शिवसेना-कॉन्ग्रेस-एनसीपी की मुराद नहीं हुई पूरी, अब मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला

देवेंद्र फडणवीस-अजित पवार (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट में आज (नवंबर 25, 2019) लगातार दूसरे दिन महाराष्ट्र के मामले पर सुनवाई हुई। देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के शपथ ग्रहण के खिलाफ शिवसेना-कॉन्ग्रेस-एनसीपी की संयुक्त याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने फैसला मंगलवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया। अभिषेक मनु सिंघवी की ओर से तीन दलों के पास 154 विधायकों का समर्थन होने की एफिडेविट स्वीकार करने से अदालत ने इनकार करते हुए कहा कि फैसला इस पर होना है कि मुख्यमंत्री सदन में बहुमत हासिल कर पाते हैं या नहीं।

महाराष्ट्र में शनिवार (नवंबर 23, 2019) तड़के राष्ट्रपति शासन समाप्त किए जाने के बाद फडणवीस और पवार ने शपथ ली थी। सोमवार को सुनवाई के दौरान तत्काल बहुमत परीक्षण की मॉंग को टालते हुए अदालत ने सरकार बनाने के आमंत्रण और दावे से जुड़े दस्तावेज सौंपने को कहा था।

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जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गवर्नर के सचिव की चिट्ठी अदालत को सौंपी, जिसमें विधायकों के हस्ताक्षर थे। तुषार मेहता ने कहा कि अजित पवार द्वारा 22 नवंबर को पत्र दिया गया था। पत्र में कहा गया था कि एनसीपी के सभी 54 विधायकों ने उन्हें नेता चुना है और सरकार बनाने के लिए अधिकृत किया गया है। इस चिट्ठी में 54 विधायकों के हस्ताक्षर थे।

तुषार मेहता ने समर्थन की चिट्ठी कोर्ट में पेश करते हुए कहा कि इसी चिट्ठी के आधार पर राज्यपाल ने शपथ दिलाई। मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि 12 नवंबर के बाद राज्यपाल के पास क्यों नहीं गए याचिककर्ता? उन्होंने कहा कि सभी के मना करने के बाद राज्यपाल ने ये फैसला किया। सॉलिसिटर जनरल ने गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को अजित पवार के द्वारा लिखा गया समर्थन पत्र पढ़ा, जिसमें अजित पवार ने कहा था कि उनके पास 54 विधायक हैं और वो BJP को समर्थन दे रहे हैं। इसलिए वो चाहते है कि देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ के लिए बुलाया जाए।

तुषार मेहता ने राज्यपाल के उस पत्र को कोर्ट में पढ़कर सुनाया, जिसमें उल्लेख किया गया था कि फडणवीस-पवार सरकार को 170 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। मेहता ने कोर्ट के सामने फडणवीस के उस पत्र को भी पढ़ा, जिसमें कहा गया था कि पहली बार जब उन्हें सरकार बनाने के लिए बुलाया गया था, तो उनके पास संख्याबल नहीं था, लेकिन अब अजित पवार के समर्थन के बाद उनके पास बहुमत है।

महाराष्ट्र सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि गवर्नर पर विपक्षों का हमला पूरी तरह से निराधार है। किसी व्यक्ति को चुनने में राज्यपाल को पूर्ण विवेक होता है। फ्लोर टेस्ट कब आयोजित करना है, यह भी राज्यपाल का विवेक है। इस दौरान जस्टिस खन्ना ने कहा कि पिछले सभी मामलों में 24 घंटे के भीतर फ्लोर टेस्ट हुआ है। उनका कहना था कि बहुमत गवर्नर हाउस में नहीं, बल्कि सदन के पटल पर तय किया जाता है।

अजित पवार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि उनकी विधायकों की लिस्ट तथ्यात्मक, कानूनी और संवैधानिक रूप से सही है। वो समर्थन देने के लिए अधिकृत थे। उन्होंने कहा कि अजित पवार 22 नवंबर को विधायक दल के नेता थे और उन्होंने विधायक दल के प्रमुख के रूप में 22 नवंबर को बीजेपी को समर्थन दिया और राज्यपाल ने इसी आधार पर विवेक का इस्तेमाल करते हुए फैसला लिया।

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वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि 22 की रात को प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें कॉन्ग्रेस-एनसीपी और शिवसेना ने सरकार बनाने की बात कही। सभी ने कहा कि उद्धव सीएम होंगे लेकिन सुबह 5 बजे ही फडणवीस सीएम बन गए। उन्होंने कहा कि ऐसी कौन सी इमरजेंसी थी कि सुबह सवा 5 बजे राष्ट्रपति शासन हटाया गया और शपथ दिलवा दी गई। इमरजेंसी का खुलासा होना चाहिए। इस पर जस्टिस खन्ना का कहना है कि कोर्ट राष्ट्रपति शासन को रद्द करने के सवाल पर सुनवाई नहीं कर रहा है।

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अभिषेक मनु सिंघवी ने फौरन फ्लोर टेस्ट की माँग करते हुए कहा कि दोनों पक्ष फ्लोर टेस्ट को सही कह रहे हैं तो फिर इसमें देरी क्यों हो रही है। उन्होंने कहा कि कुछ छिपाया जा रहा है। अजित पवार की चिट्ठी फर्जी है। वहीं तुषार मेहता ने अजित पवार के विधायक दल के नेता से हटाए जाने पर कहा कि जो नई चिट्ठी सौंपी गई है, उसमें 12 विधायकों के हस्ताक्षर गायब हैं। मुकुल रोहतगी ने एक याचिका पर तीन वकीलों के दलील देने पर भी आपत्ति जताई।

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ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया