नागरिकता संशोधन कानून (CAA) प्रदर्शन की आड़ में दिल्ली में दंगे की साजिश रचने वाले शरजील इमाम को दिल्ली की अदालत ने जमानत देने से एक बार फिर इनकार कर दिया। शरजील इमाम वहीं शख्स है, जिसने़ पूर्वोत्तर राज्यों को देश के अन्य हिस्सों से काटने की बात कही थी। शरजील पर देशद्रोह का मामला दर्ज है।
दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश समीर बाजपेयी ने शनिवार (17 फरवरी 2024) को अपने फैसले में कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया। जज ने कहा कि CAA के खिलाफ शरजील इमाम के भाषणों और अन्य गतिविधियों में लोगों को हथियार उठाने या मारने के लिए नहीं कहा गया, लेकिन इसके कारण लोग लामबंद हुए। इसके कारण दिल्ली में अशांति फैल गई।
अदालत ने कहा कि शरजील इमाम के भाषण इतने भड़काऊ (Powerful) थे कि इसने विशेष समुदाय (मुस्लिम) लोगों की कल्पना पर कब्जा कर लिया और उन्हें विघटनकारी गतिविधियों में भाग लेने के लिए उकसाया। शरजील ने सोशल मीडिया और अपने भाषणोें में वास्तविक तथ्यों से छेड़छाड़ की और शहर में तबाही मचाने के लिए लोगों को उकसाया। जिसके कारण फरवरी 2020 में दिल्ली में दंगे हुए।
अदालत ने कहा कि शरजील इमाम के भाषणों के कारण दिल्ली में प्रदर्शनकारियों और विरोध स्थलों की संख्या बढ़ गई। भीड़ ने मुख्य सड़कों को अवरुद्ध करना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप पूरा शहर ठप हो गया। जज ने कहा, “आखिरकार, अलग-अलग तारीखों और स्थानों पर दंगे हुए। हिंसा हुई, सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान हुआ और बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई।”
दरअसल, शरजील इमाम के खिलाफ द्रेशद्रोह और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज है। साल 2019 में दिल्ली के जामिया इलाके और फिर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में शरजील इमाम ने भड़काऊ भाषण दिया था। इन्हीं मामलों में जमानत की अर्जी पर सुनवाई करते हुए जज ने टिप्पणी की।
जामिया और एएमयू में भड़काऊ भाषण देने के मामले में शरजील इमाम को 28 जनवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया था। उसने जमानत के लिए जुलाई 2022 में पहली अर्जी दाखिल की थी, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दी थी। वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट ने 30 जनवरी को देशद्रोह और UAPA मामले में शरजील इमाम की जमानत याचिका पर शीघ्र निर्णय लेने का ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया था।
शरजील इमाम ने कोर्ट में तर्क दिया कि वह सात साल की अधिकतम सजा में से चार साल पहले ही जेल में बीता चुका है, जो आधी से अधिक है। इसलिए वह जमानत का पात्र है। उसने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह के अपराध को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगित रखा है और उनके खिलाफ लगाए गए UAPA में सात साल से अधिक की सजा का प्रावधान नहीं है।
सुनवाई के दौरान लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि अपराधों के लिए सजा की गणना क्रमिक रूप से की जाती है न कि एक साथ। उन्होंने कहा कि धारा 436 के तहत जमानत अनिवार्य नहीं है और अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए। तर्क सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि वह राजद्रोह के अपराध पर विचार नहीं कर रहा, लेकिन इमाम के कृत्य सामान्य अर्थों में राजद्रोह के रूप में योग्य होंगे।