मक्का मस्जिद की फोटो के साथ LGBT का झंडा… गिरफ्तार कर लिए गए 4 छात्र: तुर्की के राष्ट्रपति से लेकर मंत्री तक विरोध में

छात्रों का प्रदर्शन (साभार: ट्विटर)

तुर्की में असहिष्णुता की घटना सामने आई है। शनिवार (30 जनवरी 2021) को तुर्की की पुलिस ने 4 छात्रों को गिरफ्तार किया। उन पर आरोप है कि उन्होंने इस्तांबुल के बोगाज़िशी यूनिवर्सिटी (Boğaziçi University) स्थित इस्लाम के पवित्र स्थल का कथित तौर पर अपमान किया

दरअसल प्रदर्शनकारी छात्रों ने सऊदी अरब, मक्का के मस्जिद-अल-हरम स्थित ‘काबा’ की तस्वीर के पास एक कलाकृति (आर्टवर्क) प्रदर्शित की, जिस पर रेनबो झंडा (एलजीबीटी/LGBT चिन्ह) बना हुआ था। छात्रों ने उस आर्टवर्क को कुलाधिसचिव (रेक्टर) दफ्तर के सामने लगाया था। 

छात्रों ने वहाँ पर एक और आर्टवर्क लगाया था, जिसमें आधा साँप और आधा इंसान वाला काल्पनिक पात्र (शाहमरन) बना हुआ था। उस आर्टवर्क को इस्लाम पर ‘घटिया हमला’ बताते हुए पुलिस ने सभी छात्रों को मज़हबी मूल्यों के अपमान के संदेह में गिरफ्तार कर लिया।

इसमें दो छात्रों के खिलाफ़ वारंट जारी किया गया था और जबकि दो अन्य छात्रों को नज़रबंद किया गया है। ये छात्र नए रेक्टर मेलीह बुलु (Melih Bulu) की बोगाज़िशी यूनिवर्सिटी में नियुक्ति का विरोध कर रहे थे। इनका चयन तुर्की राष्ट्रपति एर्दोगन ने किया था। 

तुर्की के सरकारी अधिकारी भी कर रहे हैं आलोचना

अपने एक ट्वीट में आंतरिक मंत्री सुलेमान सोइलु (Suleyman Soylu) ने प्रदर्शन करने वाले छात्रों को ‘LGBT deviants’ बताया और कहा वह गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इस नफरत भरे ट्वीट की तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेटिज़न्स ने भी आलोचना की और फ्रांस ने तो इसे ‘हेट स्पीच’ बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया। 

तुर्की के आंतरिक मंत्री का ट्वीट

तुर्की के राष्ट्रपति के आधिकारिक प्रवक्ता इब्राहिम कलिन (Ibrahim Kalin) ने भी ट्वीट करके कहा कि काबा का अपमान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या प्रदर्शन के अधिकार के दायरे में नहीं आता है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “क़ानून के मुताबिक़ इस हरकत की जो भी सज़ा होगी, वह दी जाएगी। इस तरह के घटिया इरादे और दोयम दर्जे की हरकत भ्रामक और निराशाजनक है।” 

इब्राहिम कलिन का ट्वीट

जनवरी की शुरुआत में राष्ट्रपति एर्दोगन ने प्रदर्शनकारी छात्रों को ‘आतंकवादी’ कहा था। दरअसल तुर्की में समलैंगिकता वैध है लेकिन एलजीबीटी समुदाय के लोगों के साथ अक्सर मारपीट और शोषण की घटनाएँ होती हैं।

समाज में उनके प्रति स्वीकार्यता का दायरा कम है और एर्दोगन के सत्ता में आते ही उन पर अत्याचार बढ़ा है। सरकार ने इस्तांबुल प्राइड मार्च पर 5 साल का (2019 तक) प्रतिबंध लगाया था। 2020 में यह मार्च कोरोना महामारी की वजह से नहीं हो पाई थी।    

छात्रों के प्रदर्शन पर बात करते हुए एक वकील लेवेंट (Levent Pişkin) ने कहा था, “सरकार 2015 से ही एलजीबीटी समुदाय के लोगों पर अपराध तय कर रही है, जब उसने इस्तांबुल प्राइड मार्च पर प्रतिबंध लगाया था। यह पिछले साल से कुछ ज़्यादा हो रहा है।” इसके अलावा वकील ने प्रदर्शनकारी छात्रों के लिए गवर्नर ऑफिस द्वारा इस्तेमाल की गई ‘होमोफोबिक भाषा’ की भी आलोचना की थी।   

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया