Friday, May 23, 2025
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दुनिया के लिए अबूझ, पर हमारे पुराणों में दर्ज है सब कुछः जानिए क्या है महाकुंभ का खगोलीय महत्व, कितनी प्राचीन यह सनातनी परंपरा; क्यों है यह भारत के ‘आदर्श समाज’ का आधार

कुंभ का यह दिव्य आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों, विविधता, और सहिष्णुता की अद्वितीय मिसाल भी पेश करता है।

प्रयागराज महाकुंभ 2025 की शुरुआत माघ मेले (13 जनवरी 2024) के साथ हो जाएगी। प्रयागराज महाकुंभ का आयोजन भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का सबसे बड़ा उत्सव होगा, जो माघ महीने में प्रारंभ होकर लगभग दो महीनों तक चलेगा। इस दौरान करोड़ों श्रद्धालु यहाँ डुबकी लगाएँगे। इस समय महाकुंभ की तैयारियाँ जोरों पर हैं, जिसमें नए घाटों का निर्माण, यातायात और सुरक्षा प्रबंधन, पेयजल और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, साथ ही स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कुंभ का यह दिव्य आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों, विविधता, और सहिष्णुता की अद्वितीय मिसाल भी पेश करता है। हम इस लेख में जानेंगे, महाकुंभ से जुड़ी खास बातें…

महाकुंभ का पौराणिक और ऐतिहासिक संदर्भ

महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति का ऐसा पवित्र उत्सव है, जिसकी गूंज प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक युग तक सुनाई देती है। महाकुंभ मेला इतिहास, धर्म, दर्शन और समाज के अद्वितीय समागम को दर्शाता है। यह मेला न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय दर्शन, परंपरा और खगोलीय विज्ञान का अद्भुत संगम भी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक के पवित्र स्थलों पर गिरीं। यही कारण है कि इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। इस मेले का इतिहास इतना पुराना है कि इसकी उत्पत्ति का समय स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है।

महाकुंभ का उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में मिलता है। श्रीमद्भागवत पुराण, विष्णु पुराण और महाभारत में समुद्र मंथन की कथा को विस्तार से बताया गया है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन किया। मंथन से निकले अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों में संघर्ष हुआ, जिसमें अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं।

विष्णु पुराण में यह भी उल्लेख है कि जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है, तो हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है। इसी प्रकार, जब सूर्य और गुरु सिंह राशि में होते हैं, तो नासिक में कुंभ लगता है। उज्जैन में कुंभ तब होता है जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है। प्रयागराज में माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और गुरु मेष राशि में होता है। इस खगोलीय गणना का सटीक पालन आज भी किया जाता है।

इतिहासकार मानते हैं कि कुंभ मेला सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुराना है। तो कुछ इतिहासकारों के अनुसार कुंभ मेले का आयोजन गुप्त काल (तीसरी से पाँचवीं सदी) में सुव्यवस्थित रूप में शुरू हुआ। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी 629-645 ईस्वी में सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रयागराज के कुंभ मेले का वर्णन किया है। उन्होंने इसे एक विशाल और भव्य आयोजन बताया, जिसमें असंख्य साधु, विद्वान और श्रद्धालु सम्मिलित होते थे। आधुनिक प्रशासनिक ढांचे के तहत कुंभ का स्वरूप गुप्त काल से शुरु हुआ और शंकराचार्य ने इसे धर्म और समाज को जोड़ने का माध्यम बनाया।

धर्माचार्य मानते हैं कि कुंभ मेला अनादि है। यह किसी एक घटना से प्रारंभ नहीं हुआ बल्कि मानव सभ्यता के साथ इसकी परंपरा विकसित हुई। यह आयोजन मानवता की धरोहर है, जिसमें धर्म, संस्कृति और समाज का अद्भुत समागम होता है।

कुंभ मेले का खगोलीय महत्व

कुंभ मेला खगोलीय घटनाओं पर आधारित है। नवग्रहों में से सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि की स्थिति इस आयोजन के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। अमृत की रक्षा में इन ग्रहों की भूमिका को पुराणों में विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। कुंभ मेले का आयोजन हर तीन वर्षों के अंतराल पर होता है, जो चार पवित्र स्थलों—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में बारी-बारी से आयोजित होता है। 12 वर्षों के चक्र के बाद यह मेला अपने पहले स्थान पर लौटता है।

प्रयागराज का कुंभ विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है। कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है, जबकि 6 साल में अर्धकुंभ और हर 144 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है। हर 144 साल आयोजित होने वाले महाकुंभ को देवताओं और मनुष्यों के संयुक्त पर्व के रूप में देखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, पृथ्वी का एक वर्ष देवताओं के एक दिन के बराबर होता है। इसी गणना के आधार पर 144 वर्षों के अंतराल को महाकुंभ के रूप में मनाया जाता है।

दुनिया के लिए अबूझ पहेली है महाकुंभ

महाकुंभ न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में एक अद्वितीय आयोजन है। पश्चिमी धर्मों में सामाजिक और राजनीतिक घटनाओं का महत्व अधिक है, लेकिन वहाँ किसी दार्शनिक या आध्यात्मिक घटना की इस प्रकार की मान्यता नहीं है। कुंभ मेले का खगोलीय आधार और इसका आध्यात्मिक महत्व पश्चिमी विचारधारा के लिए अबूझ पहेली है।

