हिन्दू घृणा से लेकर मुस्लिम भीड़ का आतंक, दिल्ली दंगों की जो बातें आपसे छिपाई गई

मोहम्मद शाहरुख़ ने बन्दुक तानी, ताहिर हुसैन के गुंडों ने हत्याएँ की और शरजील इमाम के भड़काऊ करतूतों से शुरुआत की (बाएँ से दाएँ)

देश की राजधानी का एक हिस्सा जल रहा है। नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों में 42 मौतों की पुष्टि हो चुकी है। 250 से भी अधिक घायल हुए हैं। यहाँ हम आपको अब तक के घटनाक्रम की पूरी जानकारी देंगे। सबसे पहले एक सवाल से शुरू करते हैं कि कोई आपके घर का दरवाजा 3 महीने से ब्लॉक कर रखे तो आप क्या करेंगे? दिल्ली के शाहीन बाग़ में ऐसा ही हो रहा था। सीएए विरोध के नाम पर पिकनिक मना रही मुस्लिम महिलाओं के कारण लाखों लोगों को परेशानी हुई, लगातार कई हफ़्तों तक। उन्हें दफ्तर पहुँचने में देरी होती थी, बच्चे घंटों स्कूल जाने-आने समय अटके रहते थे और लोगों का उधर से गुजरना मुश्किल था। लेकिन, मीडिया के अनुसार पीड़ित हिन्दुओं को गुस्साने का भी अधिकार नहीं है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रविवार (फरवरी 23, 2020) को अहमदाबाद पहुँचे। देश के लिए गर्व का क्षण था कि वहाँ दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम का उद्घाटन हुआ। लेकिन, कट्टर इस्लामी लोगों के लिए ये तबाही मचाने का सबसे अच्छा मौका था, क्योंकि वे इंटरनेशनल मीडिया के अटेंशन के भूखे रहते हैं। उन्होंने जफराबाद को नया शाहीन बाग़ बनाने की कोशिश तेज कर दी। भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने रोज प्रताड़ना सह रही जनता की तरफ़ से आवाज़ उठाई और कहा कि दिल्ली पुलिस ने अगर उपद्रवियों को शांत नहीं किया तो वे भी विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरेंगे।

शरजील इमाम, वारिस पठान और इमरान प्रतापगढ़ी जैसे मुस्लिम नेताओं के भड़काऊ बयानों को ढकने के लिए मीडिया के एक बड़े वर्ग ने कपिल मिश्रा का सहारा लिया। यहाँ तक कि पुलिस पर गोलीबारी करते बेख़ौफ़ विचरते मोहम्मद शाहरुख़ को भी भगवाधारी साबित करने का कुत्सित प्रयास किया गया, लेकिन उसकी पहचान सामने आ जाने के बाद कपिल मिश्रा पर हमले और तेज़ कर दिए गए क्योंकि मोहम्मद शाहरुख़ को छिपाना जो था। पुलिसकर्मी दीपक दहिया को इन दंगों के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा चेहरा बनना चाहिए था। आपने देखा कैसे वो उस बेख़ौफ़ अपराधी के सामने निडर होकर खड़े थे।

सोमवार (फरवरी 25, 2020) को नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के 5 मेट्रो स्टेशनों को बंद कर दिया गया। ये सभी दिल्ली मेट्रो की ‘पिंक लाइन’ पर थे। इसके बाद एक भीड़ ने गोकुलपुरी में एक टायर मार्किट को फूँक दिया। इस्लामी दंगाइयों की गोली लगने से तीन छोटे-छोटे बच्चों के पिता कॉन्स्टेबल रतनलाल वीरगति को प्राप्त हो गए और डीसीपी अमित शर्मा गंभीर रूप से घायल हो गए। डीसीपी ने बताया है कि अगर उस दिन वे बच के न निकलते तो उनकी भी लिंचिंग कर दी जाती। मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक उच्च-स्तरीय बैठक में स्थिति की समीक्षा की।

