में एक बड़ा फैसला लिया। फैसला था – पत्थलगड़ी आंदोलन में शामिल लोगों पर दर्ज एफआइआर वापसी। साथ ही रघुबर दास की सरकार द्वारा किए गए सीएनटी-एसपीटी (छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट, संथाल परगना टेनेंसी एक्ट) संशोधन का विरोध करने वालों भी दर्ज एफआइआर वापस लिया जाएगा। कैबिनेट मीटिंग में इन दोनों मामलों में दर्ज FIR वापस लेते हुए आवश्यक कार्यवाही का निर्देश संबंधित आला अधिकारियों को दिया गया।

अपने चुनावी एजेंडे को लेकर आगे बढ़ने में हेमंत सोरेन ने कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी दिखाई। मसलन वो दोपहर 2:19 पर शपथ लेते हैं और 5: 45 शाम में कैबिनेट की पहली मीटिंग में ही FIR वापसी का फैसला। दरअसल झारखंड में आदिवासी हितों के नाम पर राजनीति करने वाले शिबू सोरेन ने चुनाव से पूर्व ही स्पष्ट कह दिया था कि उनकी सरकार बनते ही पत्थलगड़ी हिंसा के आरोपितों पर से सभी केस हटा लिए जाएँगे। शिबू सोरेन की राजनीति का फल खा रहे हेमंत भला अपने पिताजी की बातों से पीछे कैसे हटते! भले ही इस पत्थलगड़ी आंदोलन में जम कर हिंसा हुई हो या इसके नाम पर गैंगरेप तक किया गया हो। भले ही इस दौरान खूँटी के सांसद करिया मुंडा के आवास पर तैनात सुरक्षाकर्मियों का पत्थलगड़ी समर्थकों ने अपहरण तक कर लिया हो। भले ही किसी पत्रकार की जान तक चली गई है!

पत्थलगड़ी आंदोलन

झारखंड को अगर जानते हैं तो पत्थलगड़ी का नाम ज़रूर सुना होगा आपने। इसका मोटा-मोटी मतलब हुआ – स्वतंत्र सरकार। मतलब पहले से स्थापित सरकार से परे, एकदम आजाद। मतलब हमारी सीमाओं में सिर्फ हमारा कानून चलेगा, राज्य या केंद्र सरकार जैसी किसी व्यवस्था या संस्था का कोई मतलब नहीं। और इन सीमाओं को पत्थल (पत्थर) गाड़ कर, उस पर अपने कानून की बातें लिखकर घोषित किया जाता था।

ऐसे किसी आंदोलन को राज्य-विद्रोहियों या देशद्रोहियों का समर्थन न मिले, यह संभव नहीं। और हुआ भी वैसा ही। आदिवासियों के इस मूवमेंट को कुछ मिशनरियों व कट्टरवादियों का समर्थन मिला। इसे रघुवर दास की सरकार और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ लड़ाई का प्रतीक बना दिया गया था। खूँटी, गुमला से लेकर एक समय तक यह आंदोलन लोहरदगा, राँची और सिमडेगा तक फैल गया था।

कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को संभालने के लिए तब रघुबर दास की सरकार ने नुक्कड़ नाटकों, ग्राम सभाओं आदि से भी जन-कल्याणकारी योजनाओं, आम लोगों के हितों में उठाए गए सरकारी कदम से जन-जन तक बात पहुँचाने की कोशिश की थी। लेकिन बाहर से मिल रहे समर्थन के कारण भ्रम की स्थिति बनी रही और आंदोलन हिंसक होता गया। यहाँ तक कि सरकारी योजनाओं को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कोचांग नामक गाँव में नुक्कड़ नाटक करने आई 5 लड़कियों का अपहरण कर उनका बलात्कार किया गया था।

अंततः प्रशासन को पुलिस एक्शन का सहारा लेना पड़ा। और इस हिंसक व भ्रमित आंदोलन को खत्म किया गया। लेकिन तत्कालीन राज्य सरकार और सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। क्योंकि विपक्षी पार्टियों (हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख रूप से) ने पुलिस एक्शन को आदिवासियों पर हिंसक कार्रवाई के तौर पर पेश किया। नक्सल-मिशनरी समर्थित इस मूवमेंट वाले इलाक़ों में मुख्यमंत्री रघुबर दास के ख़िलाफ़ ख़ूब दुष्प्रचार अभियान चलाया गया। लोगों के बीच अफवाह फैलाई गई कि भाजपा आदिवासी विरोधी है।

झारखंड: जनता और विकास

नतीजा सबके सामने है। पत्थलगड़ी आंदोलन में शामिल लोगों पर हुई FIR वापस। आप आरोप भी नहीं लगा सकते क्योंकि इसी चुनावी वादे के साथ लोकतांत्रिक तरीके से चुन कर सत्ता हासिल की है हेमंत सोरेन ने। लेकिन क्या सिर्फ यही एक वादा किया गया था झारखंड की जनता से? नहीं। तभी तो किसानों की ऋण माफी घोषणा भी इन्हीं चुनावी वादों में से एक थी। और यह महत्वपूर्ण इसलिए थी क्योंकि जिन-जिन राज्यों में BJP से सत्ता छीन कर गैर-भाजपा पार्टियों ने कुर्सी पाई है, हर उस राज्य में “किसानों की ऋण माफी” को ही प्रमुख रूप से चुनावी घोषणा में उछाला गया था।

विडंबना देखिए कि मध्य प्रदेश, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक में इसके लिए अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। हर बार इन राज्यों के मुख्यमंत्री गोल-मोल जवाब देकर निकल लेते हैं। हेमंत सोरेन ने इतना करना भी उचित नहीं समझा। या फिर प्राथमिकता में ही नहीं रही होगी। क्योंकि उनकी प्राथमिकता थी – पत्थलगड़ी, अपने बाबूजी की राजनीति! तभी तो भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने तंज मारा, “हेमंत सोरेन सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में किसानों के ऋण माफ करने की घोषणा टाँय-टाँय फिस्स हो गई। किसानों के ऋण माफी की घोषणा करने की बात को नई सरकार ने भुला दिया।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया