भारतीय उपमहाद्वीप में हिंद महासागर में एक बेहद खूबसूरत द्वीपसमूह देश है, जिसका नाम है मालदीव (Maldives)। करीब 1200 द्वीपों में फैले सुन्नी मुस्लिम बहुल देश मालदीव एशियाई महाद्वीप की मुख्य भूमि से लगभग 750 किलोमीटर की दूरी पर श्रीलंका और भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। हालाँकि, मालदीव जितना खूबसूरती के लिए विख्यात है, उतना ही आतंकवाद के लिए कुख्यात भी है।
एक तरफ प्रकृति की छँटा को निहारने को उत्सुक सैलानी मलादीव में समुद्र के किनारे सुनहरे रेतों पर चलने के लिए मचलते हैं, तो दूसरी तरफ यह आतंकियों के लिए कुछ समय से जन्नत साबित हो रहा है। मालदीव में दुनिया के सबसे बर्बर इस्लामी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट या आईएसआईस (ISIS या IS) और अल कायदा (Al Qaeda) अपनी जड़े जमा चुके हैं। शरिया संचालित इस मुल्क में कई आतंकी दुनिया की रडार पर हैं।
मालदीव में गैर-मुस्लिमों को आजादी नहीं
एक ऐसा भी समय था, जब यहाँ का शासन बौद्ध क्षत्रियों के हाथों में था। इसकी बानगी यहाँ के द्वीपों पर मिलने वाले बौद्ध स्तूप इसकी कहानी कहते हैं। हालाँकि, कालांतर में इस यहाँ मुस्लिमों की संख्या बढ़ती गई और आज 98 प्रतिशत से अधिक आबादी कट्टर सुन्नी मुस्लिमों की है। अब इस मुस्लिम बहुल देश में ज्यादातर बौद्ध स्तूप या तो तोड़ दिए गए हैं और फिर जर्जर हालात में हैं, जो कभी भी नष्ट हो सकते हैं।
मुस्लिम बहुल आबादी होने के साथ ही इस मुल्क में कट्टरपंथी सुन्नी की व्याख्या अपने हिसाब से करने वाले आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट और अल कायदा अपना दबदबा बनाने लगे। मालदीव के बारे में अमेरिका तक कह चुका कि ये हद से ज्यादा चरमपंथी देश है। यहाँ सरकार की नीति भी इस्लामी और शरिया समर्थक है। इस देश में रहने वाली 2 प्रतिशत अन्य धर्मों की आबादी भी अपनी इच्छा के अनुसार जी सकती।
मालदीव में रहने वाले 2 प्रतिशत अन्य धर्म के लोगों को अपने धार्मिक प्रतीकों को मानने या सार्वजनिक तौर पर अपने त्योहार मनाने की छूट नहीं है। अगर किसी को मालदीव की नागरिकता चाहिए तो उसे मुस्लिम, वो भी सुन्नी मुस्लिम होना पड़ता है। मालदीव में धार्मिक मामलों को सरकार की इस्लामी मामलों का मंत्रालय (MIA) नियंत्रित करती है। यही कारण है कि आतंकी संगठनों को यहाँ पनपने का मौका मिला।
पिछले साल जुलाई में अमेरिका के गृह मंत्रालय ने मालदीव के कुछ कट्टरपंथियों एवं संगठनों को आतंकियों की सूची में डाला था। आईएसआईएस के 18 समर्थक और अल-कायदा के 2 समर्थकों सहित इन आतंकी संगठनों से संबद्ध 29 कंपनियों को इस लिस्ट में डाला था। ये लोग और संगठन आईएसआईएस-खुरासान के स्थानीय भर्तीकर्ता मोहम्मद अमीन से जुड़े थे।
मालदीव में ISIS और अल कायदा
इतना ही नहीं, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ ट्रेजरी ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि साल 2014 से लेकर 2018 के शुरुआत तक मालदीव के 250 से ज्यादा लोग ISIS में भर्ती के लिए सीरिया चले गए। ये जनसंख्या के अनुपात में दुनिया में सबसे ज्यादा है। इनमें से काफी आतंकी मारे गए, जबकि मालदीव की ज्यादातर महिलाएँ सीरिया के कैंपों में हैं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, मालदीव का अड्डू शहर इस्लामी चरमपंथियों का गढ़ है। ये शहर साल 2018 के बाद एक्टिव हुआ और ISIS की विचारधारा को फैलाते हुए यहाँ पर लोगों की भर्तियाँ कर रहा है। यहाँ के कई स्थानीय गुट ISIS-K के लिए काम करते हैं। इसके लीडर इस्लामिक स्टेट तक IED और लड़ाके पहुँचाने का काम करते हैं। ये युवाओं के दिमाग में जिहाद का जहर भरकर उन्हें ISIS और अल कायदा से जोड़ते हैं।
साल 2014 के बाद भले ही मालदीव के कट्टरपंथियों का झुकाव ISIS और अल कायदा की ओर बढ़ा हो, लेकिन उससे पहले पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन वहाँ अपनी पैठ बना चुके थे। साल 2004 में मालदीव में आए सुनामी के बाद पाकिस्तान स्थित जमात-उद-दावा (जेयूडी) का एक धर्मार्थ मोर्चा इदारा खिदमत-ए-खल्क (आईकेके) मानवीय सेवा प्रदान करने की आड़ में मालदीव पहुँचा।
ख़ुफ़िया सूत्रों के अनुसार, IKK ने मालदीव में लश्कर-ए-तैयबा की गतिविधियों का नेतृत्व किया, जिसका ध्यान युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने पर था। आईकेके ने मालदीव में 282,000 डॉलर खर्च करने की बात कही। हालाँकि, मालदीव सरकार का कहना है कि संगठन को कभी भी सुनामी के बाद राहत प्रदान करने वाले धर्मार्थ समूह के रूप में पंजीकृत नहीं किया गया था।
सीरिया और इराक में ISIS में लड़ाके के रूप में जाने से पहले मालदीव के कट्टरपंथी अफगानिस्तान की सरकार को गिराने के लिए तालिबान की भर्ती यहाँ से करते थे। मालदीव के कई नागरिक ना सिर्फ पाकिस्तान में, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने में शामिल रहे हैं। सेंटर फॉर ज्वॉइंट वारफेयर की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 5.5 लाख की आबादी वाले इस देश में इस समय लगभग 1400 आतंकी सक्रिय हैं।
मौमून गयूम ने किया मालदीव का इस्लामीकरण
इस देश का इस्लामीकरण मौमून गयूम ने किया। गयूम ने मालदीव में इस्लामीकरण को बढ़ावा दिया, जिसके कारण लोगों में कट्टरपंथ भरता गया। गयूम मालदीव का तानाशाह था, जिसने सन 1978 से लेकर 2008 तक देश पर शासन किया। उसके शासन में धार्मिक एकता संरक्षण अधिनियम 1994 लाया गया, जिसमें मालदीव के लोगों पर सुन्नी इस्लाम को थोपा गया और धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित कर दिया।
इतना ही नहीं, मालदीव में मौमून गयूम ने साल 1997 में वहाँ के संविधान में एक संशोधन किया। इस संशोधन के तहत मालदीव में इस्लाम को एकमात्र राजकीय धर्म घोषित किया गया और बाकी अन्य धर्मों के मानने को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। आगे चलकर गयूम के सौतेले भाई अब्दुल्ला यामीन ने मालदीव की सत्ता पर कब्जा किया और उसने सऊदी अरब के कट्टर वहाबियों से अपने संबंधों को मजबूत किया।
अब्दुल्ला यामीन की पार्टी के वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू हैं। वह भी भारत विरोधी रूख के लिए जाने जाते हैं। इसके विपरीत लोकतांत्रिक तरीके से इसके पहले वाली सरकार में चुने गए राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद थोड़े नरम स्वभाव के माने जाते हैं और भारत को एक दोस्त की भूमिका में देखते हैं। इन्होंने अपने शासन काल में आतंकियों की नकेल कसने की पूरी कोशिश की थी।