भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले एक सप्ताह में 5 बिलियन डॉलर (लगभग 41,657 करोड़ रुपए) से अधिक बढ़ कर 595.4 बिलियन डॉलर (लगभग 49,60,560 करोड़ रुपए) हो गया है। यह बीते लगभग 3 महीने में सबसे ऊँचा स्तर है। भारत के पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। बीते चार माह में विदेशी मुद्रा भंडार में यह सबसे बड़ी बढ़त है। इससे पहले के सप्ताह में यह लगभग 462 मिलियन डॉलर घट गया था।
यह जानकारी भारतीय रिज़र्व बैंक ने दी है। भारत से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार केवल चीन, जापान और स्विटज़रलैंड के पास हैं। चीन के पास 3.1 ट्रिलियन डॉलर जबकि जापान के पास 1.1 ट्रिलियन डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार हैं। स्विटज़रलैंड के पास 809 बिलियन डॉलर से अधिक के भंडार हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार का मजबूत स्थिति में होना उसकी बढ़ती अर्थव्यस्था को दिखाते हैं। जिन देशों की अर्थव्यवस्था गड़बड़ होती है, वह अधिकांश समय विदेशी मुद्रा भंडार की कमी से जूझ रहे होते हैं, पड़ोसी देश पाकिस्तान इसका एक उदाहरण है।
क्या होता है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश या उसके केन्द्रीय बैंक के पास संचित ऐसी धनराशि होती है, जिसका उपयोग कर वह विदेशों में अपनी खरीददारी का भुगतान कर सके। किसी भी राष्ट्र का विदेशी मुद्रा भंडार उसकी आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित करता है।
इसमें कमी आने पर विदेशों को किए जाने वाले भुगतान में समस्या आती है, जिससे अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती है। इसका हालिया उदाहरण पाकिस्तान और श्रीलंका हैं। भारत के साथ ऐसी स्थिति वर्ष 1991 में हुई थी, जब देश का सोना गिरवी रखना पड़ा था।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के 4 कंपोनेंट – विदेशी मुद्रा, सोना, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स और IMF में रिज़र्व पोजीशन होते हैं। इनमें सबसे मुख्य दूसरे देशों की मुद्रा का रिज़र्व है। इसके अंतर्गत भारत डॉलर, यूरो, पाउंड और येन जैसी करेंसी संचित करता है। इसमें भी सबसे प्रमुख अमेरिकी डॉलर है।
भारत के पास वर्तमान में 526 बिलियन डॉलर मुद्रा भंडार है, जबकि 46 बिलियन डॉलर का सोना है। स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स के अंतर्गत भारत के पास 18 बिलियन डॉलर हैं। भारत जब चाहे इन्हें उपयोग में ला सकता है। रिजर्व पोजीशन, IMF के पास जमा देश का पैसा होता है।
अक्टूबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अपने सर्वकालिक उच्च स्तर 645 बिलियन डॉलर पर पहुँचा था। इसके पश्चात फरवरी 2022 में यूक्रेन-रूस युद्ध चालू होने के कारण डॉलर मजबूत हुआ, जिससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कम हो गया। कच्चे तेल के महँगे होने का असर भी इस पर पड़ा।
इस विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग व्यापार के अतिरिक्त, देश की मुद्रा को स्थिर करने में भी किया जाता है। यदि रुपया अधिक कमजोर हो रहा है तो रिजर्व बैंक अपने रिज़र्व से डॉलर बाजार में बेच कर उसकी कीमत को स्थिर रखती है।
विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने का सबसे बड़ा माध्यम विदेशों से व्यापार होता है। भारत, कच्चे तेल का आयातक होने के कारण बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा देता है। जो देश आयात पर अत्यधिक निर्भर होते हैं, उन्हें विदेशी मुद्रा भंडार की समस्याएँ बनी रहती हैं।