इस बीच मीडिया और लिबरलों का प्रोपेगेंडा चलता रहा। ‘ब्लू टिक’ वाले विभिन्न सोशल मीडिया हैंडल्स से कपिल मिश्रा पर दंगों का इल्जाम डाला गया। मोहम्मद शाहरुख़, वारिस पठान और शरजील इमाम जैसों की बात तक नहीं की गई। मामला हाईकोर्ट में गया और वहाँ भी भाजपा नेताओं के बयानों की क्लिप चली। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली पुलिस का बचाव किया और कहा कि वो एसिड अटैक झेल रहे हैं, पिकनिक नहीं मना रहे।उन्होंने कहा कि दोनों तरफ के कई विडियो आए हैं, जिसकी जाँच होगी। बुधवार को ट्रंप वापस चले गए। उसके बाद उसी रात राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने जिम्मेदारी संभाली।

इसके बाद इस दंगे का ऐसा सच सामने आया, जिसने सब को हिला कर रख दिया। आईबी के अंकित शर्मा को ताहिर हुसैन के गुंडों ने मार डाला। चाँदबाग के नाले से उनका शव मिला। ताहिर हुसैन की बिल्डिंग का विडियो सामने आया। उसकी इमारत में करीब 3000 दंगाई जमा थे। उन्होंने लगातार आसपास के हिन्दुओं पर बमबारी और पत्थरबाजी की। यही लोग अंकित शर्मा सहित 4 लोगों को घसीटते हुए ले गए थे। दरिंदगी का आलम ये था कि अंकित की हत्या करते समय उनके शरीर पर लगातार 4 घंटे तक 6 दरिंदों ने 400 बार चाकुओं से वार किया। ताहिर हुसैन की फोटो सामने आई, जिसमें वो हाथ में डंडा लिए अपनी छत पर खड़े होकर गुंडों को निर्देशित करता हुआ दिखा।

ताहिर के बचाव में कई लिबरल उतर आए। उसने दावा किया कि उसे फँसाया जा रहा है लेकिन वो उन्हीं कपड़ों में सफाई देने आ गया, जिन कपड़ों में वो गुंडई कर रहा था। उसकी फैक्ट्री और घर सील कर लिया गया। जावेद अख्तर बौखला गए। इसी तरह शिव विहार में फैसल फ़ारूक़ के ‘राजधानी स्कूल’ को ‘अटैक बेस’ बनाया गया और वहाँ भी हिन्दुओं पर गोलीबारी, बमबारी और पत्थरबाजी हुई, जिनमें कई जानें गईं। उसके बगल के डीआरपी स्कूल को जला दिया गया, जो एक हिन्दू का था। फिर भी राजधानी स्कूल में तबाही की ख़बरें चलीं, जबकि वो दंगाइयों का पनाहगार बना था, जहाँ कई दिनों से साजिश रची जा रही थी और हथियार जमा किए जा रहे थे। पत्थर और बम दूर तक फेंकने के लिए गुलेल का इस्तेमाल किया गया।

https://twitter.com/anupamnawada/status/1233698845051109376?ref_src=twsrc%5Etfw

अंकित शर्मा के साथ विनोद कुमार की हत्या भी सुर्खियाँ बनीं। ब्रह्मपुरी के निवासी विनोद कुमार को उनके बेटे के सामने इसलिए मार डाला गया, क्योंकि उनकी बाइक के स्टिकर पर ‘जय श्री राम’ लिखा था। उनके बेटे ने बताया कि 40 मुस्लिमों की भीड़ इस्लामी टोपी पहने आई और उन्होंने ‘अल्लाहु अकबर’ व ‘नारा-ए-तकबीर’ चिल्लाते हुए हमला बोल दिया। इसी तरह जौहरीपुर के विवेक जब अपनी दुकान में बैठे हुए थे, दंगाई मुस्लिम भीड़ आई और उन्होंने उसकी सिर में ड्रिल कर दिया। उनके सिर में लोहा घुसाए जाने के बाद उनकी सर्जरी हुई। जाफराबाद व आसपास के इलाक़ों के हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। लोगों ने वो सारी चीजें त्याग दीं, जिनसे प्रतीत हो कि वो हिन्दू हैं, जैसे- ॐ का टैटू, हाथ में कलावा या बाइक पर धार्मिक स्टीकर।

मीडिया ने इस दौरान ख़ूब फेक न्यूज़ चलाया। कहीं कोई हिन्दू मरा, इसको कवर करने की बजाय ये खोजा जाने लगा कि कहाँ किसी हिन्दू ने किसी मुस्लिम को थप्पड़ मार दिया। हिन्दू इस पूरे दंगे के दौरान या तो आत्मरक्षा के लिए संघर्ष करते रहे या फिर घरों में दुबके रहे। इस स्थिति में भी उन्होंने कई मुस्लिमों की जान बचाई। सुरक्षा बलों के खाने-पीने का ध्यान भी हिन्दुओं ने रखा, क्योंकि नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में फ़िलहाल कर्फ्यू लगा हुआ है और भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं।

अब हम बात करेंगे कि आखिर ये दंगे भड़के क्यों? ये तो हम देख ही चुके हैं कि तैयारी काफ़ी पहले से थी और पत्थर, पेट्रोल बम व असलहों के रूप में हथियार कई दिनों से जमा किए जा रहे थे।

सीएए के विरोध में आंदोलन शुरू हुआ था, जिसमें राम मंदिर, तीन तलाक़ और अनुच्छेद 370 पर केंद्र सरकार के मजबूर फ़ैसलों के ख़िलाफ़ उग्र मुस्लिमों को भड़काया गया। नागरिकता तो एक की भी नहीं गई, जानें कई चली गईं। यूपी में कई शहरों में पुलिस और दंगाइयों की मुठभेड़ हुई थी, जिनमें 250 से भी अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए थे। योगी सरकार के सख्त एक्शन के बाद दंगाइयों ने दिल्ली का रुख किया और यहाँ माहौल बनाया जाने लगा। शाहीन बाग़ में भारत का कटे-छँटे नक़्शे चस्पां किए गए। देशभर में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान एक के बाद एक सेलेब्रिटीज ने आकर भड़काऊ भाषण दिए और ‘फक हिंदुत्व’ जैसे आपत्तिजनक पोस्टर्स लहराए गए।

हाथ में तिरंगा लेकर और मुँह से राष्ट्रगान गाकर भारत के टुकड़े-टुकड़े करने की बात की गई, जिसे मीडिया ने गाँधीवादी आंदोलन बताया। जहाँ गाँधी को ही फासिस्ट कहा गया, वो गाँधीवादी आंदोलन कैसे? हिन्दुओं ने अपना गुस्सा दबाए रखा, बार-बार उन्हें अपमानित किया जाता रहा। स्वस्तिक का अपमान तो जैसे उनका ट्रेंड ही बन गया। मीडिया के एक बड़े वर्ग ने अपने स्टूडियो में बैठ कर दंगाइयों का रोज बचाव किया और उन्हें एहसास दिलाया कि वे जो कर रहे हैं, एकदम सही है। पीड़ित हिन्दुओं को ही उलटा बदनाम किया गया। इससे दंगाइयों को शह मिली।

अब बात करते हैं दिल्ली दंगों की कुछ दर्दनाक कहानियों की, जिसे हर हिन्दू को जाननी चाहिए क्योंकि इससे सच्चाई आपके कानों तक पहुँचेगी और भविष्य में सतर्कता के लिए भी ये काम आएगी। जैसे, प्रीति नामक एक महिला ने अपने बच्चों की जान बचाने के लिए दोनों छोटे-छोटे बच्चों को छत से नीचे फेंक दिया। मौजपुर में जम्मू कश्मीरी न्यूज़ पोर्टल के एक पत्रकार को गोली मार दी गई। पूरे प्रकरण की साजिश का गहरा स्तर देख कर विशेषज्ञों और ख़ुफ़िया एजेंसियों ने अंदेशा लगाया कि इसके पीछे पीएफआई और आईएसआई का हाथ हो सकता है। जाफराबाद में दंगाइयों ने स्कूल बस को निशाना बनाया। घोंडा के विकास ने बताया कि उनके मोहल्ले में 400 मुस्लिमों ने धावा बोला।

करावल नगर में तो हिन्दू बेटियों के साथ अश्लील हरकत की गई और उन्हें नंगा कर दिया गया। शिव विहार में इसी कारण हिन्दू गोली और पत्थर खाते हुए भी डटे रहे, ताकि दंगाई उनके घरों में न घुस पाएँ। ऑपइंडिया ने अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग में पाया कि मुस्लिम महिलाओं ने भी सुरक्षा बलों व हिन्दुओं पर छतों के ऊपर से एसिड अटैक किया। अभी तक मीडिया, लिबरलों और सेक्युलर लोगों का गैंग इसे ‘मुस्लिम विरोधी दंगा’ साबित कर के वास्तविकता को पलटने में लगा हुआ है। उनसे सावधान रहें!

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.