राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार (जनवरी 19, 2020) को कहा कि जैसा कि लोग आरोप लगाते हैं, आरएसएस संविधान से इतर शक्ति का केंद्र नहीं बनना चाहता। उन्होंने कहा कि आरएसएस का कोई एजेंडा नहीं है। महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय में रविवार को ‘भारत का भविष्य’ विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने जो संविधान लिखा था, हमें उसी पर चलना है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “भारत में शक्ति का केंद्र सिर्फ संविधान है और कोई दूसरा शक्ति केंद्र हो, ऐसी हमारी कोई इच्छा नहीं है। यदि ऐसा हुआ तो हम विरोध करेंगे। संविधान में देश के भविष्य की तस्वीर एकदम साफ है। वही प्रारंभ बताता है और गंतव्य भी।”
मोहन भागवत ने मुस्लिमों को न्योता देते हुए कहा कि RSS के बारे में जानने के लिए उन्हें हमारी शाखाओं और कार्यक्रमों में आना चाहिए और उसके बाद ही उनका आरएसएस के बारे में राय बनाना बेहतर होगा। उन्होंने यह भी कहा कि विरोध और निंदा सुनने को भी हम तैयार हैं।
‘संघ को लेकर फैलायी जा रहीं भ्राँतियाँ’
मोहन भागवत ने कहा कि जब आरएसएस के कार्यकर्ता कहते हैं कि यह देश हिंदुओं का है और 130 करोड़ लोग हिंदू हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी का धर्म, भाषा या जाति बदलना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपनी विविधता के बावजूद एकसाथ रहना होगा, इसे ही हम हिन्दुत्व कहते हैं।
‘जब-जब हिंदुत्व कमजोर हुआ, तब-तब भारत की भौगोलिक स्थिति बदली है’
मोहन भागवत ने कहा, “हमारे पूर्वज एक हैं, विविधताओं के बावजूद सब यहीं रहते हैं, यही हिंदुत्व है। जहां हिंदू नहीं रहे या हिंदू भावना खत्म हो गई, देश का वह हिस्सा आज अलग है। जब-जब हिंदुत्व कमजोर हुआ, तब-तब भारत की भौगोलिक स्थिति बदली है।”
भागवत ने कहा कि संविधान कहता है कि हमें भावनात्मक एकीकरण लाने की कोशिश करनी चाहिए। भावना यह है कि यह देश हमारा है। देश के लोगों को इसे आगे ले जाने के बारे में सोचना है।
‘हमें किसी की पूजा पद्धति को लेकर आपत्ति नहीं है’
मोहन भागवत ने ‘भविष्य का भारत’ विषय पर कहा कि संघ को किसी भी धर्म की पूजा पद्धति से कोई आपत्ति नहीं है ना ही संघ जाति या संप्रदाय को लेकर भेदभाव रखता है। उन्होंने कहा कि हिंदू शब्द संस्कृति का प्रतीक है। इस आधार पर भारत में रहने वाले सभी 130 करोड़ लोग हिंदू हैं।
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