ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग को ले कर आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले एक प्रोफेसर को दिल्ली हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) के प्रोफेसर रतन लाल पर दर्ज मुकदमा रद्द करने से इंकार कर दिया है। यह मुकदमा हिन्दुओं की भावनाओं को ठुकराने के लिए दर्ज किया गया था। हाईकोर्ट ने माना कि रतन लाल की टिप्पणियों से सामाजिक सौहार्द पर बुरा असर पड़ा था। यह आदेश मंगलवार (17 दिसंबर, 2024) को दिया गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस चंद्रधारी सिंह की अदालत में हुई। रतन लाल की तरफ से पेश वकीलों ने अभिव्यक्ति की आज़ादी सहित तमाम दलीलें पेश कीं। उन्होंने इस आधार पर रतन लाल के खिलाफ FIR को रद्द करने की माँग की। हालाँकि कोर्ट पर इन दलीलों का कोई असर नहीं पड़ा।
अपने फैसले में अदालत ने कहा कि रतन लाल द्वारा पेश की गई दलीलों में वो तथ्य नहीं थे जिसके आधार पर आरोपित के खिलाफ FIR को रद्द किया जा सके। हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि प्रोफेसर रतन लाल का इरादा एक वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का ही था। कोर्ट ने कहा कि प्रोफेसर जैसे पद वाले व्यक्ति की यह टिप्पणियाँ अशोभनीय हैं।
क्या था पूरा मामला
दिल्ली यूनिवर्सिटी में रतन लाल इतिहास विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। मई 2022 में जब ज्ञानवापी के मुकदमे में हिन्दू पक्ष ने शिवलिंग मिलने की बात कही तो तब रतन लाल ने सोशल मीडिया के अपने X और फेसबुक हैंडल पर एक आपत्तिजनक पोस्ट डाली थी। 14 मई, 2022 को डाली गई इस पोस्ट में उन्होंने लिखा, “यदि यह शिवलिंग हैं तो लगता है कि शायद शिव जी का भी खतना कर दिया गया था।” इसी पोस्ट में रतन लाल ने हंसी वाली इमोजी भी डाली थी।
प्रोफेसर रतन लाल के इस पोस्ट का स्क्रीनशॉट कुछ ही देर में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। उनके खिलाफ एक्शन की माँग जोर पकड़ने लगी थी। 18 मई, 2022 को दिल्ली के उत्तरी मौरिस नगर साइबर थाने में रतन लाल के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई थी। धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में यह शिकायत शिवाल भल्ला नाम के व्यक्ति ने दर्ज करवाई थी। पुलिस ने इस शिकायत पर IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 153- A और 295- A के तहत FIR दर्ज कर ली थी।
20 मई, 2022 को पुलिस ने रतन लाल को खोज निकाला और गिरफ्तार कर लिया। अगले ही दिन 21 मई को प्रोफेसर रतन लाल जमानत पा गए। अब रतन लाल इस केस को खत्म करवाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट पहुँचे थे। हालाँकि यहाँ उनकी याचिका ख़ारिज कर दी गई है।