रूस एक ऐसा देश है जिसकी जनसंख्या 144,000,000 से अधिक है। इस बर्फीले देश में रहने वाले भारतीयों की कुल संख्या 10,000 है जो यह स्पष्ट रूप से दिखा देता है कि रूस में बसने की चाह रखने वाले भारतीयों के लिए यह पसंदीदा नहीं। इतनी छोटी संख्या की तुलना में अमेरिका में रहने वाले 3.2 मिलियन भारतीयों की आबादी चौंका देने वाली और अकल्पनीय है। रूस में इस तरह की नीरस तस्वीर का कारण यह तथ्य है कि यह देश अभी भी दूर-दराज़ के लोगों को पूरे दिल से गले लगाने की राह पर नहीं है।
जब हम धर्म के बारे में बात करते हैं तो चीजें और भी दिलचस्प हो जाती हैं। यह एक विडंबना है कि रूस में हिन्दुओं की संख्या भारतीय नागरिकों की संख्या से 14 गुना अधिक है। यह वास्तव में अद्भुत आँकड़ा है। हम इस तस्वीर को देखते हैं क्योंकि इनमें से 92 प्रतिशत हिन्दू रूसी हैं। लगभग 1,40,000 रूसी खुद को हिन्दू कहते हैं। अगर रूस या दोनों देशों की सरकारें इन लोगों को नज़रंदाज़ करती हैं तो यह एक बड़ी ग़लती होगी। 2018 की घटनाएँ जो अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में सुर्ख़ियों में थीं, उनमें से रूस में हिन्दू धर्मगुरू- श्री प्रकाश जी के साथ होने वाले अत्याचार को दर्शाती हैं।
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ऊपर दिए गए आर्टिकल में अलेक्जेंडर ड्वोर्किन से जुड़े आक्रामक कट्टरपंथी ईसाई समूह का उल्लेख है। ड्वोर्किन एक रूसी पंथ विरोधी कार्यकर्ता है, जो ऑर्थोडॉक्स ईसाई धर्म को छोड़कर सभी सम्प्रदायों को दूषित समझता है और उन्हें सेक्ट और कल्ट कहता है। वह हर उस चीज़ की निंदा करता है, जिसका संबंध हिन्दू धर्म से जुड़ा हो। वर्ष 2011 में वह भगवदगीता की पवित्र पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने वाला था। हाल ही में वर्ष 2017 की शुरुआत में श्री प्रकाश जी के परिवार पर हमला करने के लिए दिल्ली में रूसी दूतावास के सामने ड्वोर्किन का पुतला जलाया गया था। इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र और ओएससीई में भी चर्चा हुई।
डेनिस स्टेपानोव (Denis Stepanov) नाम के एक रूसी का हालिया मामला, ड्वोर्किन और उसके संगठन के अलग-अलग और बहुत ही अनछुए पहलुओं को दर्शाता है। डेनिस रूस के मास्को में पैदा हुए थे और अब 35 वर्ष की आयु में एक युवा, ऊर्जावान और होनहार एंटरप्रेन्योर हैं। वह एक मेडिकल फर्म के मालिक हैं जो भारत और रूस के बीच व्यापार संबंधों को बेहतर बनाने की तर्ज़ पर काम करती है। चार साल पहले जब कुछ नहीं बदला था, तब उन्हें बहुत कम उम्र में सफलता मिली। डेनिस आधिकारिक रूप से एक हिन्दू बन गए लेकिन कुछ ही समय में उनकी ज़िंदगी बुरे दौर में प्रवेश कर गई। डेनिस के लिए यह सब भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म के प्रति रुचि रखने के कारण हुआ।
वर्ष 2016 में वह हिन्दू शास्त्रों के सम्पर्क में आए, जो रूसी भाषा में उपलब्ध थे। उसके बाद उसी वर्ष के अंत में उन्होंने समर्पित रूप से हिन्दू धर्म के अनुसार जीवन के मार्ग पर चलने का फ़ैसला किया। रूस में अल्पसंख्यक धर्मों की कठोर वास्तविकता को जानते हुए डेनिस ने कहा था, “यह मेरे जीवन का सबसे ख़ूबसूरत क्षण था। उस समय मुझे यह पता था कि यह मेरे काम और मेरे व्यवसाय को प्रभावित कर सकता है।” अगले साल की शुरुआत में डेनिस के व्यापार में तेजी आई। हालाँकि इससे जुड़ी बुरी ख़बर बहुत जल्द सामने आने वाली थी। धार्मिक घृणा और साम्प्रदायिक हिंसा में डूबे अपने नुकीले पंजे दिखाने से पहले उन्हें 4 महीने तक डॉर्किन और उनके लोगों ने अपने रडार पर रखा था। डेनिस कहते हैं, “वो मेरा पीछा 2017 के फरवरी के शुरुआत से कर रहे थे। यह लगभग 3-4 महीने तक जारी रहा और फिर उन्होंने मेरे घर आकर मुझे धमकाना शुरू कर दिया।”
यह सब इस लेख के पाठकों को विचित्र लग सकता है, लेकिन यह रूस के अल्पसंख्यकों की दुखद वास्तविकता है। बात यहीं नहीं रुकी, डेनिस के लिए बुरा समय अभी बस शुरू ही हुआ था। नवंबर के महीने में डेनिस के पास मास्क पहने और बंदूक रखने वाले लोग आए। ये कोई आम गुंडे नहीं थे और उन्होंने ख़ुद को पुलिस अधिकारियों के रूप में पेश किया।
इसके अलावा, उन्होंने डेनिस को बताया कि वो RATSIRS नाम के एक संगठन से जुड़े हैं और अगर उन्होंने हिन्दू धर्म नहीं छोड़ा, तो वे व्यवसायों से निपटने वाली सरकारी संस्थाओं में उनके ख़िलाफ़ झूठी कम्प्लेंट दर्ज करा देंगे। पुलिस की वर्दी पहने गुंडों ने उनके कार्यालय में तबाही मचाई और यहाँ तक कि डेनिस पर शारीरिक हमला भी किया। उन्होंने डेनिस को RATSIRS के खातों में पैसा ट्रांसफर करने का आदेश दिया। ऐसा करने से जब डेनिस ने इनकार कर दिया, तो उन्होंने डेनिस को उनके जीवन पर ख़तरा मँडराने की चेतावनी दे डाली।
जो पाठक रूसी प्रणाली से थोड़ा कम परिचित हैं, उनके लिए इस तथ्य का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि रूसी रूढ़िवादी चर्च के लिए काम करने वाले ड्वोर्किन को हिन्दुओं से लड़ने के लिए पदक भी मिल चुके हैं। ड्वोर्किन के कई ऐसे सहयोगी हैं जो पुलिस विभाग, मंत्रालय और एंटी मनॉपली ब्यूरो में काम करते हैं।
डेनिस का दावा है, “मैंने अपना शोध किया था और कुछ ही दिनों में मुझे पता चल गया था कि मेरे आसपास क्या हो रहा है।” ड्वोर्किन RATSIRS का आधिकारिक अध्यक्ष है, यह वो संगठन है जो हिन्दुओं का शोषण करने से जुड़े सभी कामों में लिप्त रहता है। डेनिस यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि उन्हें इस अत्यातार के ख़िलाफ़ सबसे पहले पुलिस में शिक़ायत दर्ज करनी थी। डेनिस ने जिन यातनाओं का सामना किया, वो इतनी भयंकर थीं कि उस सबका उल्लेख कर पाना संभव नहीं है। उन्हें एसएमएस और कॉल के ज़रिए धमकाया व प्रताड़ित किया गया। डेनिस अब उन एंटरप्रेन्योर्स की कतार में शामिल हो गए, जिनका एकमात्र दोष हिन्दू धर्म चुनना था। इसके अलावा, भारत और रूस के बीच स्वस्थ व्यापार का निर्माण करने की कोशिश करना भी इस दोष का हिस्सा था।
डेनिस को भरोसा है कि ड्वोर्किन इस धर्मयुद्ध की शुरुआत इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वो नहीं चाहते हैं कि हिन्दू आर्थिक रूप से एक ऐसे देश में मजबूत हो सकें, जहाँ की बहुसंख्यक आबादी रूढ़िवादी ईसाई धर्म का पालन करती हो। डेनिस जैसे युवा एंटरप्रेन्योर को परेशान करने का उद्देश्य रूसी रूढ़िवादी चर्च के खजाने की ओर नकदी प्रवाह को निकालना है। यदि रूस में हिन्दू धर्म या उससे जुड़े लोग सफल हो जाएँगे, तो यह चर्च की नीति के सन्दर्भ में एक नकारात्मक संदेश का संचार करेगा। डेनिस को 2019 के दौरान ही इस बात का पता चल गया था।
डेनिस ने बताया था, “ड्वोर्किन ने हाल ही में रूस के संघीय एंटीमोनोपॉली ब्यूरो के श्रमिकों को मेरी आजीविका पूरी तरह से नष्ट करने के लिए रिश्वत दी थी।” डेनिस के लिए यह विपरीत स्थिति काफ़ी मुश्किल हो चुकी है, लेकिन वह अभी भी अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। ब्यूरो उन्हें ईसाई धर्म में परिवर्तित होने की धमकी दे रहा है और यदि वो ऐसा करने से मना करते हैं, तो वो (ब्यूरो) उनसे धन उगाही करेंगे। सोशल मीडिया में इस मामले को लेकर सार्वजनिक रूप से हंगामा मचा हुआ है क्योंकि एक अन्य रूसी हिन्दू कार्यकर्ता सर्गेई केवशिन ने अपने पत्रों में डेनिस के मामले को उजागर किया था।
डेनिस ने ड्वोर्किन के संगठन के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने का वादा किया है। वह रूस के राष्ट्रपति पुतिन को शिक़ायती पत्र और याचिकाएँ लिखेंगे। ब्यूरो के साथ अदालत की सुनवाई 21 जनवरी 2020 को होने वाली है। जब डेनिस ने हिन्दू धर्म अपनाया था, तब उन्हें हिन्दू नाम ‘हरदास’ दिया गया। वह इस नाम को रखना चाहते हैं। यह वह नाम है जो धर्म की स्वतंत्रता का एक प्रतीक है, यह वह नाम है जो डेनिस के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और इससे उन्हें अपना संघर्ष जारी रखने की ताक़त भी मिलती है।
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