2012 से 2017 तक फ्रांस के रक्षा मंत्री रहे ली ड्रायन अभी भारत दौरे पर आये हुए हैं। ड्रायन अभी फ्रांस के विदेश मंत्री हैं। बता दें कि भारत और फ्रांस के बीच चर्चित राफेल करार पर भी इन्ही के रक्षा मंत्रित्व के कार्यकाल के दौरान अंतिम निर्णय लिया गया था। टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि एक मंत्री के तौर पर ये उनका सोलहवां भारत दौरा है। ज्ञात हो कि इस साल भारत और फ्रांस एक दूसरे के बीच हुई पहली आधिकारिक रणनीतिक साझेदारी की बीसवीं वर्षगाँठ मना रहे हैं। उन्होंने अपने इस साक्षात्कार में राफेल से जुड़े सवालों पर भी जवाब दिया। जब उनसे पूछा गया कि राफेल पर चल रहे विवाद पर वो क्या टिपण्णी करना चाहेंगे तो उन्होने कहा:
“तब रक्षा मंत्री के तौर पर मैंने राफेल की कई आधिकारिक चर्चाओं में हिस्सा लिया था, इसीलिए मैं कुछ तथ्य सामने रखना चाहूँगा। अप्रैल 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फ्रांस दौरे पर गए तब तक दस्सौल्ट और हल (एच.ए.एल) के बीच समझौते के लिए हो रही बातचीत रुक चुकी थी। मैंने ये चीज स्वयं देखी थी। ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि इन चर्चाओं के कोई नतीजे नहीं निकल पा रहे थे। भारतीय वायुसेना की शीघ्र आवश्यकताओं को देखते हुए अब एक ही उपाय बचा था जिसे हमने चुना- एक नए अंतर-सरकारी करार में घुसना जिसमे भारत को परियोजना के सफल परिणाम के लिए बेहतर गारंटी मिले और जो भारत की अभिग्रहण प्रक्रिया का पालन भी करती हो। जैसा कि हमारे संयुक्त बयान में भी कहा गया था- इस करार का समापन “बेहतर शर्तों” पर होगा और ऐसा हुआ भी। इसका मतलब ये हुआ कि सम्बद्ध निर्माता इस बात पर राजी हो गए कि सारे जेट के कुल मूल्य का पचास प्रतिशत निवेश, तकनीकी हस्तांतरण और रोजगार सृजन के रूप में भारत में आये।”
फ्रांस के विदेश मंत्री ने ये भी साफ़ कर दिया कि ओफ़सेट के नियमों के कार्यान्वयन और भारतीय साझेदारों (जो कि लगभग सौ की संख्या में हैं) को चुनने का पूरा का पूरा काम सम्बद्ध फ्रेंच कम्पनियों ने किया और इसका दोनों सरकारों के सम्बन्ध से कोई लेना-देना नहीं था। एक अहम बयान देते हुए उन्होंने ये भी साफ़ कर दिया कि इस मामले में उनपर किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं था। उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना को राफेल की खेप 2019 के बाद से मिलने लगेगी।
“हमें इस करार पर गर्व है क्योंकि ये भारत की सुरक्षा व्यवस्था में अहम योगदान देता है और हमारे बीच की रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करता है। “
– ली ड्रायन, फ्रांस के विदेश मंत्री
फ्रांस के विदेश मंत्री का बयान उन लोगों के लिए तगड़ा झटका है जिन्होंने ये दावा किया था कि भारत सरकार ने फ्रांस पर दबाव डाल कर राफेल करार में अपनी मनपसंद कम्पनियों को साझेदार के रूप में चुनने को कहा।