गुजरात हाईकोर्ट के सामने शादीशुदा जोड़े का एक ऐसा मामला पेश आया है, जिसमें पति कह रहा है पत्नी महज 2 बार ही उसके पास आती है तो वहीं पत्नी पूछ रही है कि 2 दिन काफी नहीं हैं क्या। इस केस में हाईकोर्ट के सामने अब वैवाहिक अधिकारों और जिम्मेदारियों की पेचीदगियों को सुलझाने का काम आ पड़ा है।
दरअसल, गुजरात हाईकोर्ट में पत्नी ने अपनी पति की याचिका को चुनौती दी है। पत्नी ने कोर्ट में मुद्दा उठाया है कि महीने में 2 बार अपने पति के घर जाना उसके वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने के बराबर है या नहीं? उसके पति ने फैमिली कोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए कहा था कि उसकी शादीशुदा जिंदगी ठीक नहीं चल रही है।
ये पूरी कहानी तब शुरू हुई जब महिला के पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 का हवाला देते हुए हुए सूरत की एक पारिवारिक अदालत में याचिका दायर की। इसमें उसने माँग की थी पत्नी को रोज उसके साथ रहने का आदेश दे और उसके शादीशुदा जिंदगी के अधिकारों को बहाल किया जाए। इसके पीछे पति ने तर्क दिया था कि जिस घर में वो एक साथ रह रहे हैं, वहाँ से पत्नी का गैर-मौजूद रहना वैवाहिक जिंदगी के कर्तव्यों का उल्लंघन है। पति का कहना था कि बेटे के पैदा होने के बाद पत्नी काम के बहाने से अपने माता-पिता के पास रहने चली गई।
हालाँकि, इसे लेकर उसकी पत्नी का नजरिया दूसरा था। पत्नी का कहना है कि वह हफ्ते में में 2 बार अपने पति से मुलाकात करके अपने दायित्वों को सही तरीके से निभा रही है। अपनी नौकरी की वजह से उसे अपने माता-पिता के साथ रहना पड़ रहा है। उसका मानना था कि यह व्यवस्था सही और निष्पक्ष थी।
दरअसल, पारिवारिक अदालत का नोटिस मिलते ही पत्नी ने तुरंत सिविल प्रक्रिया संहिता के नियम 7 एवं आदेश 11 के तहत एतराज दर्ज कराया था। पत्नी का तर्क था कि पति का ये दावा निराधार है कि वो उसे नजरअंदाज कर रही है। उसका तर्क है कि वो अपने वैवाहिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन कर रही थी। इस पर पारिवारिक अदालत ने यह कहते हुए पत्नी की याचिका खारिज कर दी कि मामले की पूरी सुनवाई होने तक कोई फैसला नहीं दिया जा सकता। इस पर बगैर देरी किए पत्नी गुजरात हाईकोर्ट पहुँच गई।
पत्नी ने दिसंबर महीने की शुरुआत में अपने पति की याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी। पत्नी ने इस याचिका में चुनौती देते हुए कहा कि अगर वह एक महीने में 2 बार अपने पति के साथ रह रही है तो यह बात वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने के बराबर है या नहीं। पत्नी ने अपनी याचिका में कहा था कि औपचारिक तौर पर अलगाव के बाद ही वैवाहिक जिम्मेदारियों में दखलअंदाजी को मंजूरी दी जाती है।
इसके बाद अब हाईकोर्ट ही इस बुनियादी सवाल से जूझ रहा है कि क्या पति को पत्नी के रोजाना नज़दीक रहने की माँग करने का हक है? केस की कार्यवाही के दौरान जस्टिस VD नानावती ने सवाल उठाते हुए कहा, “अगर पति अपनी पत्नी को अपने साथ आने और रहने के लिए कहता है तो इसमें गलत क्या है? क्या उसे मुकदमा करने का हक नहीं है?” इस मामले में हाईकोर्ट ने पति को जवाब 25 जनवरी, 2024 को अपना जवाब दाखिल करने की तारीख दी है।