यह मेला सनातन धर्म की उस दृष्टि को दर्शाता है, जिसमें सत्य की खोज को प्राथमिकता दी जाती है। यहाँ कोई किसी पर अपनी मान्यता थोपता नहीं, बल्कि सभी को अपनी-अपनी साधना पद्धति में विश्वास करने का अधिकार है। यह विविधता का सम्मान और सहिष्णुता का अद्भुत उदाहरण है।

कुंभ मेला आज केवल भारतीयों तक सीमित नहीं है। विदेशी पत्रकार, श्रद्धालु, और पर्यटक भी इसमें भाग लेते हैं। उनके लिए यह भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का परिचय है। पश्चिमी दृष्टिकोण से यह मेला ब्रह्मांड और जीवन की गूढ़ अवधारणाओं को समझने का प्रयास है। विदेशी लेखक और पत्रकार इस मेले को ‘विश्व का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण आयोजन’ कहते हैं। उनका मानना है कि कुंभ मेला भारतीय दर्शन और अध्यात्म की व्यापकता को दर्शाता है।

फोटो साभार: अमर उजाला

महाकुंभ में संतों का मेला, गृहस्थों के लिए भी स्वर्णिम अवसर

कुंभ मेला संतों, तपस्वियों और गृहस्थों के बीच का एक सेतु है। कुंभ मेला संतों और गृहस्थों दोनों के लिए एक अद्वितीय अवसर है। यह साधना, ज्ञान, और आस्था का केंद्र है, जहाँ गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग तपस्वियों के सत्संग से धर्म का मर्म समझते हैं। कुंभ में संत समाज का महत्वपूर्ण योगदान है, जहाँ वे अपने ज्ञान और अनुभव को जनसामान्य के साथ साझा करते हैं। संतों के सत्संग और प्रवचन से लोगों को आत्मज्ञान प्राप्त होता है।

कुछ संत ऐसे भी होते हैं, जो अपने साधना स्थलों से बाहर नहीं आते, लेकिन कुंभ के अवसर पर दर्शन देते हैं। श्रद्धालु इन संतों से जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझते हैं और धर्म का मर्म जानते हैं। यह आयोजन साधना परंपरा, गृहस्थ परंपरा और कुंभ शास्त्र की त्रिवेणी है। कुंभ मेला इस दृष्टि से अनूठा है कि यहाँ समाज के सभी वर्गों के लोग एक साथ मिलते हैं।

फोटो साभार: kumbh.gov.in

महाकुंभ नगरी में कथा और प्रवचन की परंपरा ने समाज को सदियों से दिशा दी है। कथा और प्रवचन कठिन ज्ञान को सरल भाषा में आम जन तक पहुँचाने का माध्यम हैं। महाकुंभ में विभिन्न अखाड़ों और संप्रदायों द्वारा आयोजित कथाएँ श्रद्धालुओं को सत्य और धर्म का मार्ग दिखाती हैं। धार्मिक कथावाचक मानते हैं कि ये कथाएँ समाज को गहरे स्तर पर प्रभावित करती हैं। अखाड़ों के प्रतिनिधि कहते हैं कि कथा और प्रवचन जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाने का माध्यम हैं। समाजशास्त्री इसे भारतीय समाज की सामूहिक चेतना को जागृत करने का साधन मानते हैं। श्रद्धालु कहते हैं कि इन प्रवचनों से उन्हें जीवन को नई दृष्टि और ऊर्जा मिलती है।

महाकुंभ में राज्य सत्ता, समाज सत्ता और धर्म सत्ता का समागम

कुंभ मेले में धर्मांतरण, किसी विशेष पूजा पद्धति या विचारधारा को थोपने का कोई स्थान नहीं है। यहाँ हर व्यक्ति को अपनी आस्था और पूजा पद्धति के साथ आने और उसे प्रकट करने की स्वतंत्रता है। यह विविधता में एकता की भारतीय परंपरा का जीवंत उदाहरण है।

कुंभ मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं है। यह राज्य सत्ता, समाज सत्ता, और धर्म सत्ता का अद्वितीय संगम भी है। कुंभ मेला भारतीय समाज की उस विलक्षणता को दर्शाता है, जहाँ राज्य सत्ता, समाज सत्ता और धर्म सत्ता तीनों एक-दूसरे के सहयोग से काम करती हैं। यहाँ धर्माचार्य, आध्यात्मिक गुरु और प्रशासन मिलकर मेले को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करते हैं। यह आयोजन एक आदर्श समाज की नींव रखने का प्रतीक है।

महाकुंभ भारतीय संस्कृति, धर्म और समाज का ऐसा संगम है, जो न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को एकता और सहिष्णुता का संदेश देता है। यह आयोजन पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक रूप से अनमोल है। महाकुंभ भारतीय समाज की सहअस्तित्व की भावना और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। यह न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि एक ऐसा मंच भी है, जहाँ मानवता, ज्ञान और चेतना का मिलन होता है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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