इलाहबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि बिना धर्म परिवर्तन के कोई महिला और पुरुष लिव इन रिलेशनशिप में भी नहीं रह सकते। यह उत्तर प्रदेश के धर्म परिवर्तन कानून का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने इस मामले में अंतर धार्मिक दम्पति को राहत देने से इंकार किया।
यह निर्णय इलाहाबाद हाई कोर्ट की जस्टिस रेनू अग्रवाल ने सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अलग-अलग धर्मों वाले दम्पति को धर्म परिवर्तन के लिए आवेदन देना ही होगा। यह उन्हें अवैध धर्म परिवर्तन को रोकने वाले कानून के तहत करना होगा।
कोर्ट के सामने यह दम्पति अपनी सुरक्षा सम्बन्धी याचिका लेकर आए थे। याचिकाकर्ता महिला मुस्लिम जबकि युवक हिन्दू है। दोनों ने 1 जनवरी, 2024 आर्य समाज मंदिर में विवाह किया था। हालाँकि, दोनों में से किसी ने अभी तक अपना धर्म नहीं बदला था।
उनकी सुरक्षा की माँग का उत्तर प्रदेश सरकार ने विरोध किया। सरकार की तरफ से हाजिर वकील ने कहा कि हिन्दू युवक से विवाह करने वाली महिला मुस्लिम है। ऐसे में हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत, आर्य समाज के नियमों के अनुसार, एक मुस्लिम महिला हिन्दू पुरुष से विवाह नहीं कर सकती। कोर्ट ने दोनों के बीच का रिश्ता लिव इन रिलेशनशिप का माना और यह निर्णय दिया।
राज्य सरकार ने उनकी माँग का विरोध करते हुए कहा कि दोनों में से किसी ने अपना धर्म अभी तक नहीं बदला है। कोर्ट ने इस मामले में कहा कि उत्तर प्रदेश में लाया गया धर्मांतरण कानून मात्र विवाह ही नहीं बल्कि विवाह जैसे किसी भी रिश्ते के लिए धर्मांतरण जरूरी करता है। याचिकाकर्ताओं का रिश्ता लिव इन रिलेशनशिप का है और इन पर भी यह कानून लागू होगा। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण कानून, जबरदस्ती या धोखे में रख कर लोगों का धर्म बदलने से रोकने के लिए 2021 में योगी सरकार द्वारा लाया गया था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला और पुरुष, किसी के भी माता-पिता ने इस सम्बन्ध में पुलिस में शिकायत नहीं दर्ज करवाई है, ऐसे में उनके रिश्ते को कोई समस्या नहीं है। कोर्ट ने दम्पति कि याचिका पर फैसला दिया कि उन्हें सुरक्षा नहीं दी जाएगी।
कोर्ट ने इस दौरान यह भी कहा कि यदि इस जोड़े में से किसी का पहले विवाह हुआ होता तो इन्हें बिना तलाक के लिव इन में रहने की इजाजत नहीं दी जाती। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस सम्बन्ध में एक निर्णय हाल ही में सुनाया था।