पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी शहर पेशावर की एक भरी अदालत में कल (जुलाई 29, 2020) ईशनिंदा के आरोपित ताहिर शमीम अहमद को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। ताहिर को मारने वाले का नाम खालिद खान है।
सोशल मीडिया पर सामाजिक कार्यकर्ता राहत ऑस्टिन ने दावा किया कि खालिद ने ताहिर को गोली मार कर कहा कि उसके सपने में पैगंबर आए थे। इसलिए उसने ताहिर को गोली मारी। वहीं पुलिस की हिरासत में खालिद ने ये माना कि उसने ताहिर को इसलिए गोली मारी. क्योंकि वह अहमदिया समुदाय का था।
हैरानी की बात ये है कि भरी अदालत में एक अहमदिया समुदाय के व्यक्ति को मारने के बाद खालिद पाकिस्तान में कट्टरपंथियों का हीरो बन गया। लोगों ने उसकी तरह-तरह से तारीफें करनी शुरू कर दीं और उसे न केवल ‘इस्लाम का शेर’ लिखा बल्कि फेसबुक व ट्विटर पर उसकी डीपी लगाने लगे।
This shows how deep the issue of blasphemy runs in Pakistan: Facebook page & profile apparently of this leading figure in the country’s ruling party’s branch in Sindh Province has changed profile pics to that of the killer who shot an alleged blasphemer in court in Peshawar today pic.twitter.com/dfqoxK69oJ
— Secunder Kermani (@SecKermani) July 29, 2020
एक सोशल मीडिया यूजर बाली खान ने इस हत्यारे की तारीफ में लिखा, “उसके नाज़ुक चेहरे की मुस्कुराहट और आत्मविश्वास को देखिए, मेरा मतलब है कि वह कितना भाग्यशाली है कि उसे ये मौका मिला। अल्लाह उसकी हिम्मत बढ़ाए और उसे सहारा देने के लिए हमारी हौसला अफजाई करे…।”
Look at the smile and confidence of his numinous face ,i mean how lucky he is to get that courage and chance. May ALLAH boost his courage and straighten our fervency to support him… #غازی_خالد_تیری_جرات_کو_سلام pic.twitter.com/8py6D8b1SW
— Bali khan (@pakhtoonbali) July 30, 2020
Not all heroes wear cap.😍#غازی_خالد_تیری_جرات_کو_سلام pic.twitter.com/xCKOzS8Uaf
— Asfandyar Baloch (@asfandyark9681) July 30, 2020
वहीं, दूसरे ने लिखा कि हर नायक टोपी में नहीं आता। इसके बाद एक युवक ने लिखा कि जब भी कोई उनके मजहब का मजाक बनाएगा, तब तब अल्लाह किसी हीरो को भेजेगा।
When someone insult our religion and prophet Muhammad (saw) Allah will send a hero for him…salut to all our hero’s… Muhammad (saw) is the last prophet of Allah…#GhaziKhalid #غازی_خالد_تیری_جرات_کو_سلام #غازی_کاپیغام_گستاخ_کی_سزاموت pic.twitter.com/iPYsc0j1XF
— Qadeer Khan (@i_qadeerkhan) July 30, 2020
कोर्ट में गोली चलाने वाले खालिद की तारीफ में जहाँ मियाँ अहमद ने उसको इस्लाम का दूसरा हीरो लिखा। वहीं लोगों ने उसकी तुलना उन लोगों से की जिन्होंने बीते समय में इसी प्रकार ईशनिंदा करने वालों को सजा दी थी। इसके लिए पाकिस्तानी लोग खालिद की तुलना आमिर छीमा और इल्मुद्दीन जैसे आतंकियों से करने से भी नहीं चूँके।
बता दें, आमिर छीमा एक पाक आतंकी था जिसने जर्मनी में एक समाचार पत्र के दफ्तर में घुसकर संपादक को चाकू से इसलिए मारने की कोशिश की थी, क्योंकि उसने पैगंबर पर कार्टून छापा था। इसी प्रकार इल्मुद्दीन ने भी ऐसे ही एक किताब प्रकाशक महेश राजपाल पर हमला बोला था।
Another hero of islam #غازی_خالد_تیری_جرات_کو_سلام pic.twitter.com/icUoWWWx92
— Mian Ahmed (@MianAhm65782161) July 30, 2020
सबसे हैरानी की बात ये है कि खालिद खान के अपराध का महिमामंडन इमरान खान की पार्टी लीडर हलीम आदिल शेख तक ने किया है। उन्होंने खालिद की फोटो बतौर हीरो सोशल मीडिया पर अपनी डीपी की जगह लगाई। हालाँकि आलोचना के बाद उन्होंने ट्विटर पर ये अलग से सफाई दी है कि वह अपने फेसबुक अकाउंट को मैनेज नहीं करते और ये काम बिना उनके संज्ञान में डाले हुआ है।
This shows how deep the issue of blasphemy runs in Pakistan: Facebook page & profile apparently of this leading figure in the country’s ruling party’s branch in Sindh Province has changed profile pics to that of the killer who shot an alleged blasphemer in court in Peshawar today pic.twitter.com/dfqoxK69oJ
— Secunder Kermani (@SecKermani) July 29, 2020
गौरतलब है कि खालिद ने जिस आरोपित को भरी अदालत में गोली मारकर मौत के घाट उतारा, उसने खुद के नबी होने दावा किया था। उस पर दो साल पहले ईशनिंदा का आरोप लगा था। इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। कल उसके इसी मामले की सुनवाई चल रही थी।
बता दें, पाकिस्तान में ईशनिंदा एक दण्डनीय अपराध है। यहाँ यदि कोई इस अपराध के तहत गिरफ्तार होता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा या फिर मौत की सजा सुनाई जा सकती है। लेकिन अगर वह आम जनता के हत्थे चढ़ जाए तो उसे मौके पर मौत दे दी जाती है।
2011 में पंजाब के एक गवर्नर को उसके ही सुरक्षा गार्ड ने मार डाला था। उन्होंने असिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला का बचाव किया था। इस महिला पर ईशनिंदा का आरोप लगाया गया था। असिया बीबी को मौत की सजा सुनाई गई थी।
‘ईशनिंदा’ वालों के हत्यारों की पाकिस्तान में जिन्ना और इकबाल के समय से ही इबादत की जाती है
उल्लेखनीय है कि ऐसी घटनाओं पर इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान के पिता यानी, मोहम्मद अली जिन्ना को याद किया जाना भी जरूरी है, क्योंकि ये सब सितंबर 1929 में, विभाजन के पूर्व लाहौर में शुरू हुआ, जब एक अनपढ़ 19 वर्षीय मुस्लिम युवक इल्म-उद-दीन ने एक हिंदू प्रकाशक महेश राजपाल को पुस्तक ‘रंगीला रसूल’ प्रकाशित करने के लिए चाकू मार दिया था।
यह ईशनिंदा का भारतीय उपमहाद्वीप में पहला मामला था। इससे पहले इस प्रकार की ‘ईशनिंदा’ से संबंधित घटना कभी नहीं घटी थी। हत्यारे इल्मुद्दीन के बचाव पक्ष के वकील मुहम्मद अली जिन्ना थे। इल्मुद्दीन को अक्टूबर, 1929 में मियाँवाली जेल में फाँसी दी गई थी।
यह भी उल्लेखनीय है कि आज लाहौर के मियाँ साहिब कब्रिस्तान में इल्मुद्दीन का मकबरा है। वह ‘गाजी’ और ‘शहीद’ के रूप में पूजा जाता है। हर साल 30 अक्टूबर को वहाँ ‘उर्स’ का आयोजन होता है और हजारों समर्थक एक ऐसे व्यक्ति को अपना सम्मान देने के लिए आते हैं, जिसे वे पैगंबर का सबसे बड़ा ‘प्रेमी’ मानते हैं।
इल्मुद्दीन के शरीर को कब्र में दफनाते समय, ‘सारे जहाँ से हिन्दुस्तान हमारा’ ‘कविता’ को लिखने वाले पाकिस्तान की राष्ट्रीय कवि अल्लामा इकबाल, ने बेहद भावुक होकर कहा था, “यह अशिक्षित नौजवान, हम शिक्षित लोगों से भी कहीं आगे निकला।”