चीन ने कभी नहीं सोचा था भारत छोटी सी जमीन के लिए उन्हें कठिन चुनौती दे देगा: चीनी विशेषज्ञ युन सुन

चीनी विशेषज्ञ युन सुन ने भारत की चुनौती पर आश्चर्य जताया

गलवान घाटी में भारत चीन विवाद पर इस समय पूरे देश की एक अलग राय है। हर कोई सिर्फ़ और सिर्फ़ चीन को उसके किए के लिए सबक सिखाना चाहता है। फिर चाहे बात सीमा की हो, या फिर आर्थिक मोर्चे पर उसे चोट पहुँचाने की। भारत का लगभग हर नागरिक इसके लिए प्रतिबद्ध नजर आ रहा है। ऐसे में चीन की क्या प्रतिक्रिया है? ये किसी से छिपी नहीं है।

आज भले ही चीन ने अपने बॉयकॉट की बात को भारत के लिए नुकसानदायक बताकर पचा ली हो। लेकिन ये सच है कि आज से तीन साल पहले भारत का सख्त रवैया देखकर चीन की हवाइयाँ उड़ गईं थी। चीन ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि भारत उसको चुनौती दे सकता है। वो भी भूटान के पास एक छोटी सी जमीन के लिए।

डोकलाम विवाद ने वाकई चीन को हैरत में डाला था। ये कहना हमारा नहीं बल्कि खुद चीन विशेषज्ञ और अमेरिका में स्टिमसन सेंटर में पूर्वी एशिया कार्यक्रम की सह-निदेशक युन सुन का है। जिन्होंने इस बात का खुलासा इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान किया। वे कहती हैं कि 2017 में डोकलाम गतिरोध के दौरान, चीन बेहद आश्चर्यचकित था। क्योंकि उसे उम्मीद नहीं थी कि भारत 72-73 दिन तक भूटान के नजदीक एक छोटे से जमीन के टुकड़े के लिए लड़ाई लड़ेगा।

LAC के साथ पूर्वी लद्दाख में चल रही चीनी आक्रामकता के पीछे की प्रेरणा के बारे में पूछे जाने पर, युन सुन ने कहा कि चीनी अधिकारियों का मानना ​​है कि सीमा के पास भारत की गतिविधियों का जवाब देने की आवश्यकता थी।

वे कहती हैं, “अगर आप इस बारे में किसी चीनी अधिकारी से पूछते हैं तो उनका जवाब होगा कि चीन तो सिर्फ़ उन चीजों की प्रतिक्रिया दे रहा था। जो lac पर भारत कर रहा था।” उन्होंने कहा कि यह सर्वविदित है कि जहाँ से lac पास होती है। उन सटीक स्थानों पर एक ऐतिहासिक विवाद है। इसलिए जब चीन को ज्ञात हुआ कि भारत वहाँ पर सड़के बना रहा है। नया इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है। तो उनकी चिंता बढ़ गई कि उन्हें कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिए।

वे कहती हैं, “चीन को ऐसे हालात देखकर लगा जैसे भारत उनकी पीठ पर छूरा घोंप रहा है। इसी के बाद वो ऐसी स्थिति में आए कि जहाँ उन्हें सिर्फ़ दो विकल्प दिखा। एक तो आक्रमकता के साथ प्रतिक्रिया देना और दूसरा चुप रहकर अपने क्षेत्र को हाथ से जाते देखना।”

युन के मुताबिक चीन की मनोस्थिति को समझना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। क्योंकि चीन की वर्तमान हालत बयान करने के लिए अंग्रेजी मीडिया में बहुत सामग्री है। लेकिन दूसरी ओर चीन की रणनीति और प्रेरणा आदि को समझने के लिए जानकारी केवल चीनी भाषा में ही उपलब्ध है।

साल 2020 में उपजे इस विवाद को युन सुन चीन के लिए अलग तरह से महत्तवपूर्ण बताती हैं। वे समझाती हैं कि चीन के ऊपर इस समय कोरोना महामारी के कारण आतंरिक दबाव बहुत है और बाहर से भी उसपर हमले हो रहे हैं। युन का मानना है कि एशिया में भारत और चीन के बीच शक्ति प्रतिस्पर्धा संघर्ष को जन्म देती है और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित करती है।

युन के मुताबिक, भारत के लिए भले ही इस समय सबसे बड़ा खतरा चीन है। लेकिन कोरोना महामारी के बाद अब चीन के लिए सबसे बड़ा खतरा यूएस दिखाई दे रहा है। वे कहती हैं, चीन भारत से मैत्रीपूर्ण संबंध रखना चाहता है। खासतौर पर अमेरिका के संदर्भ में। लेकिन वह अपनी क्षेत्रीय अखंडता को त्यागने को भी किसी कीमत पर मंजूर नहीं करेगा।

विवाद से उभरने के लिए मुमकिन रास्तों को सुझाने की बात पर युन कहती हैं कि इस समय स्थिति दोनों ओर से साफ है। दोनों ही देश अपनी सेना सीमा पर लगा रहे हैं। अगर भारत दौलत बेग ओल्डी पर रोड बनाता है। तो चीन इसे अपनी सुरक्षा भेद्यता समझेगा और अपने क्षेत्र में सड़क बनाना चाहेगा। इसी प्रकार जब चीन अपने इलाके में कुछ बनाएगा तो भारत रणनीतिक कमजोरी के रूप में अनुभव करेगा और कुछ इसी प्रकार निर्माण करना चाहेगा।

वर्तमान परेशानी के कूटनीटिक हल की वकालत करते हुए युन ने कहा, “आज पैंगोंग लेक में जो हो रहा है वो अतीत में भी हो चुका है। मुझे लगता है दोनों पक्षों के राजनयिक डी एस्केलेशन के लिए एक मार्ग पर बातचीत कर रहे हैं। लेकिन, फिर भी दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व को आगे आना होगा ताकि जमीनी स्तर पर सैनिक कूटनीतिक वार्ता के अनुरूप काम करें।”

गौरतलब है कि एक ओर जहाँ भारत-चीन की सेनाएँ स्थिति को भाँपते हुए सीमा पर तैनात हैं। वहीं मंगलवार को 12 घंटे कॉर्प्स कमांडर लेवल के बीच वार्ता हुई। ये बातचीत कल रात 11 बजे खत्म हुई। बैठक में भारत ने फिंगर 4 से फिंगर आठ तक के क्षेत्र से चीन को तत्काल पीछे हटने को कहा ।

एलएसी के निकट चुशूल में भारतीय जमीन पर हुई बैठक में भारत की तरफ से 14वीं कोर के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीन की तरफ से तिब्बत सैन्य जिले के कमांडर मेजर जनरल लिऊ लिन शामिल हुए। जून महीने में इन सैन्य अधिकारियों के बीच यह तीसरे दौर की बैठक हुई है। इस बैठक में सेनाओं के पीछे हटने के तौर तरीकों पर चर्चा हुई है।

खबरों के मुताबिक भारत की तरफ से इस बात को जोरदार तरीके से उठाया गया कि चीन सेना उन इलाकों से तत्काल पीछे हटे जहाँ हाल में उसने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है ताकि पाँच मई से पहले की स्थिति बहाली की जा सके। इनमें पैंगोग लेक इलाके में फिंगर चार से आठ तक से चीनी सेना को तत्काल हटने को कहा गया है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया