भारत की जेलों में अंडरट्रायल कैदियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। ये वे लोग हैं जिन्हें किसी अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, लेकिन उनका मामला अभी अदालत में चल रहा है और उनके खिलाफ कोई फैसला नहीं हुआ है। दुर्भाग्यवश कई अंडरट्रायल कैदी ऐसे हैं, जो वर्षों से बिना दोषी साबित हुए जेल में बंद हैं।
भारतीय संविधान के तहत हर नागरिक को न्याय पाने का अधिकार है। ‘निर्दोषता की धारणा’ एक प्रमुख सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि जब तक किसी व्यक्ति को अपराध का दोषी सिद्ध नहीं किया जाता, उसे निर्दोष माना जाएगा। इसके बावजूद, हमारे देश की कानूनी प्रक्रिया इतनी धीमी है कि अनेक अंडरट्रायल कैदी वर्षों तक जेल में बंद रहते हैं।
भारत की न्यायिक प्रणाली में मुकदमों की सुनवाई में अक्सर देरी होती है। इसके कई कारण हो सकते हैं- जैसे कि न्यायालयों में लंबित मामलों की अधिकता, वकीलों की अनुपलब्धता, गवाहों की कमी और पुलिस की धीमी जाँच प्रक्रिया। यह सब मिलकर अंडरट्रायल कैदियों के मामलों को लंबा खींच देता है।
अक्सर देखा जाता है कि गरीब और असहाय कैदी, जो ज़मानत की राशि नहीं भर सकते, उन्हें ज़मानत मिलने के बावजूद जेल में रहना पड़ता है। ये लोग या तो अपनी वित्तीय स्थिति के कारण ज़मानत नहीं ले पाते या फिर उनके पास कानूनी सहायता नहीं होती। कई मामलों में अंडरट्रायल कैदियों को जेल में रखना उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
जेल में लंबे समय तक रहना किसी व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति को प्रभावित करता है। इसके साथ ही उसके परिवार पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। कई बार तो यह देखा गया है कि अंडरट्रायल कैदियों की जेल में रहते-रहते मृत्यु तक हो जाती है और उनका मुकदमा अधूरा ही रह जाता है।
सरकार और न्यायपालिका ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। ‘फास्ट ट्रैक कोर्ट’ का गठन किया गया है, ताकि मामलों का निपटारा जल्द हो सके। इसके अलावा, गरीब कैदियों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता का प्रावधान भी किया गया है। हालाँकि, अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। अंडरट्रायल कैदियों की समस्या हमारे देश की न्याय प्रणाली की गंभीर चुनौती है।
इसके समाधान के लिए आवश्यक है कि न्यायपालिका, सरकार और समाज मिलकर काम करें। न्याय में देरी अन्याय के समान है और अंडरट्रायल कैदियों की ज़िंदगी इस कथन की सच्चाई को दर्शाती है। न्याय व्यवस्था को तेज और सुलभ बनाना आज की प्रमुख आवश्यकता है, ताकि हर नागरिक को न्याय मिल सके और कोई भी निर्दोष वर्षों तक जेल में न रहे।
भारत में न्यायिक प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से भारतीय न्याय संहिता (BNS) और भारतीय सुरक्षा संहिता (BSS) को लागू किया गया है। इन नए कानूनों में ज़मानत से जुड़े प्रावधानों में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्याय प्रक्रिया तेज़ और सुलभ हो और दोषियों को दंड देने के साथ-साथ निर्दोषों को राहत मिले।
भारतीय न्याय संहिता के तहत ज़मानत देने के संबंध में नए दिशा-निर्देश तय किए गए हैं। ज़मानत के प्रावधान अब अधिक स्पष्ट और न्यायसंगत बनाए गए हैं, ताकि न्यायालयों द्वारा इसे लागू करने में कोई अस्पष्टता न हो। गंभीर अपराधों के मामलों में ज़मानत देने के लिए अब कड़े मानदंड तय किए गए हैं।
ऐसे मामलों में ज़मानत सिर्फ तभी दी जा सकेगी, जब अभियुक्त की ओर से पर्याप्त सबूत प्रस्तुत किए जाएँगे कि वह न तो न्याय प्रक्रिया में बाधा डालेगा और ना ही गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश करेगा। अपराध की प्रकृति, अभियुक्त का चरित्र और समाज में उसकी स्थिति को ध्यान में रखते हुए ज़मानत दी जाएगी।
इसके साथ ही अपराध की गंभीरता के आधार पर ज़मानत की शर्तें निर्धारित की जाएँगी। ज़मानत राशि को अभियुक्त की आर्थिक स्थिति के अनुरूप तय किया जाएगा, ताकि गरीबों को ज़मानत प्राप्त करने में कोई कठिनाई न हो। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अभियुक्त द्वारा दी गई ज़मानत की राशि न्यायसंगत हो।
भारतीय सुरक्षा संहिता के तहत भी ज़मानत से जुड़े प्रावधानों में सुधार किए गए हैं। ऐसे अपराध जिनका संबंध राष्ट्र की सुरक्षा, आतंकवाद या संगठित अपराध से है, उनमें ज़मानत देने के लिए सख्त प्रावधान किए गए हैं। इन मामलों में ज़मानत प्राप्त करना अत्यंत कठिन होगा, ताकि राष्ट्र की सुरक्षा को कोई खतरा न हो।
ज़मानत प्राप्त करने वाले अभियुक्तों पर निगरानी रखने के लिए अब विशेष तंत्र बनाए गए हैं। इसके तहत इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के माध्यम से अभियुक्त की गतिविधियों पर नज़र रखी जाएगी। अंतराष्ट्रीय अपराधों के मामलों में ज़मानत के प्रावधान भी सख्त किए गए हैं और ज़मानत देने के लिए अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों का पालन किया जाएगा।
BNS और BSS के तहत ज़मानत के नए पारदर्शी, सुलभ और न्यायसंगत प्रावधान न्यायालयों को उचित दिशा-निर्देश देते हैं, जिससे न केवल दोषियों को दंडित करने में मदद मिलेगी, बल्कि निर्दोष व्यक्तियों को भी राहत मिलेगी। न्यायपालिका और कानून व्यवस्था के प्रति आम जनता का विश्वास बढ़ाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि ‘ज़मानत नियम है और जेल अपवाद’।