"मैं पूरी क़ुरान जानती हूँ। इससे मुझे पता चला है कि ट्रिपल तलाक़ जैसी व्यवस्थाएँ होनी चाहिए। मैं मानती हूँ कि किसी को भी इसके लिए जेल नहीं भेजा जाना चाहिए।"
"जो लोग सीएए का विरोध कर रहे हैं, वे शरणार्थी शिविरों की बात क्यों नहीं कर रहे हैं। जो मानवाधिकार की बातें नहीं करते हैं वे ही सीएए के विरोध की बातें कर रहे हैं। शरणार्थी शिविरों को देखना अति कष्टदायी है। यह आँखों में आँसू ला देगा।"
250 से अधिक छात्र-छात्राओं ने कुलपति को मेल व मैसेज के जरिए अपनी परेशानी बताई है। इनका कहना है कि कब तक इस आंदोलन के चलते यूनिवर्सिटी को बंद रहेगा। परीक्षाओं के साथ भी तो वे आंदोलन जारी रख सकते हैं।
कॉन्ग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भी कहा है कि CAA लागू करने से राज्य इनकार नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप नहीं किया तो CAA क़ानून की किताब में क़ायम रहेगा। जो क़ानून की किताब में है उसे सभी को मानना होगा।
गहलोत सरकार ने अब 100 हिंदू शरणार्थियों को रियायती दर पर जमीन देने का ऐलान किया है। इससे पहले उसने हिंदू शरणार्थियों को पाकिस्तान चले जाने को कहा था। हालॉंकि उसके इस आदेश पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रोक लगा दी थी।
राजस्थान के पंचायती चुनाव में एक नया इतिहास रच दिया गया है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब पाकिस्तान मूल की रहने वाली कोई महिला सरपंच बनी हो। पाकिस्तान के सिंध से भारत लौटीं नीता कँवर ने सरपंच का चुनाव जीत लिया है।
"कोलकाता की सड़कों पर बुद्धिजीवियों नामक कुछ जीव बाहर आ गए हैं। ये चाटूकार बुद्धिजीवी, जो दूसरे की जेब पर निर्भर करते हैं और उनके पैसों का लाभ उठाते हैं, जब बांग्लादेश में उनके पूर्ववर्तियों को यातनाएँ दी गई थीं, तब वे कहाँ थे?"
"वहाँ की भीड़ ने मुझे घेर लिया और बोला कि कौन से चैनल से हो? मैंने कहा कि मैं बस एक स्टूडेंट हूँ और मैं आपकी आवाज जनता तक पहुँचाने के लिए आई हूँ। उन्होंने कहा कि जब तक वीडियो डिलीट नहीं करोगी, जाने नहीं देंगे। उस समय मुझे वाकई ऐसा लगा कि आज मेरी जान चली जाएगी, मैं घर पर जिंदा नहीं पहुँच पाऊँगी।”
आंदोलनकारी छात्रों के धरने में अचानक से एएमयू कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर पहुँच गए। उन्होंने जाते ही छात्रों को सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक पोस्ट से सम्बन्धित कागज को दिखाते हुए नाराजगी जताई, जिसके जवाब में छात्रों ने कहा कि वायरल हो रही खबर के कारण हम 32 हजार छात्रों को कटघरें में खड़ा नहीं कर सकते।
यह उस आज़ादी की माँग है। जिसकी एक झलक पिछले दिनों जामिया और जेएनयू में प्रदर्शनकारियों के हाथों में पकड़े पोस्टरों में दिखाई दी थी। इस आज़ादी की माँग को उन शिक्षकों ने दोहराया है, जिनके ऊपर विश्वविद्यालय के छात्रों को उज्ज्वल भविष्य की राह दिखाने की ज़िम्मेदारी है।