श्रीमान अरविंद केजरीवाल बदलाव की राजनीति करने आए थे। वे व्यवस्था में परिवर्तन की बात करते थे और कहते थे कि सारे नेता चोर हैं और एकमात्र उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ ही दूध की धुली है। अरविंद केजरीवाल ने 2015 के पार्टी मैनिफेस्टो में अनेक ऐसे वादे किए थे जिनसे दिल्ली की सूरत बदल सकती थी। यदि उन वादों का आधा हिस्सा भी पूरा किया जाता तो भले पूरी दिल्ली की सूरत नहीं बदलती कम से कम दिल्ली की जनता के जीवन स्तर में बहुत हद तक सुधार हो सकता था। लेकिन केजरीवाल को मैनिफेस्टो में किए गए वादे पूरे करने ही नहीं थे, उन्हें तो केवल राजनीति चमकानी थी।
केजरीवाल द्वारा किए गए अनेक वादों में यह भी था कि आम आदमी पार्टी की सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देगी और इन क्षेत्रों में सुधार करेगी। आइये देखते हैं केजरीवाल सरकार ने बीते पाँच सालों में इन दो क्षेत्रों में क्या किया और कितने वादे पूरे किए।
वादा #1: 500 नए सरकारी स्कूल
आम आदमी पार्टी ने 2015 के मैनिफेस्टो में वादा किया था कि 500 नए सरकारी स्कूल खोले जाएँगे। लेकिन PPRC की रिपोर्ट के अनुसार अभी तक केवल 26 स्कूल ही खोले गए हैं। हिंदुस्तान टाइम्स में 2017 में छपी रिपोर्ट के अनुसार दो सालों में केवल 17 स्कूल ही खोले गए थे। आम आदमी पार्टी सरकार यह दावा करती है कि उन्होंने 8000 ‘क्लासरूम’ खोले, और एक स्कूल में 80 क्लासरूम के हिसाब से 100 नए स्कूल खुले। यह दावा अपने आप में खोखला है क्योंकि क्लासरूम की संख्या तो पहले से बने स्कूलों में भी बढ़ाई जा सकती है। 2016 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार के स्कूलों की दीवारों पर दरारें आ गई थीं। आज उनकी क्या हालत है पता नहीं।
वादा #2: हायर एजुकेशन गारंटी स्कीम
अरविंद केजरीवाल ने अपने चुनावी वादे में यह कहा था कि दिल्ली के किसी भी स्कूल से कक्षा 12 पास किए हुए बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए बिना किसी कोलैटरल के 10 लाख रुपये तक का लोन दिया सकेगा। लेकिन बीते चार वर्षों में इस स्कीम के प्रति जनता ने कोई ख़ास रुचि नहीं दिखाई। PPRC रिपोर्ट के अनुसार चार सालों में दिल्ली के स्कूलों से पास हुए केवल 0.13% छात्रों को ही लोन दिया गया। यह भी चिंता का विषय है कि जून 2018 तक केवल 678 छात्रों ने ही इस स्कीम का लाभ उठाने के लिए आवेदन किया। क्या केजरीवाल सरकार ने इसके कारण जानने की कोशिश की? क्या इस स्कीम का प्रचार उस स्तर पर किया गया कि छात्रों को पता चल सके कि ऐसी कोई स्कीम भी है? जनता को योजना का लाभ देने की घोषणा करने मात्र से ही जिम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती। उस योजना को जनता तक पहुँचाना भी सरकार का दायित्व होता है।
वादा #3: 20 नए डिग्री कॉलेज
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली शहर के बाहरी क्षेत्रों में 20 नए डिग्री कॉलेज खोलने का वादा किया था जो अभी तक पूरा नहीं हो सका। अब दिल्ली सरकार अंबेदकर यूनिवर्सिटी से मान्यता प्राप्त पहले से मौजूद कॉलेजों में सीटें बढ़ाने पर विचार कर रही है। हिंदुस्तान टाइम्स की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार में मंत्री मनीष सिसौदिया कहते थे कि नए कॉलेज नहीं खुले तो क्या हुआ सीटें बढ़ाने पर भी छात्रों की संख्या तो बढ़ ही जाएगी क्योंकि आखिरकार छात्रों को डिग्री ही चाहिए होती है। अर्थात सिसौदिया को नए कॉलेज खुलने और सीटें बढ़ाने में अंतर समझ में ही नहीं आता। मौजूदा कॉलेज में सीटें बढ़ाने से उस कॉलेज के इंफ्रास्ट्रक्चर पर अतिरिक्त भार पड़ता है जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आती है लेकिन केजरीवाल को इससे कोई मतलब नहीं, उनको केवल डिग्री बाँटने से मतलब है।
वादा #4: प्राइवेट स्कूलों की फीस कम की जाएगी
केजरीवाल सरकार ने प्राइवेट स्कूलों की फीस कम करने के लिए तीन साल तक कोई ठोस नियमावली नहीं बनाई। अप्रैल 2018 में एक सर्कुलर के द्वारा यह निर्देश जरूर दिया गया कि सरकारी भूमि पर बने प्राइवेट स्कूल मनमाना ढंग से ट्यूशन फीस नहीं बढ़ाएँगे। लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या दिल्ली के सभी स्कूल सरकारी भूमि पर बने हैं? जवाब है नहीं। तो उन स्कूलों की आसमान छूती फीस का क्या जो निजी भूमि पर बने हैं। कोर्ट के बाहर अभिभावकों की लंबी लाइन लगी है जो न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। लेकिन दिल्ली सरकार ने अपने स्तर पर स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
वादा #5: स्कूल एडमिशन में पारदर्शिता
आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि दिल्ली के स्कूलों में नर्सरी और केजी के एडमिशन में पारदर्शिता लाने के लिए एक केंद्रीकृत सिस्टम होगा। लेकिन आज तक ऐसा कोई पोर्टल या सिस्टम नहीं बन पाया है।
वादा #6: सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारा जाएगा ताकि वे प्राइवेट स्कूल जैसी शिक्षा दे सकें
सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के केजरीवाल के दावों की सच्चाई यह है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के कुल 64,000 पद स्वीकृत हैं जिनमें से केवल 36,000 शिक्षक ही स्थाई हैं। अस्थाई रूप से अतिथि शिक्षक के रूप में 22,000 शिक्षक काम करते हैं और 6000 पद रिक्त हैं। मनीष सिसौदिया ने 2017 में कहा था कि जब तक शिक्षकों की नियुक्ति स्थाई नहीं हो जाती तब तक उन्होंने शिक्षकों का वेतन बढ़ा दिया है। मनीष सिसौदिया कहते हैं कि वे रातोंरात शिक्षकों की नियुक्ति नहीं कर सकते। जब दिल्ली सरकार सरकारी स्कूलों में नए शिक्षक नहीं रख सकती और पुराने शिक्षकों की नियुक्ति स्थाई नहीं कर सकती तो सरकारी स्कूलों में प्राइवेट स्कूल जैसी सुविधाएँ कहाँ से देगी?
चुनाव पूर्व अरविन्द केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने बड़े-बड़े वादे किए थे कि गेस्ट शिक्षकों को स्थाई किया जाएगा और रिक्त पड़े सभी पदों को भरा जाएगा। स्थिति यह है कि अभी भी हज़ारों पद रिक्त पड़े हैं और जिन पदों पर बहाली भी की गई है, उसमें भी हज़ारों अतिथि शिक्षक शामिल हैं। केजरीवाल यह दावा करते हैं कि उन्होंने शिक्षा व्यवथा में सुधार के लिए ज़रूरी आधारभूत संरचना का विकास किया है, इंफ़्रास्ट्रक्चर मज़बूत किया है लेकिन सवाल यह है कि शिक्षकों की बहाली के बिना ये सब अधूरा है। भवन और कक्षा भले रहें लेकिन पढ़ाने के लिए शिक्षक ही न रहें तो शिक्षा व्यवस्था में सुधार कैसे आएगा?
यही नहीं हालत यह है कि टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में 9वीं से 12वीं तक के 66% छात्र जो 2017 में अनुत्तीर्ण रह गए थे, अब औपचारिक शिक्षा प्रणाली से बाहर हो गए हैं। आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार 1,55,436 अनुत्तीर्ण छात्रों में से 52,582 छात्रों को ही फिर से कक्षा में प्रवेश दिया गया। दिल्ली के कई स्कूलों में पढ़ रहे छात्रों के माता-पिता से बातचीत करने पर पता चलता है कि 11वीं में स्ट्रीम के चयन को लेकर एक अनौपचारिक प्रचलन आम हो चुका है जिसमें कम अंक प्राप्त छात्रों को आगे की कक्षा में विज्ञान या गणित लेने की अनुमति नहीं देने का निर्णय लिया गया। सरकारी स्कूलों में अधिकतर विद्यार्थी गणित या विज्ञान में ही अनुत्तीर्ण होते हैं, अतः अनौपचारिक रूप से उनके चयन पर प्रतिबंध लगाकर सरकार उनके करियर के साथ खेल रही है ताकि उत्तीर्ण होने के प्रतिशत को ज्यादा दिखाया जा सके। थिंक टैंक PPRC के अनुसार 1029 स्कूलों में से 279 स्कूलों में ही विज्ञान और गणित की पढ़ाई हो रही है।
वादा #7: हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार किया जाएगा
केजरीवाल ने चुनाव लड़ने से पहले घोषणापत्र में कहा था कि वे 900 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाएँगे और दिल्ली के अस्पतालों में 30,000 अतिरिक्त बेड मुहैया कराए जाएँगे जिसमें से 4000 मैटरनिटी वार्ड में होंगे। केजरीवाल ने प्रति 1000 लोगों पर 5 बेड देने का वादा किया था। लेकिन हकीकत इन दावों से कोसों दूर है। आम आदमी पार्टी की सरकार ने 1000 मोहल्ला क्लिनिक खोलने का वादा किया था लेकिन 2018 तक केवल 160 मोहल्ला क्लिनिक ही खुल पाए थे। दिल्ली के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार अब तक 9,098 बेड की व्यवस्था ही हो पाई है।
दावा #8: अच्छी दवाइयाँ कम कीमत पर
आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि सरकार बनते ही वे सस्ती दवाइयाँ कम कीमत पर उपलब्ध कराएगी। लेकिन इसपर कुछ नहीं किया गया। केजरीवाल सरकार का एक लाख शौचालय बनवाने का दावा भी झूठा निकला।